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सिक्किम की जीवनरेखा तीस्ता की सहायक नदी रानीखोला के पश्चिम में बसे गंगटोक (Gangtok) पहुंचे तो ढलता हुआ दिन सुरमई होने लगा था। होटल में औपचारिकताएं पूरी कर अपने कमरे में पहुंचे तो सामने एमजी रोड पर स्ट्रीट लाइट रोशन होने लगी थीं। सड़क मार्ग से साढ़े चार घण्टे के सफर ने काफी थका दिया था पर कप की चाय खत्म होने तक खिड़की से झांकता गंगटोक (Gangtok) जगमगा उठा। सामने की सड़कों से लेकर ऊपर पहाड़ों तक जगमगाते बिजली के लट्टुओं ने ऐसा अलौकिक दृश्य पेश किया कि सारी थकान दूर हो गयी। (Gangtok: City of hardworking emperors)
कुछ ही देर बाद हम गंगटोक शहर का दिल कहलाने वाली एमजी रोड पर थे। यह सड़क सिक्कम की राजधानी गंगटोक (Gangtok) का शॉपिंग हब है। यहां कई तरह की दुकानें, रेस्तरां और होटल हैं। पर्यटक यहां से तरह-तरह के सामान के साथ ही सिक्किम के हस्तशिल्प उत्पाद खरीद सकते हैं। इस साफ-सुथरे बाजार में वाहन ले जाने पर प्रतिबन्ध है। ऐसे में आप यहां निश्चिन्त होकर घूम सकते हैं। इसके अलावा यहां के पुराने बाजार, लाल बाजार, नया बाजार भी घूम सकते हैं जहां आपको तिब्बती और स्थानीय कलाकृतियां मिल जायेंगी।
गंगटोक का पुराना नाम है गन्तोक। तिब्बती भाषा के इस शब्द का अर्थ है पहाड़। सिक्किम का यहा सबसे बड़ा शहर एक प्रमुख बौद्ध तीर्थस्थल के रूप में उभरा है। यहां कई ऐतिहासिक मठ हैं जिसके चलते इसे “लैण्ड आँफ मोनास्ट्री” भी कहा जाता है। यह शहर हिमालय की शिवालिक पहाड़ियों पर समुद्र तल से 1,437 मीटर की ऊंची पर स्थित है। यहां प्राचीन मन्दिर, महल और मठ पर्यटकों को मानो सपनों की दुनिया में ले जाते हैं। आवारा बादलों से घिरे रहने वाले इस सुन्दर पर्वतीय शहर के कई स्थानों से दुनिया के तीसरे सबसे ऊंचे पर्वत शिखर कन्चनजंघा के भव्य दृश्य दिखायी देते हैं।
गंगटोक (Gangtok) शहर जितना खूबसूरत है, यहां का जीवन उतना ही कठिन है। यहां के लोगों ने अपनी मेहनत से न केवल इसके पुराने स्वरूप को बनाये रखा है बल्कि प्राकृतिक धरोहरें को भी सजाया-संवारा है। तमाम कठिनाइयों के बावजूद गंगटोक को बेहतर शहर बनाने के चलते इसे “मेहनतकश बादशाहों का शहर” नाम भी दिया गया है।
गंगटोक (Gangtok) के इतिहास के बारे में ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है। करीब 200 साल पहले इनहेंची मठ के निर्माण के बाद यह एक छोटा बौद्ध तीर्थस्थल बन गया। ब्रिटिश आक्रमण के बाद यह सिक्किम का एक प्रमुख शहर बना और फिर तिब्बत और ब्रिटिश-भारत के बीच व्यापार का प्रमुख केंद्र बन गया। नगर की ज्यादातर सड़कों का निर्माण भी इसी कालखण्ड में हुआ था।
गंगटोक व आसपास के दर्शनीय स्थल
त्सोमगो चांगू झील (Tsomgo Changu Lake) :
यह हिमनद झील गंगटोक से 40 किलोमीटर की दूरी पर समुद्र तल से 12,310 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। पहाड़ों से घिरी यह झील अपना पानी पिघलती बर्फ से इकट्ठा करती है। मौसम के साथ अपना रंग बदलने वाली यह झील सर्दी के मौसम में जमी रहती है जबकि गर्मियों में इसके चारों ओर फूल खिलते हैं। ऐसा कहा जाता है कि पुराने समय में बौद्ध भिक्षु इसके रंग को देखकर ही भविष्यवाणी किया करते थे।सुरक्षा कारणों से इस झील को एक घण्टे से अधिक समय तक नहीं घूमा जा सकता। यहां से आगे केवल एक सड़क जाती है जो नाथूला दर्रे तक पहुंचाती है।
