श्रीमहाकालेश्वर महादेवः कीजिए मृत्युलोक के अधिपति ज्योतिर्लिंग के दर्शन

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग

आकाशे तारकं लिंगं पाताले हाटकेश्वरम् ।

भूलोके च महाकालो लिंड्गत्रय नमोस्तु ते।।

अर्थात:  आकाश में तारक ज्योतिर्लिंग, पाताल में हाटकेश्वर ज्योतिर्लिंग और पृथ्वी पर महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग से बढ़कर अन्य कोई ज्योतिर्लिंग नहीं है। इसलिए महाकालेश्वर को पृथ्वी का अधिपति भी माना जाता है अर्थात वे ही संपूर्ण पृथ्वी के एकमात्र राजा हैं।

Yatra Partner: मित्रों! आइये ज्योतिर्लिंगों की इस पवित्र यात्रा में हम आज आपको ले चलतें हैं पृथ्वी का अधिपति भी मानें जानें वाले ज्योतिर्लिंग श्रीमहाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की यात्रा पर। वैसे तो भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग है परन्तु आज हम आपको ज्योतिर्लिंगों में सर्वोत्तम ज्योतिर्लिंग के दर्शन कराने ले चलतें हैं। श्रीमहाकालेश्वर महादेव ज्योतिर्लिंग की तो शोभा ही अपूर्व है। तो चलिए चलते हैं मध्यप्रदेश राज्य के श्रीमहाकालेश्वर महादेव ज्योतिर्लिंग और जानतें हैं इस की महिमा बारे में-

यह ज्योतिर्लिंग भारत के हृदयस्थल मध्यप्रदेश राज्य के उज्जैन नगर में पुण्य सलिला शिप्रा के तट के निकट स्थित है। पुराणों, महाभारत और कालिदास जैसे महाकवियों की रचनाओं में इस मंदिर का मनोहर वर्णन मिलता है। स्वयंभू, भव्य और दक्षिणमुखी होने के कारण महाकालेश्वर महादेव की अत्यन्त पुण्यदायी महत्ता है। महाकवि कालिदास ने मेघदूत में उज्जयिनी की चर्चा करते हुए इस मंदिर की प्रशंसा की है।

महाराजा विक्रमादित्य के न्याय की नगरी उज्जयिनी में भगवान महाकाल की असीम कृपा है। कहा जाता है कि जो महाकाल का भक्त है उसका काल भी कुछ नहीं बिगाड़ सकता। उज्जैन के एक ही राजा हैं और वह हैं महाकाल बाबा। राजा विक्रमादित्य के शासन के बाद से यहां कोई भी राजा रात में नहीं रुक सकता। जिसने भी यह दुस्साहस किया है, वह संकटों से घिरकर मारा गया। पौराणिक कथा और सिंहासन बत्तीसी की कथा के अनुसार राजा भोज के काल से ही यहां कोई राजा नहीं रुकता है। वर्तमान में भी कोई भी राजा, मुख्‍यमंत्री और प्रधानमंत्री आदि यहां रात को नहीं रुक सकता। महाकाल बाबा श्रावण मास में प्रति सोमवार नगर भ्रमण करते हैं।

काल के दो अर्थ होते हैं- एक समय और दूसरा मृत्यु। महाकाल को ’महाकाल’ इसलिए कहा जाता है कि प्राचीन समय में यहीं से संपूर्ण विश्व का मानक समय निर्धारित होता था इसीलिए इस ज्योतिर्लिंग का नाम ’महाकालेश्वर’ रखा गया है।

इतिहास तथा पौराणिक अनुश्रुतियाँ

इतिहास से पता चलता है कि उज्जैन में सन् 1107  से1728  ई. तक यवनों का शासन था। इनके शासनकाल में अवंति की लगभग 1500  वर्षों में स्थापित हिन्दुओं की प्राचीन धार्मिक परंपराएं प्रायः नष्ट हो चुकी थी। लेकिन 1690 ई. में मराठों ने मालवा क्षेत्र में आक्रमण कर दिया और 29  नवंबर 1728 को मराठा शासकों ने मालवा क्षेत्र में अपना अधिपत्य स्थापित कर लिया। इसके बाद उज्जैन का खोया हुआ गौरव पुनः लौटा और सन 1731  से 1809  तक यह नगरी मालवा की राजधानी बनी रही। मराठों के शासनकाल में यहाँ दो महत्त्वपूर्ण घटनाएँ घटीं – पहला, महाकालेश्वर मंदिर का पुनिर्नर्माण और ज्योतिर्लिंग की पुनर्प्रतिष्ठा तथा सिंहस्थ पर्व स्नान की स्थापना, जो एक बहुत बड़ी उपलब्धि थी। आगे चलकर राजा भोज ने इस मंदिर का विस्तार कराया।

