मीनाक्षी अम्मन मन्दिर : यहां शिव के साथ हुआ था विष्णु की बहन का विवाह

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“विराट, भव्य और अद्भुत जैसे शब्द भी जिसकी प्रशंसा में कम पड़ जायें वह मन्दिर कैसा होगा आप कल्पना कीजिये।” कुछ दिन पहले ही तमिलनाडु घूमकर आये रिश्ते के एक हमउम्र मामा ने मेरे समक्ष पहेलीनुमा यह वाक्य उछाल दिया था। जवाब में मैंने रामनाथस्वामी मन्दिर (रामेश्वरम), बृहदेश्वर मन्दिर, कैलासनाथर मन्दिर आदि नाम गिना दिये। मामाजी की गर्दन हिली और भावहीन चेहरे पर होंठ फडफड़ाये, “कभी दक्षिण जाना हो तो मीनाक्षी मन्दिर में दर्शन-पूजन अवश्य करना।”

मामाजी की इस सलाह के करीब दो साल बाद मीडियाकर्मियों के एक दल के साथ चेन्नई जाना हुआ। वहां दो दिन के कार्यक्रम में शामिल होने के बाद साथियों ने दिल्ली की ट्रेन पकड़ी और मैं काफी पहले से बुक कराया गया टिकट लेकर मदुरै के हवाईजहाज में सवार हो गया। मदुरै एयरपोर्ट पर हवाईजहाज के लैंड करने तक शाम के आठ बजे चुके थे। ऐसे में पास के ही एक होटल में कमरा ले लिया। अगले दिन सवेरे टैक्सी कर मीनाक्षी मन्दिर की राह पकड़ी। इस मन्दिर के प्रवेश द्वार कई किलोमीटर दूर से नजर आने लगते हैं। लगता है कि हर प्रवेश द्वार हमारा ही इंतजार कर रहा है।

सवेरे का समय होने के चलते ट्रैफिक कम था और मैं 15 मिनट में ही मीनाक्षी मन्दिर पहुंच गया। देश के सबसे अमीर मन्दिरों में शामिल इस धर्मस्थल को मीनाक्षी सुन्दरेश्वरर मन्दिर और मीनाक्षी अम्मन मन्दिर भी कहा जाता है। वैगई नदी के तट पर स्थित इस मन्दिर को दुनिया के सात नये अजूबों के लिए भी नामित किया गया है।

यह मन्दिर भगवान शिव (सुन्दरेश्वरर) एवं उनकी भार्या देवी पार्वती (मीनाक्षी या मछली के आकार जैसी आंखों वाली देवी के रूप में) को समर्पित है। देवी मीनाक्षी भगवान शिव की पत्नी पार्वती का अवतार और भगवान विष्णु की बहन हैं। पौराणिक कथानुसार भगवान शिव सुन्दरेश्वरर रूप में अपने गणों के साथ पांड्य (पाण्डियन) राजा मलयध्वज की पुत्री राजकुमारी मीनाक्षी से विवाह रचाने मदुरै (मदुरई) नगर में आये थे।

इस मन्दिर को देवी पार्वती के सर्वाधिक पवित्र स्थानों में से एक माना जाता है।

।। कांची तु कामाक्षी,

मदुरै मिनाक्षी,

दक्षिणे कन्याकुमारी ममः

शक्ति रूपेण भगवती,

नमो नमः नमो नमः।।

कुछ पौराणिक कथाओं के अनुसार ऐसा माना जाता है कि जब देवराज इन्द्र एक पाप का प्रायश्चित करने के लिए तीर्थयात्रा पर जा रहे थे, तब इस मन्दिर का निर्माण उन्होंने ही करवाया था।

