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कावेरी के डेल्टा क्षेत्र में जगह-जगह भव्य मन्दिर, किला, महल और लहलहाते खेत। यह तन्जावूर (तन्जौर-Thanjavur) है, तमिलनाडु का एक ऐतिहासिक नगर जो तन्जावूर जिले का मुख्यालय भी है। चेन्नई से लगभग 351 किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में कावेरी नदी के तट पर स्थित इस शहर में 75 से अधिक छोटे-बड़े मन्दिर हैं जिस कारण इसे “मन्दिरों की नगरी” भी कहा जाता है। दक्षिण के प्रतापी चोल वंश ने 400 वर्ष से भी अधिक समय तक तमिलनाडु पर राज किया। चोल साम्राज्य के संस्थापक थे विजयालय। उन्होंने पल्लवों को हराकर 8वीं शताब्दी के मध्य तन्जौर साम्राज्य पर अधिकार कर लिया और शक्तिशाली चोल साम्राज्य की स्थापना की। तन्जावूर (Thanjavur) को चोल साम्राज्य की प्राथमिक राजधानी बनाया गया था। चोल काल में तन्जावूर ने बहुत उन्नति की। इसके बाद नायक और मराठों ने यहां शासन किया। (Thanjavur: The City of Temples)
तन्जावूर (Thanjavur) दक्षिण भारतीय कला और वास्तुकला का एक महत्वपूर्ण केन्द्र है। तन्जौर चित्रकाला की अत्यंत समृद्ध विरासत है और यह अपनी विशिष्ट शैली के लिए प्रसिद्ध है। तन्जौर चित्रकला शास्त्रीय दक्षिण भारतीय चित्रकला के सबसे लोकप्रिय रूपों में से एक है। चोल वंश की राजधानी तन्जावूर में इस कला का पैटर्न फला-फूला और इसी के चलते इसे तन्जौर चित्रकला के रूप में जाना जाता है। इसके अलावा यहां तन्जौर प्लेट्स, पंचलोहा प्रतिमाएं, लकड़ी पर नक्काशी वाली कलाकृतियां और पूजन सामग्री भी खरीदी जा सकती है। कावेरी के उपजाऊ डेल्टा क्षेत्र में होने के कारण इसे दक्षिण में “चावल का कटोरा” के नाम से भी जाना जाता हैं।
प्रमुख दर्शनीय स्थल
बृहदेश्वर मन्दिर :
यूं तो पूरा तन्जावूर ही तीर्थ क्षेत्र है पर इसकी खास पहचान है बृहदेश्वर मन्दिर जिसे पेरुवुटैयार कोविल भी कहते हैं। पूरी तरह से ग्रेनाइट निर्मित यह मन्दिर भारतीय शिल्प और वास्तुकला का अदभुत उदाहरण है। इसका निर्माण 11वीं सदी में महान चोल राजा राजराज चोल ने करवाया था। इसके दो तरफ खाई है जबकि एक ओर अनाईकट नदी बहती है। इस मन्दिर में गर्भगृह के ऊपर 216 फुट ऊंची मीनार है जिसके ऊपर कांसे का स्तूप है। मन्दिर की दीवारों पर चोल और नायक काल के चित्र हैं जो अजन्ता की गुफाओं की याद दिलाते हैं। मन्दिर के अन्दर नन्दी की 12 फीट ऊंची और 25 टन वजनी विशाल प्रतिमा है। नन्दी को धूप और वर्षा से बचाने के लिए मण्डप बनाया गया है। इस मन्दिर में मुख्य रूप से तीन उत्सव मनाए जाते हैं- मसी माह (फरवरी-मार्च) में शिवरात्रि, पुरत्तसी (सितम्बर-अक्टूबर) में नवरात्र और ऐपस्सी (नवम्बर-दिसम्बर) में राजराजन उत्सव।
एयरवतेश्वर मन्दिर : यह भगवान शिव को समर्पित एक प्राचीन भव्य मन्दिर है जिसका सम्बन्ध पौराणिक काल से बताया जाता है। किंवदन्ती है कि इस मन्दिर में भोलेनाथ के सफेद हाथी (वायुवता) ने ऋषि दुर्वासा द्वारा दिए गये शाप से छुटकारा पाने के लिए भगवान शिव की पूजा की थी। मृत्यु के देवता यमराज ने भी अपनी शारीरिक तकलीफों को दूर करने के लिए यहीं भोलेनाथ की आराधना की थी। इस मन्दिर का निर्माण चोल राजाओं द्वारा करवाया गया था।
गंगाकोन्डा मन्दिर : करीब एक हजार साल पुराना यह मन्दिर अपनी आकर्षक नक्काशी के लिए जाना जाता है। इसके ऐतिहासिक महत्व को देखते हुए इसे यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर घोषित किया गया है।
सिक्कल सिंगरवेलवर मन्दिर : यह मन्दिर तन्जावूर से 80 किलोमीटर दूर नागापट्टनम-तिरुवरूर मुख्य मार्ग पर स्थित है। माना जाता है कि भगवान मुरुगन ने यहीं पर पार्वती से शक्ति वेल प्राप्त किया और सूरन का वध किया था। यह तमिलनाडु के उन कुछ मन्दिरों में से एक है जहां भगवान शिव और विष्णु की मूर्तियां एक साथ एक ही मन्दिर में स्थापित हैं। तमिल पंचांग के अनुसार लिप्पसी माह में यहां वेल वैकुन्ठल उत्सव धूमधाम से मनाया जाता है।
स्वामीमलै मन्दिर : तन्जावूर से 32 किलोमीटर दूर स्थित स्वामीमलै (स्वामीमलई) उन छह मन्दिरों में से एक है जो भगवान मुरुगन को समर्पित हैं। भगवान मुरुगन ने ऊं मंत्र का उच्चारण किया था, इसलिए उनका नाम स्वामीनाथम पड़ गया। मन्दिर की 60 सीढ़ियां तमिल पंचांग के 60 वर्षों की परिचायक हैं। यहां के मुख्य स्वामीमलै मुरुगन मन्दिर में नीचे सुन्दरेश्वर लिंग (शिव) और मीनाक्षी (पार्वती) हैं तथा
लगभग 60 फीट (18 मीटर) ऊंची पहाड़ी पर सीढ़ियों से जाने पर स्वामी कार्तिकेय का मन्दिर है।
वैठीश्वरन कोवली : यह प्राचीन मन्दिर भगवान शिव को समर्पित है जिसका गुणगान अनेक सन्त कवियों ने अपनी रचनाओं में किया है। इसके स्तम्भों और मण्डपों की सुन्दरता अद्वितीय है जिसे देखने के लिए दुनियाभर से श्रद्धालु यहां आते हैं। कहा जाता है कि मंगल, कार्तिकेय और जटायु ने यहां भगवान शिव की स्तुति की थी। इस मन्दिर को “अगरकस्थानम” भी माना जाता है।
थन्जाई ममनी कोइल :
थन्जाई ममनी कोइल तन्जावुर में स्थित भगवान विष्णु को समर्पित तीन मन्दिरों का समूह और यह दिव्य देशमों में से एक है। यहां मुख्य रूप से भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार का पूजन किया जाता है जो उन्होंने अपने भक्त प्रह्लाद को बचाने और राजा हिरण्यकश्यप का वध करने के लिए लिया था। यहां केएक मन्दिर में माता लक्ष्मी उग्र विष्णु के दाहिनी ओर विराजमान हैं।
बंगारू कामाक्षी अम्मन मन्दिर :
बंगारू कामाक्षी अम्मन तन्जावूर के वेस्ट मेन स्ट्रीट पर स्थित है। बंगारू शब्द का अर्थ है “सोना”। यह देवता के स्वर्ण शरीर का एक स्पष्ट सन्दर्भ है। यहां देवी प्रतिमा का चेहरा काला है। श्रद्धालु यहां देवी कामाक्षी की पूजा करने के लिए आते हैं। देवी कामाक्षी की मूर्ति पहले कहीं और स्थित थी जिसे विदेशी आक्रान्ताओं के हमलों के मद्देनजर पुजारी यहां ले आये। बंगारू कामाक्षी देवी मन्दिर की केन्द्रीय देवता हैं और गर्भगृह में निवास करती हैं।
चन्द्र भगवान मन्दिर : चन्द्र भगवान यानि चन्द्रमा को समर्पित यह मन्दिर तन्जावूर शहर के मध्य से करीब 16 किलोमीटर दूर है। यूं तो यहां रोजाना सैकड़ों श्रद्धालु आते हैं पर इनमें सर्वाधिक संख्या ऐसे लोगों की होती है जिनकी कुण्डली में चन्द्र दोष है।
शिवगंगा किला : नायक शासक सेवप्पा नायक ने 16वीं शताब्दी के मध्य में इस किले का निर्माण करवाया था। 35 एकड़ में बने इस किले की दीवारें पत्थर की हैं जो सम्भवत: आक्रमणकारियों से बचने के लिए बनायी गयी थीं। किले में वर्गाकार शिवगंगा कुण्ड शहर में पीने के पानी की आपूर्ति के लिए बनाया गया था। बृहदीश्वर मन्दिर, स्वार्ट्ज चर्च और सार्वजनिक मनोरंजन पार्क इसी किले में हैं।