महाकाल के दर्शन करने के बाद जूना महाकाल के दर्शन जरूर करना चाहिए। कुछ लोगों के अनुसार जब मुगलकाल में इस शिवलिंग को खंडित करने की आशंका बढ़ी तो पुजारियों ने इसे छुपा दिया था और इसकी जगह दूसरा शिवलिंग रखकर उसकी पूजा करने लगे थे। बाद में उन्होंने उस शिवलिंग को वहीं महाकाल के प्रांगण में अन्य जगह स्थापित कर दिया जिसे आज ’जूना महाकाल’ कहा जाता है। हालांकि कुछ लोगों के अनुसार असली शिवलिंग को क्षरण से बचाने के लिए ऐसा किया गया।

मंदिर की संरचना तथा वर्णन

मंदिर का क्षेत्रफल 10.77 गुणा 10.77 वर्गमीटर और ऊंचाई 28.71 मीटर है। महाशिवरात्रि एवं श्रावण मास में हर सोमवार को इस मंदिर में अपार भीड़ होती है। मंदिर से लगा एक छोटा-सा जलस्रोत है जिसे कोटितीर्थ कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि इल्तुत्मिश ने जब मंदिर को तुड़वाया तो शिवलिंग को इसी कोटितीर्थ में फिकवा दिया था। बाद में इसकी पुनर्प्रतिष्ठा करायी गयी। सन 1968 के सिंहस्थ महापर्व के पूर्व मुख्य द्वार का विस्तार कर सुसज्जित कर लिया गया था। इसके अलावा निकासी के लिए एक अन्य द्वार का निर्माण भी कराया गया था।

लेकिन दर्शनार्थियों की अपार भीड़ को दृष्टिगत रखते हुए बिड़ला उद्योग समूह के द्वारा 1980 के सिंहस्थ के पूर्व एक विशाल सभा मंडप का निर्माण कराया। महाकालेश्वर मंदिर की व्यवस्था के लिए एक प्रशासनिक समिति का गठन किया गया है जिसके निर्देशन में यहाँ की व्यवस्था सुचारु रूप से चल रही है। हाल ही में इसके 118 शिखरों पर 16 किलो स्वर्ण की परत चढ़ाई गई है।अब मंदिर में दान के लिए इंटरनेट सुविधा भी चालू की गई है।

यहाँ का सिंहस्थ मेला

सिंहस्थ मेले के बारे में यह कहा जाता है कि जब समुद्र मंथन के पश्चात देवता अमृत कलश को दानवों से बचाने के लिए वहाँ से पलायन कर रहे थे, तब उनके हाथों में पकड़े अमृत कलश से अमृत की बूँद धरती पर जहाँ-जहाँ भी गिरी थी, वो स्थान पवित्र तीर्थ बन गए। उन्हीं स्थानों में से एक उज्जैन है। यहाँ प्रति बारह वर्ष में सिंहस्थ मेला आयोजित होता है।

उज्जैन का सिंहस्थ मेला बहुत ही दुर्लभ संयोग लेकर आता है इसलिए इसका महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है। इस दिन यहाँ दस दुर्लभ योग होते हैं, जैसे : वैशाख माह, मेष राशि पर सूर्य, सिंह पर बृहस्पति, स्वाति नक्षत्र, शुक्ल पक्ष, पूर्णिमा आदि।

कैसे पहुँचें उज्जैन :

उज्जैन पहुँचने के लिए आपको भारत के अलग अलग जिलों से बस, ट्रेन व टैक्सी की सुविधा उपलब्ध है। यहाँ का नजदीकी हवाईअड्डा देवी अहिल्या एयरपोर्ट, इंदौर है।

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