मावलिननॉन्ग : एशिया का सबसे स्वच्छ गांव

मावलिननॉन्ग

डॉ अपर्णा माथुर

छुट्टियों में घूमने का मन हो तो जरूरी नहीं कि किसी प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थल अथवा मशहूर हिल स्टेशन ही जाया जाये। भारत में तमाम ऐसे छोटे-छोटे कस्बे और गांव हैं जिन्हें प्रकृति ने खूबसूरती की नेमत खुले हाथों से दी है पर किस्मत ने उतनी प्रसिद्धि नहीं दी जिसके वे हकदार हैं। ऐसा ही एक गांव है मावलिननॉन्ग ((Mawlynnong)। यह जितना साफ-सुथरा है, उतना ही खूबसूरत भी है। डिस्कवर इंडिया द्वारा वर्ष 2003 में इसे “एशिया के सबसे स्वच्छ गांव” (The cleanest village in Asia) की उपाधि से सम्मानित किया गया था। 2005 में इसे भारत का सबसे साफ-सुथरा गांव चुना गया। इसको “भगवान का अपना बगीचा” भी कहा जाता है। (Mawlynnong: The cleanest village in Asia)

हरे-भरे पहाड़ों से घिरे और प्रकृति के अविश्वसनीय नजारों वाले इस गांव में पहुंचकर जब आप गहरी सांस लेते हैं तो रोम-रोम मानो पुलकित हो उठता है। तब समझ में आता है कि प्राकृतिक सौन्दर्य कैसा होता है और ताजी हवा में सांस लेने का आनन्द क्या होता है। निहायत ही साफ-सुथरा, फुलवारियों से सजा-महकता और पूर्वोत्तर की जनजातीय शैली के मकानों वाला यह गांव मेघालय की राजधानी शिलॉन्ग के 90 किलोमीटर दक्षिण में है।

साफ-सफाई के मामले में अव्वल रहने के साथ-साथ इस गांव की साक्षरता दर भी शत प्रतिशत है। गांव के अधिकतर लोग अंग्रेजी में ही बात करते हैं। भारत सरकार ने भले ही 2014 में खुले में शौच से मुक्ति का अभियान शुरू किया हो पर इस गांव में 2007 से ही हर घर में पक्का शौचालय है।

आपदा ने सुझायी साफ-सफाई की रहा

प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी अक्सर आपदा को अवसर में बदलने की बात करते हैं। इस गांव ने बार-बार फैलने वाली बीमारियों से सबक लिया। दरअसल, 1988 तक इस गांव में लगभग हर साल महामारी फैलती थी  और कई लोगों की मौत हो जाती थी। इस समस्या को देखते हुए एक शिक्षक रिशोत खोंगथोरम ने गांव के लोगों को स्वच्छता के बारे में जागरूक किया। पहले तो लोगों को इस मुहिम को लेकर काफी संकोच हुआ लेकिन इसका महत्व समझ में आने पर उन्होंने इसे पूरी तरह से अपना लिया। स्वच्छता के लिए एक समिति का गठन हुआ और इस तरह यह गांव के लिए एक अभियान बन गया।

यहां के लोग सफाईको लेकर इतने जागरूक हैं कि अगर सड़क पर चलते किसी व्यक्ति को कागज का एक टुकड़ा भी नजर आ जाये तो वह उसे उठा कर डस्टबिन में डालने के बाद ही आगे बढ़ता है। गांव में धूमपान पर प्रतिबन्ध है और यदि कोई व्यक्ति सिगरेट-बीड़ी पीता दिख जाये तो उसको जुर्माना भरता पड़ता है। यहां सड़क पर घूमता एक भी मवेशी नजर नहीं आता। घरों से निकलने वाले कूड़े-कचरे को बांस से बने डस्टबिन में जमा करने के बाद उससे जैविक खाद तैयार की जाती है। खेतो में जैविक खाद का ही इस्तेमाल करने की वजह से यहां के कृषि उत्पादों को बाजार में ज्यादा दाम मिलते हैं।

ऐसे पहुंचें

वायु मार्ग : निकटतम हवाईअड्डा शिलॉन्ग का उमरोई एयरपोर्ट यहां से करीब 103 किलोमीटर दूर है।  

रेल मार्ग : मेघालय का एकमात्र रेलवे स्टेशन मेंडीपथार (मेंहदी पत्थर) यहां से करीब 297 किमी दूर है। असम का गुवाहाटी रेलवे स्टेशन यहां से करीब 169 किमी पड़ता है।

सड़क मार्ग : शिलॉन्ग और चेरापूंजी से यहां के लिए बस और टैक्सी मिलती हैं।

Written by Dr. Aparna Mathur

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