इस आश्रम में बापू 1917 से 1931 तक रहे थे। यहां से जाने के बाद वह महाराष्ट्र में स्थित सेवाग्राम आश्रम में रहने लगे। महात्मा गांधी और उनके साथियों ने स्वतंत्रता आंदोलन से संबंधित कई योजनाएं साबरमती आश्रम में ही बनाई थीं।
- यात्रा पार्टनर ब्यूरो
दे दी हमें आजादी बिना खड्ग बिना ढाल
साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल।
मोहन दास कर्मचंद गांधी यानी महात्मा गांधी के सम्मान में लिखे गए गीत की इन पंक्तियों से बहुत से लोग असहमत हो सकते हैं पर भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महात्मा गांधी की कर्मभूमि रहे साबरमती आश्रम के महत्व को नकारना संभव नहीं है। दरअसल, महात्मा गांधी ने सन् 1917 में अहमदाबाद के कोचरब नामक स्थान पर सत्याग्रह आश्रम की स्थापना की थी। सन् 1917 में यह आश्रम साबरमती नदी के किनारे वर्तमान स्थान पर स्थानांतरित हुआ और साबरमती आश्रम कहलाने लगा। इतिहासकारों का मत है कि पौराणिक दधीचि ऋषि का आश्रम भी यहीं पर था। माना जाता है कि जब तक साबरमती आश्रम के दर्शन न किए जाएं तब तक अहमदाबाद नगर की यात्रा अपूर्ण ही रहती है।
इस आश्रम में बापू 1917 से 1931 तक रहे थे। यहां से जाने के बाद वह महाराष्ट्र में स्थित सेवाग्राम आश्रम में रहने लगे। महात्मा गांधी और उनके साथियों ने स्वतंत्रता आंदोलन से संबंधित कई योजनाएं साबरमती आश्रम में ही बनाई थीं। आश्रम का जीवन महात्मा गांधी के सत्य, अहिंसा आत्मससंयम, विराग एवं समानता के सिद्धांतों पर आधारित महान प्रयोग था। इस आश्रम में विभिन्न धर्मावलबियों में एकता स्थापित करने, चर्खा, खादी एवं ग्रामोद्योग द्वारा जनता की आर्थिक स्थिति सुधारने और अहिंसात्मक असहयोग या सत्याग्रह के द्वारा जनता में स्वतंत्रता की भावना जाग्रत करने के प्रयोग किए गए। समय के साथ यहां कताई एवं बुनाई के साथ-साथ चर्खे के भागों का निर्माण कार्य भी होने लगा।
इस आश्रम में रहते हुए ही महात्मा गांधी ने अहमदाबाद की मिलों में हुई हड़ताल का सफल संचालन किया। मिल मालिकों और कर्मचारियों के विवाद को सुलझाने के लिए उन्होंने अनशन शुरू किया जिसके प्रभाव से 21 दिनों से चल रही हड़ताल तीन दिन के अंदर ही समाप्त हो गई। इस सफलता के पश्चात बापू ने खेड़ा सत्याग्रह का सूत्रपात किया। रालेट समिति की सिफारिशों का विरोध करने के लिए राष्ट्रीय नेताओं का एक सम्मेलन भी यहां आयोजित किया गया जिसमें उपस्थित लोगों ने सत्याग्रह के प्रतिज्ञा-पत्र पर हस्ताक्षर किए।
