म्यूलिंग वैली : किस्सों से भरी यात्रा

म्यूलिंग घाटी

संजीव जिन्दल

ह यात्रा थी तो बहुत छोटी यानी कम अवधि की पर इसमें अनगिनत किस्से भरे हुए हैं। काफनू से म्यूलिंग वैली (Muling Valley) तक अपना सामान ले जाने के लिए मुझे और शालिनी को दो घोड़ों की जरूरत थी। सेब का सीजन चल रहा था इसलिए घोड़े मिलने में थोड़ी दिक्कत हुई। घोड़े तो मिल गये पर जिसके घोड़े थे उसको कोई काम पड़ गया। इस पर उसने हमारे टूर ऑपरेटर निखिल चौहान से कहा, “तुम घोड़े ले जाओ, मेरा जाना मुश्किल है। सहयोग के लिए अपने दोस्त संजय को भी साथ ले जाओ।” घोड़े पर सामान बांधने का भी एक स्टाइल होता है और वह हम लोगों में से किसी को भी नहीं आता था। जैसे-तैसे सामान बांधकर हम लोग गंतव्य की तरफ चल दिए। कई जगह रास्ता काफी संकरा था और हमारा सामान किसी ना किसी पेड़ से टकरा कर खुल जाता था। बार-बार सामान बांधते-सम्भालते हुए हम लोग आखिर म्यूलिंग वैली पहुंच ही गये। (Muling Valley: A Journey Full of Tales)

म्यूलिंग वैली हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले में समुद्र तल से 10,820 फीट की ऊंचाई पर एक बड़ा-सा घास का मैदान है। यहां घोड़ों पर से सामान उतार कर उन्हें घास चरने के लिए खुला छोड़ दिया। आसपास काफी घोड़े और गायें घास चर रही थीं। अगले दिन सुबह काफनू वापस जाने के लिए अपने घोड़ों की तलाश शुरू हुई। इधर मैं और शालिनी सारा सामान पैक करके उसके पास ही बैठे रहे। एक घण्टे की मशक्कत के बाद निखिल और संजय दोनों घोड़ों को घेर कर टैंट तक लाये। अब घोड़े किसी भी कीमत पर नकेल डलवाने के लिए तैयार नहीं थे। इस पर मैं भी निखिल और संजय के साथ घोड़ों के नकेल डालने की कोशिश करने लगा। सबकुछ बिल्कुल फिल्मी स्टाइल में हो रहा था और बहुत मजा आ रहा था। मैं नकेल लेकर घोड़े के पीछे-पीछे और घोड़ा आगे-आगे‌। बड़ी मुश्किल से एक घोड़ा नकेल डलवाने को तैयार हुआ। जब काफी प्रयास के बाद भी दूसरा घोड़ा तैयार नहीं हुआ तो हम लोग एक घोड़े पर ही आधा सामान लादकर वापस काफनू आ गए। बाकी आधा सामान समेट कर वहीं जंगल में छोड़ आये।

निखिल ने बताया कि यहां चोरी वगैरह का कोई डर नहीं है। जो कोई भी यहां चर रहे अपने घोड़ों या गायों को लेने आयेगा, वह हमारा सामान भी लेता आयेगा। उसकी बातों को सुनकर मैं और शालिनी आश्चर्यचकित होकर एक-दूसरे को देख रहे थे। जैसे-तैसे हम लोग काफनू पहुंचे। सामान उतारने के बाद पास में ही घोड़े वाले के घर पर उसका घोड़ा देने गये। घोड़ा देखकर वह बोला, “यह किसका घोड़ा ले आये, यह तो मेरा घोड़ा है ही नहीं।” यह सुनकर मेरा, शालिनी, निखिल और संजय का हंसी का फव्वारा छूट गया। घोड़े वाला बोला, “कोई बात नहीं, मैं कल जाऊंगा, अपने घोड़े भी ले आऊंगा और आपका बचा हुआ सामान भी।” सच में अद्भुत है किन्नौर और किन्नौर के लोग।

सफर में सावधानी : हाई एटीट्यूड के अनुसार खुद को ढालें

ऊंचे पहाड़ी क्षेत्रों में वायुमण्डलीय दाब कम होता है और वायु विरल। ऑक्सीजन की कमी की वजह से जी मिचलाने लगता है और सांस लेने में परेशानी का अनुभव होता है। मैदानी क्षेत्र के लोगों को तो उच्च पर्वतीय क्षेत्र में पहुंचने पर प्रायः सिर में दर्द होने लगता है और जी मिचलाने लगता है। आपमें से कई लोगों ने देखा भी होगा कि जो लोग केदारनाथ धाम हेलीकॉप्टर से जाते हैं, उनको हेलीकॉप्टर से उतरते ही इस तरह की परेशानी होने लगती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि आपके शरीर ने हाई एटीट्यूड (उच्च मनोवृत्ति) के अनुसार अपने आप को ढाला नहीं है। बदरीनाथ धाम में भी आप जब कार या बस से उतरते हैं तो कुछ-कुछ ऐसा ही होता है।

‌आप लोग जब भी उच्च पर्वतीय क्षेत्र में जायें तो कुछ बातों का ध्यान रखना बहुत जरूरी है। इन दिक्कतों से बचने के लिए आपको बैठना नहीं है। अपने साथियों के साथ कोई ना कोई एक्सरसाइज करनी है या खेल खेलना शुरू कर देना है। एक्सरसाइज या खेल हल्के-फुल्के होने चाहिए ताकि आपकी सांस ना चढ़े। आधे घंटे तक इस तरह करने पर आप अपने आपको वहां के वातावरण के हिसाब से ढाल लेंगे। मैं चूंकि आदतन घुक्कड़ हूं इसलिए इस तरह की परेशानियों के बारे में जानकारी है। यही कारण था कि म्यूलिंग वैली पहुंचते ही इससे बचने का उपाय शुरू कर दिया और 10,820 फीट की ऊंचाई पर पहली बार तलवारबाजी का मुकाबला हुआ जिसे शालिनी ने 3-2 से जीत लिया।

घुमक्कड़ी के दौरान मैंने देखा है कि ऊंचे-ऊंचे हिल स्टेशनों पर लोग अपनी कार से जाते हैं। होटल में जाकर कमरा लेते ही शराब की बोतल खोल लेते हैं और फिर लगातार उल्टी करते हैं। अरे भाई लोगों, शराब कहीं भागी नहीं जा रही है। पहले कम से कम आधा घंटा होटल के बाहर टहल लीजिये ताकि आपका शरीर और दिमाग हाई एटीट्यूड के एटमॉस्फियर के हिसाब से अपने आप को एडजस्ट कर लें। आसपास से दो डण्डे लेकर ही खेलना शुरू कर दीजिए। आपको खेल का मजा आयेगा और आपका शरीर वहां के वातावरण के अनुसार अपने आप को ढाल लेगा।

अगली बार जब भी आप समुद्र तल से 7,000 फिट से अधिक ऊंचाई पर स्थित स्थान पर जायें तो ऐसे ही छोटे-छोटे प्रयोग जरूर करें। फिर देखना, ना तो सिर दर्द होगा, ना ही उल्टी आयेगी और आपका ट्रिप सुपर हिट रहेगा।

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