राजस्थान : रेतीली धरती पर पकवानों का रेला

भौगोलिक परिस्थितियों के कारण पारम्परिक राजस्थानी व्यंजनों में बेसन, दाल, सूखे मसाले, सूखे मेवे, घी, दूध, मठा (मट्ठा या छाछ) और दही का अधिकाधिक प्रयोग होता है। हरी सब्जियों की तात्कालिक अनुपलब्धता के कारण पारम्परिक राजस्थानी खाने में इनका प्रयोग कम ही होता है।

अनुवंदना माहेश्वरी : रणबांकुरों और मारवाड़ी सेठों की धरती राजस्थान अपने भोजन के लिए भी दुनियाभर में प्रसिद्ध है। ईश्वर ने भले ही यहां की धरती को हरियाली देने में कंजूसी की हो पर पाक कौशल का आशीर्वाद खुले दिल से दिया है। राजस्थानी खाना (Rajasthani food) विशेष रूप से शाकाहारी भोजन होता है और यह अपने स्वाद के कारण पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। भौगोलिक परिस्थितियों के कारण पारम्परिक राजस्थानी व्यंजनों में बेसन, दाल, सूखे मसाले, सूखे मेवे, घी, दूध, मठा (मट्ठा या छाछ) और दही का अधिकाधिक प्रयोग होता है। हरी सब्जियों की तात्कालिक अनुपलब्धता के कारण पारम्परिक राजस्थानी खाने में इनका प्रयोग कम ही होता है।

अगर राजस्थान घूमने का प्लान बना रहे हैं तो यहां की दुनियाभर में मशहूर हो चुकी “राजस्थानी थाली” के लाजवाब स्वाद का आनंद जरूर उठाएं। रंगीले राजस्थान में रमते जोगी की तरह यहां-वहां पैदल डोलने का आनंद जगह-जगह दाल-बाटी चूरमा, दाल की पूरी, प्याज़ कचौड़ी, गट्टे की सब्जी, पापड़ की सब्जी, पिटौर की सब्जी, हल्दी की सब्जी, भुजिया, सान्गरी, मावा मालपुआ, घेवर आदि को खाते-चटखारे लेते हुए और बढ़ जाता है। जो लोग मांस से बने व्यंजन पसंद करते हैं, उनके लिए भी कुछ विकल्प हैं। वे लाल मांस, सफेद मांस और बंजारी गोश्त आजमा सकते हैं।

दाल-बाटी-चूरमा

यह दरअसल तीन तरह के राजस्थानी व्यंजनों का सामूहिक नाम है। इनमें से दाल को कई तरह की दालों को मिलाकर तैयार किया जाता है। बाटी गेहूं के मोटे आटे से बनाई जाती है जबकि चूरमा मीठे आटे का मिश्रण होता है। धार्मिक उत्सवों के साथ ही विवाह समारोह समेत खुशी के लगभग सभी अवसरों पर इसे जरूर बनाया जाता है।  

  1. बाटी : बाटी बनाने के लिए गेहूं के आटे, बेसन, घी, दही, अजवाइन और नमक का इस्तेमाल होता है। आटे में दही, बेसन, घी, अजवाइन और जरूरत के अनुसार पानी डाल कर नरम गूंधने के बाद नींबू के आकार की गोलियां बनाई जाती हैं। इन्हें ढक कर एक घंटे के लिए रख दिया जाता है। इसके बाद गर्म कोयले पर बारी-बारी से सुनहरा होने तक सेंका जाता है। इसके बाद इनको गर्म घी में डाल कर रखा जाता है।
  2. दाल : इसे बनाने के लिए छिलके वाली मूंग दाल, चना दाल, उड़द दाल और अरहर दाल को एक साथ उबाल कर रख लेते हैं। फिर एक पतीली में दो चम्मच घी डाल कर जीरा, तेजपत्ता और चुटकी भर हींग डाली जाती है। प्याज तथा अदरक-लहसुन का पेस्ट डाल कर भूरा होने तक भूनते हैं और टमाटर डाल कर थोड़ी देर पकाया जाता है। फिर सभी मसाले, दाल और नमक डाल कर रस गाढा होने तक पकाते हैं। दाल को हरे धनिया से सजा कर ऊपर से नींबू निचोड़ा जाता है। गर्म बाटी को दाल में डुबो कर खाया जाता है।
  3. चूरमा :  चूरमा एक पारम्परिक राजस्थानी मिठाई है जिसे कई तरह से बनाया जाता है, जैसे बाटी चूरमा, बाजरे का चूरमा, गेहूं के आटे का चूरमा वगैरह। इसे प्रायः दाल-बाटी के साथ परोसा जाता है। इसे बनाने के लिए आजकल बाटी को मिक्सी में पीसा जाता है। ये बाटी खासतौर पर चूरमा के लिए ही तैयार की गयी बाटी हो सकती है तो दाल-बाटी के लिए तैयार बाटी भी हो सकती है। ध्यान यह रखना होता है कि चूरमा बनाने के लिए इस्तेमाल की जा रही बाटी में नमक न पड़ा हो। बाटी को पीसने के बाद उसमें घी, चीनी, मेवे आदि मिलाए जाते हैं। स्वाद और खुशबू बढ़ाने के लिए हरी इलायची को पीसकर ऊपर से बुरका जाता है।

