संजीव जिन्दल
कई दिनों तलक सिर खपाने के बाद आखिरकार वह दिन (20 अप्रैल 2024) आ ही गया जब मैं, पुष्पेंद्र गोला और आयुष गंगवार बरेली से सुबह 5:00 वाली इंटरसिटी ट्रेन पकड़ कर दिल्ली के लिए चल दिए। हमें जाना था चंद्रनाहन ट्रैक। खचाखच भरी हुई ट्रेन में जैसे-तैसे जनरल कोच में बैठने की जगह मिल गई। मैं नीचे वाली सीट पर बैठ गया, गोला और आयुष ऊपर सोने वाली सीट पर। चार वाली सीट पर आठ लोग बैठे थे। इतनी भीड़ इसलिए थी क्योंकि बसें चुनाव ड्यूटी में लगी हुई थीं। जनरल कोच में सभी लोग चुनाव पर बतिया रहे थे, इसलिए ट्रेन कब 11:00 बजे दिल्ली पहुंच गई किसी को पता ही नहीं चला।
मुझे बहादुरगढ़ में कुछ काम था जबकि गोला और आयुष को पहाड़गंज में। इसलिए हम लोग अलग-अलग अपने काम पर निकल गये। अपना-अपना काम निपटा कर हम लोग सायंकाल 6:00 बजे कनॉट प्लेस में मिले। थोड़ी देर घूमने के बाद हम लोग पहुंच गए मंडी हाउस मेट्रो स्टेशन के पास हिमाचल भवन में। यहीं से हम लोगों ने रात को 8:00 बजे रोडू के लिए वोल्वो बस पकड़ी। रास्ते में डिनर, चाय-नाश्ता करते और चंडीगढ़ शिमला होते हुए हम लोग अगले दिन पूर्वाह्न 11:30 बजे रोडू पहुंचे।
हमारे टूर ऑपरेटर जगत प्रकाश ने रोडू में हमारे लिए बोलेरो का इंतजाम पहले से ही कर रखा था। रोडू में चाय पीकर हम लोग जांगलिक जाने के लिए बोलेरो में बैठ गए। पब्बर नदी के साथ-साथ रास्ता बहुत ही शानदार था। रोडू से चिरगांव तक सड़क बहुत अच्छी है। असली रोमांच शुरू होता है चिरगांव से 10 किलोमीटर आगे चलकर। यहां से जांगलिक गांव का 15 किलोमीटर का रास्ता केवल 4×4 गाड़ी से ही पूरा करा जा सकता है। हमारी बोलेरो गाड़ी पूरा रोलर कोस्टर का मजा दे रही थी। रास्ते में बहुत ही ऊंचे और खूबसूरत ज्योति जलप्रपात पर फोटोग्राफी करते हुए हम लोग 3:00 बजे जांगलिक गांव में जगत प्रकाश के घर पहुंच गए। बाबूजी, अम्माजी और मीना दीदी ने हमारा गर्मजोशी से स्वागत किया। मीना दीदी ने हमारे लिए बिच्छू बूटी की बहुत ही फायदेमंद और स्वादिष्ट चाय बनाई। इसी बीच हमारा गाइड रोहित नेगी आ गया। फिर हम उसके साथ गांव घूमने निकल गए।
अगले दिन हमें ट्रैकिंग शुरू करनी थी और मौसम विभाग ने रेड अलर्ट जारी कर रखा था। हम लोग गांव के देवता के मंदिर पहुंचे जो बहुत बड़ा और शानदार है और पूरा लकड़ी का बना हुआ है। हम लोगों ने देवता से हमारी मौसम से संबंधित मदद करने की विनती की। फिर हम लोग पूरा गांव घूमे। लोगों से बातचीत करते और बच्चों के साथ खेलते और बात करते हुए 7:00 बजे जगत प्रकाश जी के घर वापस पहुंच गए। मीना दीदी और अम्माजी ने हमारे लिए फिर चाय बनाई। हमने रोहित से कहा कि मौसम खराब है इसलिए हम अपने पूरे बैग साथ लेकर चलेंगे ताकि रास्ते में कहीं कपड़े बदलने की जरूरत पड़े तो हमारे पास कपड़े हों। इसके लिए रोहित को एक अतिरिक्त खच्चर करना पड़ा। रात को अम्मा और दीदी ने क्या ही शानदार खाना बनाया! रसोई में बैठकर भोजन को साथ सेब की वाइन पीने में जो आनन्द आया, उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता।