साबरमती आश्रम में रहते हुए ही महात्मा गांधी ने दो मार्च 1930 को भारत के वाइसराय को एक पत्र लिखकर सूचित किया कि वह नौ दिन का सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू करने जा रहे हैं। 12 मार्च 1930 को महात्मा गांधी ने आश्रम के 78 व्यक्तियों के साथ नमक कानून भंग करने के लिए ऐतिहासिक दंडी यात्रा की। इसके बाद वह भारत के स्वतंत्र होने तक यहां लौटकर नहीं आए। सविनय अवज्ञा आंदोलन का दमन करने के लिए सरकार ने आंदोलनकारियों की संपत्ति जब्त कर ली। आंदोलनकारियों के प्रति सहानुभूति जताते हुए महात्मा गांधी ने सरकार से साबरमती आश्रम ले लेने के लिए कहा पर सरकार ने ऐसा नहीं किया। इस पर बापू ने आश्रमवासियों को आश्रम छोड़कर गुजरात के खेड़ा जिले के बीरसद के निकट रासग्राम में पैदल जाकर बसने का परामर्श दिया लेकिन आश्रमवासियों को आश्रम छोड़ने के पहले ही एक अगस्त 1933 को गिरफ्तार कर लिया गया। इस पर महात्मा गांधी ने इस आश्रम को भंग कर दिया और यह कुछ समय तक जनशून्य पड़ा रहा। बाद में यह निर्णय किया गया कि हरिजनों (दलितों) और पिछड़े वर्गों के कल्याण के लिए यहां शिक्षा संबंधी संस्थाओं को चलाया जाए और इस कार्य के लिए आश्रम को एक न्यास के अधीन कर दिया जाए।
महात्मा गांधी की मृत्यु के पश्चात उनकी स्मृति को चिरस्थायी बनाए रखने के उद्देय से साबरमती आश्रम को राष्ट्रीय स्मारक का रूप दे दिया गया। गांधी स्मारक निधि ने यह निर्णय किया कि आश्रम के उन भवनों को, जो महात्मा गांधी जी से संबंधित थे, सुरक्षित रखा जाए। इसी के चलते 1951 में साबरमती आश्रम सुरक्षा एवं स्मृति न्यास अस्तित्व में आया। उसी समय से यह न्यास महात्मा गांधी के निवास हृदयकुंज, उपासना भूमि, मगन निवास आदि के रखरखाव का कार्य कर रहा है।
महात्मा गांधी ने इस आश्रम में लोगों को विभिन्न तरह की शिक्षा देने के लिए एक पाठशाला का निर्माण भी करवाया था जहां वे कृषि से जुड़ी जानकारी देने के साथ ही मानव श्रम की महत्ता से भी अवगत कराते थे। गांधी जी ग्रामोद्योग और खादी से विशेष प्रेम रखते थे। उनका मानना था कि चरखा और खादी के वस्त्रों से गांव अपनी आर्थिक स्थिति में सुधार ला सकते हैं, साथ ही इन स्वदेशी वस्त्रों के इस्तेमाल से ब्रिटिश सरकार को करारा जबाब दिया जा सकता है। इसी भावना के साथ महात्मा गांधी इस आश्रम में चरखा चलाकर सूत तैयार करते थे जिससे खादी के वस्त्र तैयार किए जाते थे।
साबरमती आश्रम के दर्शनीय स्थल
हृदय कुंजः महात्मा गांधी साबरमती में एक छोटी सी कुटिया में रहते थे जिसे आज भी “ह्रदय कुंज” कहा जाता है। यह ऐतिहासिक दृष्टि से अमूल्य निधि है जहां उनकी डेस्क, खादी का कुर्ता, चरखा, पत्र आदि रखे गए हैं।
मगन निवासः साबरमती आश्रम की देखभाल करने वाले मगनलाल गांधी का यह निवास स्थान था। उन्हें इस आश्रम का प्रबंधक कहा जाता था जो आश्रम में रहते थे और यहां की हर जरूरत और काम को देखते थे। महात्मा गांधी कहते थे कि मगनलाल साबरमती आश्रम की दिल और आत्मा हैं जिनके बिना यह आश्रम अधूरा है। यहां तरह-तरह के चरखे रखे हुए हैं।