हल्दी का साग

यह एक प्रकार की सब्जी हैं जो पश्चिमी राजस्थान में सर्दी के मौसम में बनाई जाती है। इसमें मुख्य रूप से देसी घी और हरी हल्दी का इस्तेमाल होता है। साथ ही विभिन्न प्रकार की सब्जियां और मसाले भी डाले जाते हैं। जैसे हरा प्याज, लहसुन, टमाटर, धनिया, अदरक, हरी मिर्च इत्यादि। हल्दी की सब्जी मुख्यरूप से गेहूं की रोटी के साथ खाई जाती है। दही के साथ इसका स्वाद और भी बढ़ जाता है। यह सब्जी शरीर में गर्मी पैदा करती है, इसलिये इसे जाड़े के मौसम में ही बनाया जाता है।

मावा मालपुआ

यह ठेठ राजस्थानी मिठाई है जिसे बनाने में मावा यानी खोवा, मैदा, कच्चे दूध. काजू, बादाम, इलायची और केवड़ा जल का इस्तेमाल किया जाता है। मीठे के लिए गुड़ या चीनी किसी का भी इस्तेमाल किया जा सकता है, हालांकि परम्परावादी लोग गुड़ का ही इस्तेमाल करते हैं।

गट्टे की सब्जी

गट्टे की सब्जी एक परंपरागत राजस्थानी व्यंजन है। इसके लिए बेसन और मसालों के मिश्रण को परांठे के आटे की तरह सख्त गूंथ लिया जाता है। फिर इस मिश्रण के गट्टे बनाकर पानी में उबाले जाते हैं। फिर उन्हें काटकर मसालेदार दही की ग्रेवी में पकाया जाता है। इसे रोटी, मिसी रोटी या चावल किसी के भी साथ खाया जा सकता है।

दाल की पूरी

यह एक तरह की कचौड़ी ही है जिसे मूंग, चने या उड़द के मसालेदार भरावन से बनाया जाता है। राजस्थान में इसमें अजवाइन और तिल भी डाले जाते हैं। खास बात यह है कि दाल की पूरी को यहां सिर्फ सरसों के तेल में ही तला जाता है।

पिटौर (पितोड़) की सब्जी

इसे बेसन में तरह-तरह के मसाले डालकर बनाया जाता है। बेसन और मसालों का मिश्रण तैयार कर उसे पकाया जाता है। जब वह बर्फी या कतले बनाने लायक गाढ़ा हो जाए तो एकसार या समतल तले वाली थाली या ट्रे में अच्छी तरह फैला देते हैं। ठंडा हो जाने पर इसके बर्फी जैसे पीस काट लेते हैं। इन स्वादिष्ट कतलों को दही वाली ग्रेवी में पकाया जाता है।

प्याज कचौड़ी

कहा जाता है कि राजस्थान में प्याज कचौड़ी बनाने की शुरुआत जोधपुर से हुई पर आज यह पूरे राज्य का व्यंजन बन चुकी है। गली-मोहल्लों से लेकर हाई-फाई रेस्तरां तक हर जगह यह तेल भरी कढ़ाही में इतराती देखी जा सकती है। इसे घी मिले मैदे की लोई में मसालेदार प्याज को भरकर बनाया जाता है। बहुत से लोग केवल प्याज के बजाय आलू-प्याज को भरकर भी इसे बनाते हैं। बरसात के दिनों में इसे दोपहर के समय खूब खाया जाता है। संभवतः इसके पीछे यह मान्यता है कि प्याज तेज धूप से बचाव करता है। और यह तो आप जानते ही हैं कि बरसात के मौसम की धूप बहुत तीखी होती है।

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