ट्रैक शुरू करने से पहले रात को गहरी नींद जरूरी है। हमारा कमरा जो कि पूरा लकड़ी का बना हुआ था, बहुत ही शानदार था। समुद्र की सतह से 9,200 फीट की ऊंचाई पर काफी ठंड थी। जमीन पर बिछे हुए गद्दे काफी मोटे थे और हमारी रजाई काफी भारी-भरकम। ठीक 10:00 बजे हम सो गए।
22 अप्रैल को रोहित ने सारा सामान तीन खच्चरों पर लादा। एक खाना बनाने वाले और एक खच्चर वाले को साथ लिया, मतलब कि हम छह लोग चल दिए दयारा ट्रैक (Dayara Track) की और जो कि 12,000 फीट की ऊंचाई पर हमारा टेंट लगाने का पड़ाव था। शुरुआत की चढ़ाई काफी कठिन है। फिर दो किलोमीटर के बाद सामान्य चढ़ाई है। पूरे रास्ते का नजारा इतना शानदार है कि ना तो अपनी सांस फूलती हुई महसूस हुई और ना ही थकावट। लगभग छह किलोमीटर के बाद सिमर ट्रैक (Simmer track) का एकमात्र ढाबा है जहां हमने मैगी के साथ चाय का मजा लिया। ढाबे वाले ने इस सीजन में पहली बार ढाबा खोला था। फोटोग्राफी करते हुए लगभग 4:30 घंटे में 10 किलोमीटर ट्रैकिंग करके हम लोग 1:30 बजे दयारा ट्रैक पहुंच गए। तेज हवा चल रही थी और सर्दी बहुत ज्यादा थी। दयारा ट्रैक की खूबसूरती ने हमें पागल-सा कर दिया।
आयुष की जिंदगी की यह पहली ट्रैकिंग थी और ऑक्सीजन की कमी के कारण उसकी तबीयत थोड़ी खराब हो गई। सभी ने मिलकर जल्दी से टेंट लगाए और कुक ने खाना बनाना शुरू कर दिया। खाना खाने के बाद हम लोगों ने लकडियां इकट्ठी कर बोनफायर का आनन्द लिया। खाना खाकर और आग ताप कर थोड़ी ऊर्जा महसूस हुई। हम लोगों ने हिमाचली गानों पर जमकर डांस और फोटोग्राफी की। देखते ही देखते अंधेरा होने लगा। हमारा कुक डिनर का इंतजाम करने लगा। ठंड बहुत ज्यादा हो गई थी। -5°, – 6° तापमान में हाथ-पांव सुन्न-से हुए जा रहे थे। हमारे गाइड ने कहा, “अब आप लोग अपने टेंट के अंदर चले जाओ, हम लोग आपको खाना वहीं दे देंगे। खाना खाकर जल्द ही सो जाना।” खाना बहुत ही स्वादिष्ट था। भोजन करने के बाद हम लोग अपने-अपने स्लीपिंग बैग में घुसकर बातें करने लगे।
आयुष ने तबीयत खराब होने के कारण दयारा ट्रैक से आगे जाने से मना कर दिया। मैंने कहा, “अभी सो जाओ, सुबह देखा जाएगा।“ सुबह उठ कर भी आयुष नहीं माना तो मैंने पुष्पेंद्र गोला से कहा, “मैं, तुम और रोहित आगे लिथम ट्रैक (Litham Track) तक चलते हैं, बाकी तीनों को यहीं रहने दो।” मंत्रमुग्ध कर देने वाले नजारों को देखते और फोटोग्राफी करते हुए हम लोग 10:00 बजे लिथम पहुंच गए। आगे बहुत ज्यादा बर्फ थी और मौसम ने भी रेड अलर्ट के हिसाब से करवट लेनी शुरू कर दी थी, इसलिए वहां से थोड़ी दूरी पर ही स्थित चंद्रनाहन झील (Chandranahan Lake) जाने का कार्यक्रम रद्द कर दिया। मैं अपने मोटापे और उम्र के कारण ज्यादा रिस्क लेता भी नहीं हूं। जितना आराम से हो सके उतना ही करता हूं। जमकर फोटोग्राफी की और वापस दयारा को चल दिए। जांगलिक गांव से चंद्रनाहन झील के दुर्गम रास्ते को ही चंद्रनाहन ट्रैक (Chandranahan Track) कहते हैं। दयार और लिथम ट्रैक इसके अन्तर्गत हैं।