नाथूला दर्रा (Nathula Pass) : भारत और तिब्बत के बीच पुराने सिल्क रूट पर गंगटोक से 56 किलोमीटर पूर्व में स्थित यह दर्रा समुद्र तल से 14,140 फीट की ऊंचाई पर है। केवल भारतीय नागरिक ही यहां जा सकते हैं और इसके लिए भी उन्हें गंगटोक से पारपत्र (पास) बनवाना होता है। यहां तक पहुंचने के लिए खड़ी और फिसलन भरी ढलानों वाली सड़क पर ड्राइविंग करनी होती है। शरद और ग्रीष्म ऋतुओं में यहां बड़ी संख्या में पर्यटक पहुंचते हैं। सर्दियों में यहां भारी हिमपात होता है जिसके चलते यह सड़क अक्सर बन्द रहती है।
नामग्याल तिब्बत अध्ययन संस्थान :
बौद्ध धर्म में रुचि ऱखने वालों को इस संस्थान को अवश्य देखना चाहिए। भारत में यह अपनी तरह का एकमात्र संस्थान है। यहां बौद्ध धर्म से सम्बन्धित अमूल्य प्राचीन अवशेष और धर्मग्रन्थ रखे हुए हैं। यहां तिब्बती भाषा, संस्कृति, दर्शन और साहित्य की शिक्षा दी जाती है।सिक्किम के शासक 11वें चोग्याल सर ताशी नामग्याल ने 1958 में इसकी स्थापना की थी। इसे तिब्बत अध्ययन शोध संस्थान भी कहा जाता है।
रुमटेक मठ (Rumtek Monastery) :
सिक्किम के इस सबसे पुराने मठ कोघूमे बिना गंगटोक का सफर अधूरा माना जाता है। गंगटोक से 24 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह मठ करीब 300 वर्ष पुराना है। 1960 के दशक में इसका पुनर्निर्माण किया गया था। इस मठ में एक विद्यालय तथा ध्यान साधना के लिए एक अलग खण्ड है। मठ में बहुमूल्य थंगा पेंटिग और बौद्ध धर्म के कग्यूपा सम्प्रदाय से सम्बन्धित वस्तुएं सुरक्षित रखी गयी हैं। धर्मालाप के सत्रों में यहां अनेक यात्री आते हैं। यहां फरवरी में तिब्बती नववर्ष से दो दिन पूर्व चाम नृत्य का आयोजन किया जाता है।
त्सुक ल खंग मठ :
रॉयल पैलेस के परिसर में स्थित इस मठ का निर्माण राजा थेथुटोब नामग्याल ने 1898 में कराया था। इस खूबसूरत मठ में बौद्ध धर्म से सम्बन्धित प्राचीन ग्रन्थों का संग्रह है। दीवारों पर भगवान बुद्ध व बौद्ध धर्म से सम्बन्धित महत्वपूर्ण घटनाओं के चित्र बने हुए हैं। इस मठ को “लोसार पर्व” के दौरान आम लोगों और पर्यटकों के लिए खोला जाता है।
इनहेंची मठ : इनहेंची का शाब्दिक अर्थ होता है निर्जन। जिस समय इस मठ का निर्माण हो रहा था, इस पूरे क्षेत्र में और कोई भवन नहीं था। निगमापा शैली में बना यह आकर्षक गोम्पा गंगटोक शहर के मध्य से तीन किमी उत्तर पूर्व में एक ऊंची पहाड़ी पर है। इसका मुख्य आकर्षण जनवरी में यहां होने वाला विशेष नृत्य है जिसे चाम कहते हैं। द्रुपटोब कारपो को समर्पित इस मठ की स्थापना मूल रूप से 200 वर्ष पहले हुई थी। वर्तमान में जो मठ है वह 1909 में बना था। द्रुपटोब कारपो को उनकी जादुई शक्तियों के लिए याद किया जाता है। यहां से कंचनजंघा शिखर का सुन्दर दृश्य दिखता है।
हिमालयन जूलॉजिकल पार्क (Himalayan Zoological Park) : 205 हेक्टेयर में फैला यहजूलॉजिकल पार्क गंगटोक से तीन किमी दूर बुलबुली में स्थित है। समुद्र तल से 1780 मीटर की ऊंचाई पर स्थित इस स्थान पर हिम तेंदुआ, जंगली बिल्ली, लिंग, हिमालयन पाम सिवेट, हिमालयन लाल पांडा, हिमालयन मोनाल तीतर, क्रिमसन सींग वाले तीतर, हिमालयन काले भालू आदि देखे जा सकते हैं। यहां से माउण्ट खंगचेंदज़ोंगा का बेहद खूबसूरत नजारा दिखाई देता है। इस पार्क की स्थापना 1991 में हुई थी।
दो द्रूल चोर्टेन :
गंगटोक के प्रमुख आकर्षणों में एक इस स्थान को सिक्किम का सबसे महत्वपूर्ण स्तूप माना जाता है। इसकी स्थापना त्रुलुसी रिमपोचे ने 1945 में की थी जो बौद्ध धर्म के नियंगमा सम्प्रदाय के प्रमुख थे। इस मठ का शिखर सोने का बना हुआ है। मठ में 108 मणि लाहोर (प्रार्थना चक्र) हैं। इस मठ में गुरु रिमपोचे की दो प्रतिमाएं स्थापित हैं।
सांगो-चोलिंग : सिक्किम का दूसरा सबसे पुराना मठ सांगो-चोलिंग पिलींग से कुछ ही दूरी पर है। यह सिक्किम के महत्वपूर्ण मठों में से एक है। इसकी दीवारों पर बहुत ही सुन्दर चित्रकारी की गयी है।
पेमायनस्ती मठ : यह मठ ग्यालसिंग से करीब छह किलोमीटर पड़ता है। इस प्रतिष्ठित मठ में बौद्ध धर्म की प्राथमिक, सेकेण्डरी और उच्च शिक्षा प्रदान की जाती है। यहां 50 बिस्तरों का एक विश्राम गृह भी है जहां पर्यटक को भी ठहरने की सुविधा प्रदान की जाती है। इस मठ में कई प्राचीन धर्मग्रन्थों और अमूल्य प्रतिमाओं का संग्रह है। यहां हर साल फरवरी में बौद्ध मेला लगता है।
ऑर्किड अभयारण्य : इस अभयारण्य में सिक्किम में पाये जाने वाले 454 किस्म के ऑर्किडों को रखा गया है। इनमें से कुछ आर्किड और किसी स्थान पर नहीं पाये जाते। अप्रैल से मई के मध्य तक का तथा सितम्बर से दिसम्बर के बीच का समय यहां आने का सर्वश्रेष्ठ समय है। इसके अलावा गंगटोक से 12 किलोमीटर दक्षिण में एक और ऑर्किड सेन्चुरी ऑर्किडेरियम भी है।
ताशी व्यू पॉइन्ट :
मध्य गंगटोक से आठ किमी दूर स्थित ताशी व्यू पॉइन्ट से हिमालय के कन्चनजंघा और सनिलोच शिखरों का भव्य नजारा देखने को मिलता है। इस जगह का निर्माण 1914 से 1963 के बीच सिक्किम के राजा रहे ताशी नामग्याल द्वारा कराया गया था। यहां स्थित मठ एक पवित्र बर्त्तन “बूमचू” के लिए प्रसिद्ध है। माना जाता है कि इस बर्तन में ऱखा पवित्र जल 300 वर्षों से ज्यों का त्यों है।
रेशी हॉट वॉटर स्प्रिंग्स :
रेशी के गर्म झरने रंगित घाटी की ओर ढलान पर स्थित हैं। ये झरने या चा-चू प्राचीन काल से शीतकालीन स्पा के रूप में इस्तेमाल किये जाते रहे हैं। यहां पर ल्हो खांद्रो सांग फुग नाम का एक छोटा मठ है जिसका अर्थ है “जादू-टोना करने वाली परियों की गुफा”। नदी के किनारे बनी इस गुफा के कारण ऐसा माना जाता है कि इन झरनों में नहाने से त्वचा के सभी रोग दूर हो जाते हैं। यहां आने वाले पर्यटक और तीर्थयात्री एक सप्ताह या उससे भी ज्यादा समय तक इन झरनों में स्नान करते हैं। यहां पर्यटकों के रुकने और आराम करने के लिए सस्ते किराये पर अस्थायी झोपड़ियां और बर्तन मिल जाते हैं। आसपास की दुकानों पर रोजमर्रा का सामान, शाक-सब्जियां भी मिल जाती हैं।
सेवेन सिस्टर्स वॉटरफॉल (Seven Sisters Waterfall) :
जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, सेवन सिस्टर्स वाटरफॉल्स में सात अलग-अलग जलप्रपात शामिल हैं जो एक ऊबड़-खाबड़ चट्टान पर अगल-बगल मौजूद हैं। यह जलप्रपात गंगटोक-लाचुंग राजमार्ग पर गंगटोक से 32 किलोमीटर की दूरी पर है। बारिश के समय इन झरनों की सुन्दरता कई गुना बढ़ जाती है।