तन्जौर महल : यह सुन्दर और भव्य इमारतों की एक श्रृंखला है जिनमें से कुछ का निर्माण नायक वंश ने 1550 ईसवी के आसपास कराया था और कुछ का निर्माण मराठों ने कराया था। महल क्षेत्र के दक्षिण में आठ मंजिला गुडापुरम है जो 190 फीट ऊंचा है। इसका इस्तेमाल आसपास की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए किया जाता था।
सरस्वती महल पुस्तकालय :
इस पुस्तकालय की स्थापना छत्रपति शिवाजी महाराज के वंशज राजा सरफोजी महाराज ने की थी। इस पुस्तकालय में भारतीय और यूरोपीयन भाषाओं में लिखे 44,000 से ज्यादा ताम्रपत्र और कागज की पाण्डुलिपियां हैं। इनमें से 80 प्रतिशत से अधिक पाण्डुलिपियां संस्कृत में हैं। कुछ पाण्डुलिपियां तो बहुत ही दुर्लभ हैं जिनमें तमिल में लिखी औषधि विज्ञान की पाण्डुलिपियां भी शामिल हैं।
रॉयल संग्रहालय : इस संग्रहालय में पल्लव, चोल, पंड्या और नायक कालीन पाषाण प्रतिमाओं का संग्रह है। एक अन्य दीर्घा में तन्जौर की ग्लास पेंटिंग्स प्रदर्शित की गयी हैं। लकड़ी पर बनायी गयी इन तस्वीरों में रंग-संयोजन देखते ही बनता है। यह संग्रहालय अपने कांस्य शिल्प के संग्रह के लिए भी प्रसिद्ध है।
स्वार्ट्ज चर्च : शिवगंगा कुंड के पूर्व में स्थितस्वार्ट्ज चर्च (क्राइस्ट चर्च) तन्जावूर में औपनिवेशिक शासन की याद दिलाता है। इसकी स्थापना रेवरेंड फ्रैडरिक क्रिश्चियन स्वार्ट्ज ने 1779 में की थी। स्वार्ट्ज ने अपने जीवन का शेष समय यहीं बिताया और बच्चों को शिक्षित करने के अलावा धर्मं का प्रचार भी किया। 1798 में उनकी मृत्यु के पश्चात मराठा सम्राट सफरोजी ने उनकी याद में चर्च के पश्चिमी छोर पर संगमरमर का एक शिलाखंड लगवाया था।
तिरुवरूर : कर्नाटक संगीत के त्रिमूर्ति- त्यागराज, समाया शास्त्री और मुथेस्वामी दिक्षाशिताहर का जन्म यहीं हुआ था।तन्जावूर से 13 किलोमीटर दूर इस स्थान पर सन्त त्यागराज ने अपना पूरा जीवन बिताया और यहीं पर समाधि ली थी। सन्त त्यागराज की याद में यहां हर साल जनवरी में आठ दिन का संगीत समारोह आयोजित किया जाता है। चोल वंश के महान राजा कुलोथुंगा ने भी इस शहर पर काफी लम्बे समय तक शासन किया था।
त्यागराजस्वामी मन्दिर : तन्जावुर से 55 किलोमीटर दूर स्थित त्यागराजस्वामी मन्दिर (वादीवुदई अम्मन मन्दिर) तमिलनाडु का सबसे बड़ा रथ शैली का मन्दिर है। यहां त्यागराज, कमलम्बा और वनमिक नथर का निवास है। मन्दिर के स्तम्भ और कमरे बहुत ही सुन्दर हैं। राजराज चोल त्यागराज स्वामी के परम भक्त थे।
कब जायें
तन्जावूर उष्णकटिबन्धीय जलवायु क्षेत्र में स्थित है। गर्मी के मौसम के में यहां चिलचिलाती धूप पड़ती है और उच्च आर्द्रता का अनुभव होता है जबकि मानसून के दौरान बारिश की वजह जन-जीवन प्रभावित रहता है। यहां घूमने के लिए अक्टूबर से फरवरी के बीच का समय सबसे अच्छा होता है।
ऐसे पहुंचें तन्जावूर
वायु मार्ग : निकटतम हवाई अड्डा तिरुचिरापल्ली इण्टरनेशनल एयरपोर्ट यहां से करीब 62 किलोमीटर दूर है।
रेल मार्ग : तन्जावूर का रेलवे जंक्शन त्रिची है जो चेन्नई और तिरुचिराल्ली से सीधी रेल सेवा द्वारा जुड़ा हुआ है।
सड़क मार्ग : तमिलनाडु के सभी प्रमुख शहरों से तन्जावूर के लिए सरकारी बस सेवा है। कोच्चि, एर्नाकुलम, तिरुवनन्तपुरम और बंगलुरू से भी यहां सड़क मार्ग से पहुंचा जा सकता है।