अपराहान 12:30 बजे दयारा में लंच करने के टेंट आदि समेटे, आसापस के क्षेत्र की अच्छी तरह सफाई की और चल दिए जांगलिक गांव की तरफ। अब मौसम पूरी तरह करवट ले चुका था। करीब दो किलोमीटर चलने के बाद हमें बहुत ही शानदार हिमपात मिला। 23 अप्रैल को ऐसा हिमपात देखने और महसूस करने को मिलेगा ऐसा कभी सोचा भी नहीं था। दिल बाग-बाग हो गया। गांव के देवता का आशीर्वाद हमारे साथ चल रहा था, हमें हिमपात तो मिला पर बारिश कहीं नहीं मिली और जैसे ही हम जगत के घर पहुंचे, ऊपर के क्षेत्र में धुआंधार बारिश शुरू हो गई। दीदी ने हमें चाय पिलाई और रात के खाने के इंतजाम में जुट गईं। हम लोग अपने कमरे में दो घंटे आराम करने के बाद फिर नीचे रसोई में आ गए। बाबूजी, अम्माजी और मीना दीदी के साथ खूब हंसी-ठिठोली और बातचीत हुई। खाने का अलग ही मजा आ रहा था। दीदी ने कहा, “कल तो रुकोगे ही।” मैंने कहा, “नहीं दीदी, हम सुबह 8:00 बजे निकल जाएंगे।“ फिर हम रात को 10:00 बजे हम अपने कमरे में आ गए। थकान के कारण कब नींद आ गई, पता ही नहीं चला।
सुबह दीदी ने आलू के परांठों का जायकेदार नाश्ता करवाया। बाबूजी अम्माजी, दीदी और हम तीनों की आंखों में आंसू थे। बहुत भारी मन से सुबह 8:00 बजे हम लोगों ने विदाई ली और उसी टैक्सी से 10:30 बजे रोडू पहुंच गए। 11:00 बजे शेयरिंग टैक्सी में बैठकर हम लोग दोपहर 2:00 बजे शिमला पहुंच गए। हमारे टैक्सी वाले ने बताया कि शिमला के पुराने बस स्टैंड पर एक दुकान है जो आपके बैग 20 रुपये प्रति नग के हिसाब से रख लेगा और आप माल रोड घूम आना। टैक्सी वाले ने हमें उसी दुकान के सामने उतारा और हम अपने बैग रखकर चल दिए माल रोड घूमने,। बिल्कुल सीधी चढ़ाई थी और भूख बहुत ज्यादा लग रही थी। हमारी किस्मत बहुत अच्छी थी जो रास्ते में दो मंदिरों में हमें स्वादिष्ट भंडारा खाने को मिला। फिर माल रोड पर मजे किए और एक माइक्रो बीयर बार में बीयर पीने के बाद मैकड़ी में डिनर किया।
रात 8:00 बजे हम अपनी बैग वाली दुकान पर पहुंच गए। बैग उठाकर लोकल बस पकड़ कर हम शिमला के बाईपास पर पहुंचे जहां से हमें 9:30 बजे वोल्वो बस पकड़नी थी। बस बिल्कुल राइट टाइम थी। बस में बैठते ही नींद आ गई। हमें नहीं मालूम कि रास्ते में उसने कहां-कहां चाय के लिए बस रोकी। सुबह 5:30 वोल्वो बस ने हमें दिल्ली के कश्मीरी गेट पर उतार दिया। अंतरराज्यीय बस टर्मिनल पर फ्रेश होकर मैंने आनंद विहार के लिए मेट्रो पकड़ ली। पुष्पेंद्र और आयुष को दिल्ली में काम था, लिहाजा वे वहीं रुक गए और मैं 8:00 बजे की बस पकड़ कर बरेली के लिए चल दिया। जिंदगी की सबसे शानदार यात्राओं में से एक पूरी करके मैं 25 अप्रैल को दोपहर 1:30 बजे बरेली अपने घर पहुंच गया।
जय हो जांगलिक गांव के देवता की। जय हो बाबूजी, अम्माजी, मीना दीदी, रोहित नेगी, कुक और खच्चर वाले भइया की। और जय-जयकार हो हमारे टूर ऑपरेटर जगत प्रकाश की जिनका व्यवहार शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता।