संजीव जिन्दल@Yatrapaertner
“अंकल आपने सुबह से ढंग से कुछ खाया नहीं है, प्लीज ट्रेन में खाना मंगवा कर खा लेना।” बिल्कुल अनजान बिटिया के साथ चार दिन रहने के बाद मेरे व्हाट्सएप पर उसका यह मैसेज आना मेरे लिए बहुत बड़ी उपलब्धि और सम्मान है। यह यात्रा वृतांत है एक-दूसरे से अनजान दो लोगों की अद्भुत यात्रा का। समय निकालकर पढ़िएगा जरूर।
25 सितम्बर 2022 को मैं फेसबुक पर हिमाचल प्रदेश के किन्नौर की म्यूलिंग वैली ट्रैकिंग का विज्ञापन देखता हूं और निखिल चौहान को फोन कर इसकी जानकारी लेता हूं। निखिल मुझे पूरी जानकारी देकर कुछ फोटो भेजते हैं जिन्हें देखकर इस ट्रैक पर जाने के लिए मेरा मन मचलने लगता है। लेकिन, मेरे साथ एक दिक्कत थी कि मेरी बेटी शीला द्विवेदी राजपूत की डिलीवरी होने वाली थी। ट्रैकिंग टूर की तारीख दो अक्टूबर तय थी। निखिल मुझे बुकिंग अमाउंट देने के लिए कहते हैं पर मैं निश्चिन्त नहीं हूं कि डिलीवरी कब होगी और मैं जा भी पाऊंगा या नहीं। आखिरकार 30 सितम्बर को हमारे घर नन्ही परी का आगमन हुआ और मैंने निखिल को एडवान्स भेज दिया। एक अक्टूबर को शाम पांच बजे मैं बरेली रेलवे जंक्शन पहुंच गया कि जो भी ट्रेन मिलेगी, उसी से अम्बाला चला जाऊंगा। मुझे बिल्कुल भी मालूम नहीं था कि इस टूर पर कौन-कौन जा रहा है और कितने लोग जा रहे हैं।
शाम छह बजे मुझे अम्बाला के लिए जनसधारण एक्सप्रेस मिली। यह बिना रिजर्वेशन वाली ट्रेन है और इसमें भयंकर भीड़ रहती है। जैसे-तैसे मैं इस ट्रेन में चढ़ गया। मेरी सफेद दाढ़ी और गंजी खोपड़ी देखकर लोगों ने बैठने की सीट भी दे दी। रात को आठ बजे निखिल ने एक व्हाट्सएप ग्रुप बनाया जिसमें केवल तीन ही लोग थे। मैं, निखिल और बिना नाम वाला एक नंबर। मैंने निखिल को फोन किया तो पता चला ट्रैकिंग टूर पर मैं और बंगलुरु की एक लड़की ही जा रहे हैं। अभी तक मुझे ना तो उस लड़की का नाम मालूम था और ना ही उसके बारे में कुछ और जानकारी थी। मैं रात दो 2:00 बजे अम्बाला पहुंच गया। ट्रेन में सोया नहीं था तो थकावट हो रही थी। प्लेटफार्म पर एक लड़का डबल बेड की चादर फोल्ड करके सो रहा था। मैंने उसे उठाया और चादर पूरी खोलने का अनुरोध किया। सफेद दाढ़ी और गंजापन यहां भी काम आया। फिर मैं उस लड़के के साथ ही दो घण्टे आराम से प्लेटफार्म पर लेटा रहा। करीब सवा चार बजे मैं वेटिंग रूम में फ्रेश हुआ और नहाया-धोया। पांच बजे चंडीगढ़ के लिए बस पकड़ ली। सवा छह बजे चंडीगढ़ के 43 सेक्टर बस स्टैंड पर पहुंचकर मैंने व्हाट्सएप ग्रुप में अपने पहुंचने का मैसेज डाला। साढ़े छह बजे निखिल टैक्सी में मुझे लेने बस स्टैंड पहुंच गया। फिर हम लोग सेक्टर 30 पहुंचे बंगलुरु से आयी लड़की को लेने के लिए। सूचना मिलने पर वह लड़की अपने रिश्तेदार के घर से बाहर आयी। उस खूबसूरत युवती को देखकर मैंने भगवान से एक ही प्रार्थना की कि वह सहयोगी स्वाभाव की हो अन्यथा टूर की ऐसी-तैसी हो जायेगी। निखिल ने उसको मेरे बारे में थोड़ा-बहुत बता रखा था। टैक्सी की पीछे वाली सीट पर मेरे साथ बैठ कर लड़की ने मुझे अंकल नमस्ते कहा। मैंने भी कहा, “खुश रहो बेटा”। फिर एक-दूसरे को सूक्ष्म परिचय दिया तो मुझे उसका नाम पता चला- शालिनी।