द्रविड़ वास्तुकला का अनुपम उदाहरण

कहा जाता है कि द्रविड़ वास्तुकला पर आधारित इस मन्दिर का निर्माण राजा कुलशेखरा पाण्डियन द्वारा कराया गया था। 16वीं शताब्‍दी में नायक शासक विश्‍वनाथ नायकर द्वारा इसका पुनर्निर्माण करवाया गया। उन्‍होंने ही इसे शिल्‍पशास्‍त्र के अनुसार पुन: बनवाया। हालांकि इसके बाद भी पुनरोद्धार और निर्माण कार्य होते रहे। 65 हज़ार वर्गमीटर में फैले इस विशाल मन्दिर के 12 गोपुरम (प्रवेश द्वार) हैं। प्रत्येक प्रवेश द्वार लगभग 40 मीटर ऊंचा है, हालांकि दक्षिणी गोपुरम अन्य से कुछ ज्यादा ऊंचा है। परिसर में 985 स्तम्भ और 24 अन्य टावर हैं। ध्यान देने योग्य बात यह है कि मछली पाण्डियन राजाओं का राजचिह्न था।

एक अनुमान के अनुसार मन्दिर के गलियारों, गोपुरम और मीनारों पर 33 हजार से अधिक प्रतिमाएं हैं। प्रत्येक प्रतिमा एक अलग कहानी व्यक्त करती है, चाहे वह पुराणों से हो या स्थानीय किंवदंतियों से। एक कहानी के अनुसार शिव ने स्थानीय लोमड़ियों को घोड़ों में बदल दिया जबकि दूसरी कहानी के अनुसार गन्ने की महक से पत्थर का एक हाथी जीवित हो गया। मन्दिर के मुख्य द्वार के बाद अष्ट शक्ति मण्डप आता है। इस मण्डप की विशेष बात यह है कि इसमें स्तम्भों के स्थान पर देवी लक्ष्मी की आठ मूर्तियां छत के आधार का काम करती हैं।

मीनाक्षी मन्दिर के प्रमुख गोपुरम

कड़ाका गोपुरम : इस विशाल प्रवेश द्वार से मार्ग मुख्य मन्दिर की ओर जाता है जिसमें देवी मीनाक्षी रहती हैं। 16वीं शताब्दी के मध्य में इस प्रवेश द्वार का निर्माण तुम्पिची नायकर द्वारा कराया गया था। इस गोपुरम की पांच मंजिलें हैं।

सुन्दरेश्वरर मन्दिर गोपुरम : यह इस मन्दिर का सबसे पुराना गोपुरम है। इसे कुलशेखरा पाण्डियन ने बनवाया था। यह गोपुरम सुन्दरेश्वरर (भगवान शिव) के प्रवेश द्वार के रूप में कार्य करता है।

चित्रा गोपुरम : मारवर्मन सुन्दर पाण्डियन द्वारा बनवाया गया यह गोपुरम सनातन धर्म के धार्मिक और धर्मनिरपेक्ष सार को दर्शाता है।

नादुक्कट्टू गोपुरम : इसे इडाईकट्टू गोपुरम भी कहा जाता है। यहां से रास्ता गणेश मन्दिर की ओर जाता है। इस प्रवेश द्वार को दो मुख्य मन्दिरों के बीच में रखा गया है।

मोतई गोपुरम : इस गोपुरम में अन्य प्रवेश द्वारों की तुलना में कम प्लास्टर छवियां हैं। दिलचस्प बात यह है कि इस गोपुरम में लगभग तीन शताब्दियों तक छत नहीं थी।

नायक गोपुरम : इस गोपुरम को विश्वप्पा नायक ने लगभग 1530 ईस्वी में बनवाया था। यह गोपुरम आश्चर्यजनक रूप से एक अन्य प्रवेश द्वार के समान है जिसे पलहाई गोपुरम कहा जाता है।

शिव मन्दिर

मीनाक्षी मन्दिर परिसर के मध्य में स्थित इस मन्दिर में भगवान शिव की नटराज मुद्रा की प्रतिमा स्थापित है। शिव की इस नृत्य मुद्रा में सामान्यतः नृत्य करते हुए बायां पैर उठा होता है  परन्तु यहां उनका दायां पैर उठा है। एक कथा के अनुसार राजा राजशेखर पाण्डियन की प्रार्थना पर भगवान शिव ने यहां अपनी मुद्रा बदल ली थी। नटराज की मूर्ति चांदी की वेदी पर है, इसलिये इसे वेल्ली अम्बलम् (रजत आवासी) कहते हैं। इस गृह के बाहर कुछ बडी शिल्प आकृतियां हैं जो कि एक ही पत्थर से बनी हैं। इसके साथ ही यहां एक वृहत गणेश मन्दिर भी है जिसे मुकुरुनय विनायगर कहते हैं। इस मूर्ति को मन्दिर के सरोवर की खुदाई के समय निकाला गया था। मीनाक्षी देवी का गर्भगृह शिव के बायीं ओर स्थित है।

