कुदरत की गोद में सुयालबाड़ी का शानदार ढोकाने जलप्रपात

Dhokane_waterfalls

अमित शर्मा “मीत” @YatraPartner

4 नवम्बर 2021 का वह दिन जब एक “उम्रदराज नौनिहाल” संजीव जिन्दल और अपनी सवारी हीरो डेस्टिनी के संग ख़ुद की डेस्टिनी संवारने का एक ख़ूबसूरत मौका बना। हैरानी वाली बात यह कि बरेली से तकरीबन 100 किलोमीटर दूर जाने तक दोनों राहगीरों में से किसी को कोई ख़बर नहीं थी कि आख़िर जाना कहां है, मंज़िल क्या है? (Unplanned trip to Kumaon) हालांकि उससे एक दिन पहले तक यहां चलते हैं, वहां चलते हैं करते हुए तमाम जगहों का ज़िक्र आपस में किया जा चुका था पर तय कुछ नहीं कर पाये थे, सिवाय इसके कि सुबह ठीक 6 बजे गाड़ी उठाकर घर से चल देना है…बस! (Trip to Suyalbari)

बहरहाल, अल-सुबह जब हम निकले तो हाईवे पर कोहरे की धुंध के साथ-साथ ड्राइव करते हुए बदन की सिहरन और अंगुलियों की अकड़न सर्दी की दस्तक का बा-ख़ूबी बयां कर रहीं थी। रास्ते में एक टपरी पर गर्म चाय की चुस्कियों ने सर्द माहौल में थोड़ी गर्माहट तो पैदा की पर एक सर्द ख़लबली ज़ेहन में अभी भी उठ रही थी कि घर से निकल तो लिये हैं पर हम लोग आख़िर जायेंगे कहां? ख़ैर, अब पेट भी नाश्ते की गुहार लगाने लगा था सो उसे नज़रअन्दाज न करते हुए एक हिल्स-व्यू ढाबे पर नाश्ता किया और उसके बाद सीधा एनएच 109  (नैनीताल-अल्मोड़ा) का रास्ता पकड़ लिया और पहुंचे कैंची धाम (बाबा नीम करौली आश्रम) जो हल्द्वानी से तक़रीबन 45 किलोमीटर दूर है। इसके बारे में फिर कभी तफ़्सील से ज़िक्र करूंगा पर यह ज़रूर बताना चाहता हूं कि कैंची धाम ही वह जगह है जहां से अब हमारे अनजान सफ़र को मन्ज़िल मिलने वाली थी। यहीं बैठकर सब तय हुआ और फिर हम निकल पड़े कुदरत से रू-ब-रू होने।

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तकरीबन 30 किलोमीटर का रास्ता तय करने के बाद नैनीताल जिले में बसा एक ख़ूबसूरत गांव आया सुयालबाड़ी (Suyalbari) जिसकी गोद में थी हमारे आज की दिन की मन्जिल यानी ढोकाने वाटरफॉल (Dhokane Falls)। मुख्य मार्ग से नीचे को जाते हुए एक बेहद पथरीले-टूटे-फूटे रास्ता से गुजरते हुए हम लोग अपनी मंज़िल पर पहुंचे और पहुंचने के बाद वहां का नज़ारा देखकर हमारी आंखों से लेकर रूह तक को जो ठंडक पहुंची, उसके बाद तो बस शकील बदायुंनी साहब का यह शेर याद आ गया-

कोई दिलकश नजारा हो कोई दिलचस्प मंजर हो

तबीअत खुद बहल जाती है बहलाई नहीं जाती।

चारों ओर हरियाली से लदा घना जंगल, आस-पास पत्थरों की चट्टानें और इन सबके बीच से अपनी ही मस्ती में बहता हुआ समुद्र तल से 1395 मीटर की ऊंचाई पर यह ख़ूबसूरत झरना गर्मियों के मौसम में पर्यटकों के लिए ख़ासा आकर्षण का केंद्र रहता है। लेकिन, यहां नवम्बर में मौसम काफी सर्द रहता है और पर्यटक के नाम पर बस हम दो ही लोग थे जो हमारे लिए सबसे परफ़ेक्ट टाइमिंग थी क्योंकि हम दोनों को ही हमेशा तन्हाई और खामोशी रास आती है।

खैर! हिमांशु मेहता भाई की यहां टैंट हाउस सर्विस है सो उनके खजाने से झरने के ठीक सामने वाला शानदार टैंट ठहरने के लिए चुन लिया गया। अब जब फ़िज़ाओं में सर्द हवाओं के साथ धूप की गुनगुनाहट घुली हो और सामने एक ख़ूबसूरत अलमस्त झरना अपने पूरे शबाब पर हो तो इस सबके बीच सफर की थकान का दम तोड़ना वाजिब हो जाता है और यही हुआ भी। हमने तुरन्त ही टैंट में अपने बैग आदि रखे और चेंज करके पहुंच गये झरने को अपनी बाहों में भरने। अक्टूबर के आखिर में हुई 3-4 दिन की लगातार बारिश की वजह से झरने का प्रवाह बहुत तेज़ था। पहले पहल तो लगभग 6 डिग्री सेल्सियस तापमान और बेहद ठण्डे पानी ने बदन में कंपकंपी छुड़ा दी पर कुछ ही मिनटों में झरने और हमारे बीच अच्छा तालमेल बन गया। फिर क्या था! सर्दी का एहसास तो रह गया कोसों दूर और हम झरने में पड़े रहे घण्टा भर से भी ज्यादा, मानो किसी बच्चे को बहुत दिनों बाद पानी से खेलने को मिला हो।

 Dhokane_waterfalls

मैं जब भी क़ुदरत की गोद में होता हूं तो यूं लगता है जैसे मां की गोद में ही हूं, वही सुकून वही शांति। काफी देर बाद जब हम दोनों झरने से बाहर आये तो यूं लगा जैसे किसी ख्वाब से बाहर आ गये हों।

बहरहाल, झरने की मदहोशी से होश में आने के बाद वहीं पास में ही एक टूरिस्ट किचन में बनी बढ़िया तुलसी-अदरक चाय और मैगी गटकते हुए हम लोग देर तलक पहाड़ी के पीछे डूबते हुए सूरज की झरने पर बनती हुई तस्वीरों और कुदरत के सातों रंग से सराबोर इन्द्रधनुष को निहारते रहे। कुछ देर बाद ही सूरज ढल चुका था और अब हम लोग अपने टैंट में वापसी कर रहे थे।

क्या ही शानदार था सब कुछ! अब तैयारी थी रात में दीवाली मनाने की।

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