क्रांतिवीरों की कर्मभूमि रहा काकोरी रेलवे स्टेशन आपने आप में किसी तीर्थस्थल से कम नहीं है। क्रांतिकारियों की स्मृति में यहां एक शहीद स्मारक बनाया गया है। मंगल ग्रह के एक क्रेटर का नाम भी काकोरी रखा गया है।
यात्रा पार्टनर नेटवर्क। लखनऊ-बरेली-दिल्ली रेलमार्ग पर लखनऊ से चंद मिनटों की दूरी पर एक छोटा-सा रेलवे स्टेशन है काकोरी। भारत के स्वतंत्रता संघर्ष में स्वर्णिम स्थान रखने वाले वाले “ककोरी कांड” का मूक गवाह है यह। ब्रितानी हुकूमत को हिला देने वाली इस घटना के दशकों बीत जाने के बाद भी यह स्टेशन वैसा ही जनशून्य और ऊंधता हुआ-सा है जैसा उस समय रहा होगा। हालंकि तेल से जलने वाले लैंप की जगह अब बिजली के लट्टू टिमटिमाते हैं और स्टीम इंजन की जगह बिजली के इंजन से चलने वाली ट्रेन गुजरने लगी हैं।
क्रांतिवीरों की कर्मभूमि रहा यह रेलवे स्टेशन आपने आप में किसी तीर्थस्थल से कम नहीं है। क्रांतिकारियों की स्मृति में यहां एक शहीद स्मारक (काकोरी शहीद मंदिर) बनाया गया है। मंगल ग्रह के एक क्रेटर का नाम भी काकोरी रखा गया है।
काकोरी का भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में क्या स्थान है, इसे समझने के लिए हमें करीब 96 साल पीछे लौटना पड़ेगा। अशफाक उल्ला खां के जीवन पर शुरू से ही महात्मा गांधी का काफी प्रभाव था। गांधीजी के असहयोग आंदोलन वापस लेने पर उनके मन को अत्यंत पीड़ा पहुंची। इसके बाद रामप्रसाद बिस्मिल और चंद्रशेखर आजाद के नेतृत्व में 8 अगस्त 1925 को क्रांतिकारियों की एक अहम बैठक हुई जिसमें 9 अगस्त 1925 को सहारनपुर-लखनऊ पैसेंजर ट्रेन को काकोरी स्टेशन पर लूटने की योजना बनाई गई। क्रांतिकारी जिस धन को लूटना चाहते थे, दरअसल वह धन अंग्रेजों ने भारतीयों से ही हड़पा था। क्रांतिवीर अपना आंदोलन चलाने के लिए धन एकत्र करने के लिए, भावनात्मक दृष्टि से तथा सरकारी खजाने पर कब्ज़ा करने की दृष्टि से इस बड़ी धनराशि को लूटना चाहते थे। इस योजना को परवान चढ़ाने के लिए हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के चुने हुए सदस्य 9 अगस्त 1925 को काकोरी स्टेशन पहुंच गए। रात को जैसे ही ट्रेन रवाना हुई, बिस्मिल ने चेन खींच दी। क्रांतिकारियों ने ट्रेन पर कब्जा कर 8000 रुपये की नकदी लूट ली जो उस समय बहुत बड़ी रकम थी।
इस दुस्साहसिक घटना की धमक लंदन तक सुनाई दी। यह घटना ब्रिटिश हुकूमत के लिए बहुत बड़ी चुनौती थी। अंग्रेज सरकार ने अपने जासूसों का जाल बिछा दिया और पुलिस ने मामले की तह तक जाने के लिए पूरी ताकत झोंक दी। एक-एक कर कई क्रांतिकारियों को पकड़ लिया गया लेकिन चंद्रशेखर आजाद और अशफाक उल्ला खां पुलिस के हाथ नहीं आए।
26 सितंबर 1925 को हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के 40 सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया गया। इन सभी के खिलाफ राजद्रोह, सशस्त्र युद्ध छेड़ने, सरकारी खजाना लूटने और मुसाफिरों की हत्या करने का मुकदमा चलाया गया। अदालत ने रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां, राजेंद्र नाथ लाहिड़ी और रोशन सिंह को फांसी की सजा सुनाई। 16 अन्य क्रांतिकारियों को कम से कम चार साल की सजा से लेकर अधिकतम कालापानी यानी आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई।
“ककोरी कांड” की योजना में शामिल क्रांतिकारी
रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां, राजेंद्र नाथ लाहिड़ी, ठाकुर रोशन सिंह, योगेश चंद्र चटर्जी, प्रेमकृष्ण खन्ना, मुकुंदी लाल, विष्णुशरण दुब्लिश, सुरेश चंद्र भट्टाचार्य, रामकृष्ण खत्री, मन्मथनाथ गुप्त, राजकुमार सिन्हा, गोविन्द चरण कार, रामदुलारे त्रिवेदी, रामनाथ पाण्डेय, शचीन्द्रनाथ सान्याल, भूपेन्द्रनाथ सान्याल, प्रणवेश कुमार चटर्जी।न