@yatrapartner_desk: ग्लेशियर यानि पृथ्वी की सतह पर विशाल आकार की गतिशील हिमराशि। यही सघन हिमराशि अपने भार के कारण ढालों पर प्रवाहित होती है जिसे ग्लेशियर या हिमनद कहते हैं। प्रायः यह हिमखंड नीचे आकर पिघलता है और पिघलने पर जल देता है। भारत में अब तक 9575 ग्लेशियरों (हिमनदों) की पहचान हुई है जिनमें सबसे बड़ा है लद्दाख का सियाचिन ग्लेशियर (Siachen Glacier)।
सियाचिन का अर्थ है “गुलाब का स्थान” या “गुलाबों का बगीचा”। लेकिन, सियाचिन ग्लेशियर (Siachen Glacier) में गुलाब तो क्या किसी भी तरह का कोई फूल नहीं होता है। इसका कारण है यहां का तापमान जो हमेशा हमेशा माइनस 10 डिग्री या इससे नीचे रहता है। सर्दियों में तो यह माइनस 50 डिग्री तक पहुंच जाता है।
हिमालय की पूर्वी कराकोरम पर्वतमाला में स्थित इस ग्लेशियर की लम्बाई 70 से 76 किलोमीटर है। इसके स्रोत इंदिरा कोल पर समुद्रतल से इसकी ऊंचाई लगभग 5,753 मीटर और अंतिम छोर पर करीब 3,620 मीटर है। ध्रुवीय क्षेत्रों के बाहर (ताजिकिस्तान की फेदचेन्को ग्लेशियर के बाद) यह दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा ग्लेशियर है। जाहिर है कि इसे एक बड़ा पर्यटन स्थल होना चाहिए पर अपनी भौगोलिक स्थिति और सामरिक महत्व के कारण यह दुनिया का सबसे ऊंचाई पर स्थित रणक्षेत्र बना हुआ है (Siachen Glacier: The world’s highest battlefield)। इसके एक तरफ पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर है तो दूसरी ओर चीन के कब्जे वाल अक्साई चिन। इस पर नियंत्रण के लिए भारत और पाकिस्तान की सेनाओं में कई बार झड़प हो चुकी है। 1984 तक यहां किसी भी देश की सेना तैनात नहीं थी। सीमा निर्धारित नहीं होने की वजह से पाकिस्तान ने इस पर कब्जा कर लिया पर भारतीय सेना ने ऑपरेशन मेघदूत चलाकर इस क्षेत्र पर अपना पूर्ण नियंत्रण स्थापित कर लिया। प्रशासकीय दृष्टि से लद्दाख के लेह जिले में आने वाला सियाचिन अब भारत का अभिन्न अंग है।
सियाचिन (Siachen) भारत के लिए सामरिक दृष्टी से अत्यंत महत्वपूर्ण है जहां से चीन और पाकिस्तान की गतिविधियों पर नजर रखी जा सकती है। यही वह दुर्गम स्थान है जिसके कारण चीन और पाकिस्तान की सीमा नहीं मिलती है। अन्यथा चीन और पाकिस्तान का गठजोड़ भारत के विरुद्ध घातक सिद्ध हो सकता है। यही कारण है कि भारत इस ग्लेशियर पर अपना नियंत्रण बनाए रखने के लिए रोजाना आठ से 10 करोड़ रुपये खर्च करता है।
देश की सुरक्षा के मद्देनजर सियाचिन (Siachen) ग्लेशियर पर पर्यटकों की आवाजाही प्रतिबंधित रही है लेकिन बीते विश्व पर्यटन दिवस (27 सितम्बर 2021) से पर्यटकों को सियाचिन बेस कैम्प तक जाने की इजाजत दे दी गयी। हालंकि सुरक्षा कारणों के चलते विदेशी पर्यटकों पर प्रतिबंध रहेगा।
ऐसे पहुंचे सियाचिन बेस कैम्प
सियाचिन बेस कैम्प लेह से नौ घण्टे की ड्राइव पर है। समुद्र तल से 3,256 मीटर की ऊंचाई पर स्थित लेह का कुशोक बकुला रिम्पोचे एयरपोर्ट दुनिया का 23वां सबसे अधिक ऊंचाई पर स्थित वाणिज्यिक एयरपोर्ट है। दिल्ली और श्रीनगर से लेह के लिए नियमित हवाई सेवा उपलब्ध है।