विनोबा कुटीर/मीरा कुटीरः आचार्य विनोबा भावे जिनके नाम पर इस आश्रम में यह स्थान बनाया गया, महात्मा गांधी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी कहलाते थे। बिनोवा भावे इसी स्थान पर महात्मा गांधी के साथ विविध विषयों पर चर्चा किया करते थे। विनोबा कुटीर को मीरा कुटीर नाम से भी जाना जाता है। मीराबेन एक ब्रिटिश महिला थीं लेकिन महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित होकर उनकी अनुयायी बन गईं। साबरमती आश्रम में वह इसी स्थान पर रहती थीं।
नंदिनीः महात्मा गांधी और उनके अनुयायी जब यहां रहते थे तो बाहर से आने वाले लोगों को इसी स्थान पर ठहराया जाता था। जवाहरलाल नेहरू, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, सी.राजगोपालाचारी, दीनबंधु एंड्रयूज, रवींद्रनाथ टैगोर आदि साबरमती आश्रम आने पर आश्रम के एक मुख्यद्वार से थोड़ी दूरी पर स्थित नंदिनी अतिथिगृह में ही ठहरते थे।
उपासना मंदिरः आश्रम में प्रार्थना के लिए मगन निवास एवं हृदय कुंज के बीच उपासना मंदिर बनवाया गया था जहां महात्मा गांधी प्रतिदिन आश्रमवासियों के साथ प्रार्थना किया करते थे। खुले आसमान के नीचे बनाए गए इस स्थान पर बापू प्रार्थना के बाद उपदेश भी दिया करते थे। इसके बाद सवाल-जवाब का सत्र होता था।
उद्योग मंदिरः महात्मा गांधी ने हस्तनिर्मित खादी के माध्यम से देश को आजादी दिलाने का संकल्प लिया था। उन्होंने मानवीय श्रम को आत्मनिर्भरता और आत्मसम्मान का प्रतीक बनाया। यही वह जगह थी जहां गांधी जी ने अपने आर्थिक सिद्धांतों को व्यावहारिक रूप दिया। यहीं से चरखे द्वारा सूत कातकर खादी के वस्त्र बनाने की शुरुआत की गई। देश के कोने-कोने से आने वाले गांधी जी के अनुयायियों को यहां चरखा चलाने और खादी के वस्त्र बनाने का प्रशिक्षण दिया जाता था। आश्रम में उद्योग मंदिर की स्थापना 1918 में अहमदाबाद की कपड़ा मिलों में श्रमिक हड़ताल के दौरान की गई थी।
कस्तूरबा रसोईः महात्मा गांधी की पत्नी कस्तूरबा गांधी की रसोई इस आश्रम में आकर्षण का मुख्य केंद्र है। यहां उनके द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले चूल्हे, बर्तनों और अलमारी को देखा जा सकता है।
गांधी स्मृति संग्रहालयः 10 मई 1963 को जवाहरलाल नेहरू ने हृदयकुंज के समीप गांधी स्मृति संग्रहालय का उद्घाटन किया। इस संग्रहालय में गांधी जी के पत्र, फोटोग्राफ व अन्य दस्तावेज रखे गए हैं। यंग इंडिया, नवजीवन और हरिजन में प्रकाशित महात्मा गांधी के 400 लेखों की मूल प्रतियां, बचपन से लेकर मृत्यु तक के फोटोग्राफों का वृहद संग्रह तथा भारत और विदेश में भ्रमण के दौरान दिए गए उनके भाषणों के 100 संग्रह भी यहां प्रदर्शित किए गए हैं। संग्रहालय में एक पुस्तकालय भी है जिसमें साबरमती आश्रम की 4,000 तथा महादेव देसाई की 3,000 पुस्तकों का संग्रह है। संग्रहालय में महात्मा गांधी द्वारा और उनको लिखे गए 30,000 पत्रों की अनुक्रमणिका है। इन पत्रों में कुछ तो मूल रूप में हैं और कुछ की माइक्रोफिल्म सुरक्षित रखी गई हैं।
आश्रम खुलने का समय
साबरमती आश्रम साल के सभी 365 दिन खुला रहता है जहां लोग सुबह 8:30 बजे से शाम 7:30 बजे के बीच कभी भी जा सकते है।