फिर शुरू हुई हमारी यात्रा चंडीगढ़ से लगभग 300 किलोमीटर दूर वांगतू गांव के लिए। बातचीत करते हुए हम दोनों सोलन पहुंचने तक एक-दूसरे से अच्छी तरह परिचित हो चुके थे। हम लोगों ने सोलन में नाश्ता किया। शाम को करीब छह बजे हम लोग वांगतू पहुंच गये। हमारा असली गंतव्य (डेस्टिनेशन) था काफनू जोकि वांगतू से लगभग 40 किलोमीटर दूर है। शाम सात 7:00 बजे हमें लेने थार गाड़ी आयी। करीब साढ़े आठ बजे हम लोग काफनू में होमस्टे के लिए वांग्पा अमित नेगी के घर पहुंच गये। घर क्या था, महल ही था। अमित ने हमारा गर्मजोशी से स्वागत किया और गरमा-गरम चाय पेश की। मैंने रात को खाने से पहले घर में ही बनी हुई किन्नौर एप्पल वाइन भी पी। फिर मैंने और शालिनी ने डिनर किया और अपने-अपने कमरे में जाकर सो गये।
तीन अक्टूबर को सुबह आठ बजे हम दोनों तैयार होकर अमित के घर के बाहर आ गये और अपने टूर ऑपरेटर निखिल के साथ सामान ले जाने के लिए घोड़ों का इंतजाम करने लगे। मैं, निखिल और शालिनी काफनू से थोड़ी दूर तक थार गाड़ी से आये जबकि निखिल के दोस्त संजय घोड़ों पर हमारा सामान लादकर पीछे-पीछे चल रहे थे। लगभग 10 बजे शुरू हुई हमारी 12 किलोमीटर की म्यूलिंग वैली (Muling Valley) तक की पैदल यात्रा। ट्रैक इतना खूबसूरत था कि शब्दों में बयान करना मुश्किल है। पूरे जंगल में शालिनी की मीठी आवाज गूंज रही थी, “अंकल संभलकर”, “अंकल देखकर”, “अंकल थक गये होगे, आराम कर लेते हैं”।
एक पिता और पुत्री का रिश्ता बन चुका था। शालिनी मानो भूल चुकी थी कि वह ट्रैकिंग का आनन्द उठाने आयी है। मुझे ऐसा लग रहा था जैसे वह अपने पिता को किसी पहाड़ी धार्मिक यात्रा पर लायी हो। फोटोग्राफी करते और हंसते-हंसाते हुए हम लोग अपराह्न दो बजे म्यूलिंग वैली पहुंच गये। लग ही नहीं रहा था कि मैं और शालिनी पहली बार मिले हैं। यही महसूस हो रहा था कि मैं अपनी ही बिटिया के साथ ट्रैकिंग कर रहा हूं।
म्यूलिंग वैली (Muling Valley) की सुन्दरता आपको अन्दर तक विभोर कर देगी। टैंट वगैरह लगाने के बाद हम लोगों ने मैगी बनाकर बड़े मजे से खायी। वहां की सुन्दरता को निहारते और फोटोग्राफी करते हुए कब रात हो गयी पता ही नहीं चला। बारिश और ओलों ने भी हमारा स्वागत किया पर यह “स्वागत समारोह” केवल 15 मिनट का था। फिर हम लोगों ने आलू-टमाटर की सब्जी और चावल बनाये। आनन्दपूर्ण माहौल में मजेदार रात्रिभोज! रात को नौ बजे शालिनी अपने टैंट में सोने को चली गयी। सारा काम वगैरह समेटने के बाद निखिल और संजय ने किन्नौर एप्पल वाइन निकाल ली। वाइन के दो-दो पैग मारने के बाद संजय की फरमाइश पर निखिल ने कई स्पेनिश गाने सुनाए। कितना मजा आया क्या बताऊं। फिर मैं अपने टैंट में सोने गया ही नहीं। यह किचन टैंट था और थोड़ा बड़ा था, हम तीनों यहीं पर सो गये।
चार अक्टूबर को मैं सुबह छह बजे उठ गया। एक घंटे तक चारों तरफ की पहाड़ियों पर जमी बर्फ पर दमकती सूरज की किरणों को निहारता रहा। सात बजे शालिनी को उठाया। फिर वीडियो और फोटोग्राफी का सत्र शुरू हो गया। निखिल और संजय घोड़े ढूंढ कर लाये। हम लोगों ने मिलकर घोड़ों पर सामान बांधा और 11 बजे वापस काफनू को चल दिए। उतराई के कारण हम लोग 2:30 बजे काफनू पहुंच गये। बांगतू वापस जाने के लिए हम लोग साढ़े तीन बजे थार में बैठ गये। साढ़े चार बजे मुझे और शालिनी को बांगतू में छोड़कर निखिल और संजय वापस काफनू चले गये। मैं और शालिनी रामपुर बुशहर के लिए बस का इंतजार करने लगे। साढ़े पांच बजे हम लोगों को महिन्द्रा बोलेरो मिली जिसमें बिल्कुल पीछे की साइड वाली दो सीटें खाली थीं। मुझे लगा शालिनी को साइड वाली सीट पर बैठने में दिक्कत होगी और उसकी तबीयत भी खराब हो सकती है। मैंने आगे बैठे हुए एक शख्स को अपनी यह दिक्कत बताई। वह तुरन्त मेरे साथ पीछे आ गया और शालिनी को आगे बैठा दिया।
ऋषिकेश : घूमिये योग नगरी, और भी बहुत कुछ है यहां
रात को साढ़े आठ बजे हम रामपुर बुशहर पहुंचे। बस स्टैण्ड के आसपास होटल देखने शुरू किये। दो होटल देखे पर कोई कमरा खाली नहीं था। पता चला यहां एक क्रिकेट टूर्नामेंट चल रहा है इसलिए होटल की दिक्कत है। तीसरे होटल में पहुंचे तो वहां एक ही कमरा खाली था।। मैंने कहा कोई बात नहीं यही कमरा दे दो, मैं नीचे लॉबी में सोफे पर सो जाऊंगा। इस पर मैनेजर ने कहा कि सर डॉरमेट्री में भी एक बेड खाली है, आप वहां लेट जाना। कमरा लेने के बाद हम लोगों ने बाहर आकर डिनर किया और फिर सो गये।
सुबह ठीक सवा छह बजे हम लोगों ने शिमला के लिए बस पकड़ ली। शालिनी काफनू से सेब लेकर आयी थी। बस में बैठकर सेब का ही नाश्ता किया। फिर शिमला पहुंचकर चंडीगढ़ के लिए बस ली। सोलन निकल जाने के बाद मैंने शगुन के तौर पर एक नोट शालिनी के हाथ पर रखा। शालिनी ने कहा, “अंकल यह क्या है…?” जवाब था, “बेटा यह शगुन है। थोड़ी देर बाद एक बेटी अपने पिता समान अंकल से जुदा हो जायेगी और अपनी परम्परा है बेटी को शगुन देने की।” चंडीगढ़ में मुझे अम्बाला के लिए बस पकड़नी है ताकि वहां पांच बजे टाटानगर एक्सप्रेस में बैठ सकूं। हम दोनों का हाथ एक-दूसरे के हाथ में था, शालिनी खिड़की से बाहर देख रही थी और मैं दूसरी तरफ, दोनों की आंखों में आंसू थे।
चंडीगढ़ में ट्रिब्यून चौक पर उतर कर मैं दूसरी तरफ अम्बाला की बस पकड़ने के लिए दौड़ा और तुरन्त ही वॉल्वो बस मिल गयी। अम्बाला पहुंच कर दौड़ते हुए टिकट विंडो पर पहुंचा तो सामने टाटानगर एक्सप्रेस खड़ी थी। दो लोगों से रिक्वेस्ट करके उनसे पहले टिकट लिया और ठीक पांच बजे प्लेटफार्म पर सरकना शुरू कर चुकी टाटानगर एक्सप्रेस में चढ़ गया। टीटी के पास खुद जाकर 350 रुपये की रसीद कटवाई। धामपुर के पास 8:00 बजे शालिनी बिटिया का व्हाट्सएप पर मैसेज आया, “अंकल आपने सुबह से ढंग से कुछ खाया नहीं है, प्लीज ट्रेन में खाना मंगवा कर खा लेना।” आंखों में आंसू आ गये। दो दिन पहले तक अनजान रही एक बिटिया दूर बैठी अपने अंकल का ध्यान रख रही है। रात को 12 बजे उन्हीं आंसुओं के साथ मैं घर पहुंच गया।
यह है एक अविस्मरणीय यात्रा, एक बेटी और उसके अंकल की यात्रा।
रास्ता और मंजिल दोनों खूबसूरत
कहीं रास्ता खूबसूरत होता है, कहीं मंजिल खूबसूरत होती है लेकिन म्यूलिंग वैली ऐसी जगह है जहां रास्ता और मंजिल दोनों ही बेहद खूबसूरत हैं। दोस्तों, मैं घुमक्कड़ प्रजाति का हूं इसलिए खूब घूमा हूं। कुछ स्थानों पर ऐसा होता है कि रास्ता बिल्कुल बोरिंग होता है पर मंजिल पर पहुंच कर मजा आ जाता है और कई रास्ते अत्यन्त मनमोहक होते हैं पर मंजिल उतनी मजेदार नहीं होती।
म्यूलिंग वैली का 12 किलोमीटर लम्बा पैदल रास्ता इतना खूबसूरत है कि इसे बस अपने मन और आत्मा में ही समाया जा सकता है, फोटो या शब्दों से इसका वर्णन मुश्किल है। हर 100 या 200 मीटर के बाद प्रकृति बिल्कुल बदल जाती है और अपना नया ही रूप दिखाती है। हर कदम के बाद लगता है यहीं रुक जाओ, इससे खूबसूरत और क्या होगा। दो कदम बढ़ो तो लगता है कि अरे! पीछे वाला तो कुछ भी नहीं था, यह तो उससे भी ज्यादा खूबसूरत है। बस यही सोचते-सोचते चार घंटे निकल जाते हैं और आप पहुंच जाते हैं म्यूलिंग वैली। …और फिर मंजिल रास्तों से भी ज्यादा खूबसूरत है। अद्भुत है म्यूलिंग वैली और उस तक पहुंचने का 12 किलोमीटर लम्बा पैदल रास्ता।