पोत्रमारै सरोवर

पोत्रमारै सरोवर या पोत्रमारै कूलम का शाब्दिक अर्थ है “स्वर्ण कमल वाला सरोवर” और अक्षरशः इसमें होने वाले कमलों का वर्ण भी सुवर्ण ही है। यह पवित्र सरोवर 165 फीट लम्बा एवं 120 फीट चौड़ा है। भक्तगण मन्दिर में प्रवेश से पूर्व इसकी परिक्रमा करते हैं। एक पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान शिव ने एक सारस पक्षी को यह वरदान दिया था कि इस सरोवर में कभी भी कोई मछली या अन्य जलचर पैदा नहीं होंगे और ऐसा ही है भी। तमिलनाडु में मान्यता है कि यह सरोवर नये साहित्य को परखने का उत्तम स्थान है। अतएव लेखक यहां अपने साहित्यिक कार्य रखते हैं, निम्न कोटि के कार्य इसमें डूब जाते हैं जबकि उच्च स्तरीय साहित्य तैरता रहता है।

सहस्र स्तम्भ मण्डप

इसको आयिराम काल मण्डप और हजार खम्भों वाला मण्डप भी कहते हैं। हालांकि इसमें मात्र 985 तराशे हुए भव्य स्तम्भ हैं। इसका निर्माण आर्यनाथ मुदलियार ने कराया था। मुदलियार की अश्वारोही मूर्ति मण्डप को जाने वाली सीढियों के बगल में स्थित है। इसी मण्डप में मन्दिर का कला संग्रहालय भी है। इसमें मूर्तियों, चित्र, छायाचित्र आदि के रूप में करीब बारह सौ वर्ष का इतिहास जान-समझ सकते हैं। इस मण्डप के बाहर ही पश्चिम की ओर संगीतमय स्तम्भ हैं। इनमें से प्रत्येक स्तम्भ थाप देने पर भिन्न स्वर निकालता है। स्तम्भ मण्डप के दक्षिण में कल्याण मण्डप है जहां प्रतिवर्ष शिव-पार्वती विवाह का चितिरइ उत्सव मनाया जाता है।

दर्शन का समय

मीनाक्षी मन्दिर प्रातः पांच बजे से दोपहर 12.30 बजे तक और शाम को चार बजे से रात 9.30 बजे तक श्रद्धालुओं के लिए खुला रहता है।

प्रातःकाल 5:00 बजे से 6:00 बजे तक थिरुवनंदल पूजा की जाती है, उसके बाद 7:15 बजे तक अन्य पूजाएं और विधियां की जाती हैं। फिर 10:30 से 11:15 बजे तक थ्रिकालसंधि पूजा की जाती है और अंत में रात्रि में 9:30 से 10:00 बजे दिन की अंतिम पूजा की जाती है।

ऐसे पहुंचें मीनाक्षी मन्दिर

वायु मार्ग : मीनाक्षी मन्दिर से करीब 11 किलोमीटर दूर स्थित मदुरै एयरपोर्ट इसका निकटतम हवाईअड्डा है। देश के सबसे व्यस्त हवाईअड्डों में शामिल मदुरै एयरपोर्ट के लिए भारत के सभी प्रमुख नगरों से फलाइट हैं।

रेल मार्ग : मदुरै रेलवे जंक्शन देश के सौ सबसे व्यस्त रेलवे स्टेशनों में शामिल है जिसमें छह प्लेटफार्म हैं। चेन्नई-मदुरै रेल ट्रैक पर 30 से अधिक ट्रेन चलती है। दिल्ली, चेन्नई, मुम्बई, कोलकाता आदि से यहां के लिए सीधी रेल सेवा है।

सड़क मार्ग : मदुरै के मट्टुथवानी बस स्टेशन के लिए चेन्नई समेत तमिलनाडु के सभी प्रमुख शहरों से बस मिलती हैं। यहां से 20 मिनट से भी कम समय में मीनाक्षी मन्दिर पहुंच जाते हैं।

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