भंजकरी जलप्रपात : यह जलप्रपात गंगटोक से करीब 11 किलोमीटर दूर रंका मठ के रास्ते पर है। यह प्रपात करीब 40 फीट ऊंचा है। इसके पास ही स्थित एनर्जी पार्क भी पर्यटकों के लिए मुख्य आकर्षण केन्द्र है। इस पार्क में पर्यटकों के रुकने की जगह के अलावा स्विमिंग पूल भी है।
लाम्पोखरी आरिटार : यह झील गंगटोक से करीब 70 किलोमीटर दूर है। चारों ओर से पहाड़ियों से घिरी यह झील एक किलोमीटर लम्बी और 50 फीट तक गहरी है। यहां पर अनेक दर्शनीय स्थल हैं। पाक्योंग अथवा रम्फू होते हुए यहां टैक्सी से पहुंचा जा सकता है।
पिलींग : गंगटोक के पश्चिम में करीब 145 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह स्थान अपनी प्राकृतिक सुन्दरता के लिए जाना जाता है। यहां से कन्चनजंघा शिखर का विहंगम दृश्य दिखता है। यहां से यह शिखर इतना करीब लगता है मानो यह आपके बगल में ही है और आप इसे छू सकते हैं।
डीयर पार्क :
यहां प्राकृतिक वातावरण में विचरण करते हिरणों को देख सकते हैं। प्रात: सात से आठ बजे के बीच यहां बड़ी संख्या में हिरण चरते हुए दिख जायेंगे।
गणेश टोक :
भगवान गणेश का यह मन्दिर एक पहाड़ी पर स्थित है। यहां से आसपास के सुन्दर दृश्यों को साथ ही कन्चनजंघा शिखर के भव्य दर्शन किये जा सकते हैं। यह मन्दिर प्रातः छह बजे से सायंकाल सवा सात बजे तक श्रद्धालुओं के लिए खुला रहता है।
गंगटोक घूमने का सही समय
गंगटोक एक शानदार हिल स्टेशन है जहां किसी भी समय घूमने के लिए जाया जा सकता है। मार्च से लेकर जून के बीच यहां का मौसम अत्यन्त सुखद होता है। हालांकि यहां घूमने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से फरवरी के बीच का है। इस दौरान यहां का तापमान कई बार शून्य से काफी नीचे चला जाता है। हिमपात के कारण घाटियां और पर्वत बर्फ से ढके होते हैं जिनकी रहस्यमय सुन्दरता सैलानियों को मुग्ध कर देती है। जुलाई से सितम्बर के बीच यहां बारिश का मौसम होता है। इस दौरान वर्षाजल से धुले पहाड़ और पेड़-पौधे कभी किसी रहस्यलोक तो कभी किसी पेन्टिंग का एहसास कराते हैं। फिर भी मानसून काल में यहां जाने से बचना ही बेहतर है क्योंकि भारी बारिश होने पर असुविधा हो सकती है।
ऐसे पहुंचें
वायु मार्ग : पूर्वोत्तर का पहला ग्रीनफील्ड एयरपोर्ट पाक्योंग गंगटोक से 35 किलोमीटर दूर है। यहां के लिए बहुत कम उड़ानें हैं जो अक्सर स्थगित होती रहती हैं। गंगटोक का निकतम बड़ा हवाईअड्डासिलीगुड़ी के पश्चिम में स्थितबागडोगरा इण्टरनेशनल एयरपोर्ट है। दिल्ली, बंगलुरु, चेन्नई, गुवाहाटी और कोलकाता से यहां के लिए नियमित उड़ानें हैं। करीब 123 किलोमीटर दूर स्थित इस हवाईअड्डे से गंगटोक पहुंचने में चार से साढ़े चार घण्टे लगते हैं।
रेल मार्ग : सिलीगुड़ी जंक्शन गंगटोक से करीब 111 किमी दूर है। देश के कई प्रमुख शहरों से यहां के लिए ट्रेन मिलती हैं। आप गंगटोक जाने के लिए न्यू जलपाईगुड़ी की ट्रेन भी पकड़ सकते हैं।
सड़क मार्ग : राष्ट्रीय राजमार्ग 10 गंगटोक को पश्चिम बंगाल के कलिम्पोंग और सिलीगुड़ी से जोड़ता है।सिलिगुड़ी, दार्जीलिंग, कलिम्पोंग और करसेयोंग से गंगटोक के लिए बस चलती हैं। बस से यात्रा में समय ज्यादा लगता है। समय की बचत करनी हो तो टैक्सी या कैब बुक कर सकते हैं।