@yatrapartnernetwork:पूर्वोत्तर के पहाड़ों के रहस्यमय सौन्दर्य दीमापुर को नागालैण्ड का प्रवेशद्वार भी कहा जाता है।दीमापुर (Dimapur) को यह नाम दिमासा शब्द से मिला है जिसका अर्थ है “एक महान नदी के पास का शहर”। नागालैण्ड के इस सबसे बड़े शहर और वाणिज्यक केन्द्र के एक तरफ यानी पूर्वी भाग में धनसिरी नदी बहती है जबकि दूसरी तरफ वन और घास के मैदान हैं। यह कछारी जनजाति की राजधानी रहा है जिसके निशान आज भी देखे जा सकते हैं।
नागालैण्ड की प्राकृतिक वादियों का आनन्द लेने के साथ-साथ यहां की सभ्यता और संस्कृति के बारे में जानने के लिए दीमापुर (Dimapur) एक उपयुक्त जगह है। यहां पहाड़, घाटियां, जैव विविधता वाले जंगल और नदियां, जलप्रपात हैं तो पुरातात्विक-ऐतिहासिक अवशेष भी हैं। यह जनजातीय क्षेत्र विज्ञान के साथ भी कदमताल कर रहा है।
दीमापुर का इतिहास (History of Dimapur)
दीमापुर को 1918 में रेल लाइन के निर्माण के लिए तत्कालीन असम प्रान्त द्वारा तत्कालीन नागा हिल्स जिले (अब नागालैण्ड) को पट्टे पर दिया गया था। 1963 में इसे फिर से 99 वर्षों के लिए नागालैण्ड को पट्टे पर दे दिया गया। दीमापुर का इतिहास महाभारत काल से भी जुड़ा हुआ है। इसको कभी हिडिम्बापुर के नाम से जाना जाता था। कहा जाता है कि महाभारत काल में यहां हिडिम्ब राक्षस और उसकी बहन हिडिम्बा रहा करते थे। यहीं पर हिडिम्बा ने पाण्डु पुत्र भीम से विवाह किया था। यहां रहने वाली डिमाशा जनजाति के लोग खुद को हिडिम्बा का वंशज मानते हैं। यहां हिडिम्बा नाम का एक बाड़ा भी है।
दीमापुर (Dimapur) व इसके आसपास स्थित प्राचीन अवशेषों पर हिन्दू कला और स्थापत्य का प्रभाव स्पष्ट तौर पर दिखायी देता है हालांकि इनको बनवाने वाले मुख्य रूप से गैर-आर्यन थे। वर्तमान में दीमापुर के दक्षिण-पूर्व में नागालैण्ड की राजधानी कोहिमा, पश्चिम में असोम का कार्बी-आंगलोंग जिला और उत्तर-पश्चिम दिशा में असोम का ही गोलाघाट जिला है।
दीमापुर के प्रमुख दर्शनीय स्थल (Major tourist places of Dimapur)
नागालैण्ड जूलॉजिकल पार्क :
शहर से करीब छह किलोमीटर दूर स्थित इस प्राणि उद्यान की स्थापना 2008 में पूर्वोत्तर के जीवों के संरक्षण-संवर्द्धन के उद्देश्य से की गयी थी। यह 176 हेक्टेयर क्षेत्र में रोलिंग पठार और जलीय पक्षियों के लिए उपयुक्त निचले इलाकों में स्थित है। यहां पक्षियों और जानवरों को उनके प्राकृतिक आवास में निश्चिन्त होकर घूमते देखना अत्यन्त सुखद अनुभव है। यह दीमापुर में घूमने की सबसे दिलचस्प जगहों में से एक है। यहां ब्लिथ ट्रैगोपान, कठफोड़वा, धूसर धनेश (ग्रे हॉर्नबिल), तीतर, भालू, साम्भर, काकड़, लंगूर, हिमालयी बाघ आदि को देख सकते हैं। इस पार्क में सुबह दस बजे से लेकर शाम चार बजे तक प्रवेश किया जा सकता है जिसके लिए मामूली शुल्क चुकाना होता है जो वयस्कों और बच्चों के लिए अलग-अलग है।
डाइजेफे गांव : मुख्य शहर से करीब 13 किलोमीटर दूर स्थित यह गांव अपने हस्तशिल्प (भारतीय डीक्राफ्ट आइटम्स) और हथकरघा के लिए प्रसिद्ध है। यहां हथकरघा और हस्तशिल्प से सम्बन्धित कई वर्कशॉप्स हैं। यहां लकड़ी के खिलौनों की एक परियोजना भी शुरू की गयी है। इस गांव में आप सीधे कारीगरों से उनके उत्पाद खरीद सकते हैं जो बाजार से काफी सस्ते पड़ते हैं।
चुमुकेदिमा :
यह पर्यटन गांव दीमापुर शहर से 14 किलोमीटर दूर राष्ट्रीय राजमार्ग 39 के पास स्थित है। इसे एक पर्वतीय परियोजना के तहत विकसित किया गया है। यहां से दीमापुर जिले के अलावा असोम के कार्बी-आंगलोंग जिले के भी विहंगम दृश्य दिखायी देते हैं। इसके आसपास कई झरने-जलप्रपात हैं। चुमुकेदिमा ब्रिटिश शासन के दौरान 19वीं शताब्दी में असोम के तत्कालीन नागा हिल्स जिले का पहला जिला मुख्यालय भी रहा है।
शिव मन्दिर : सिंगरिजन गांव में इस मन्दिर की स्थापना ग्रामीणों द्वारा 1961 में की गई थी। ऐसा कहा जाता है कि गांव का एक व्यक्ति रंगपहाड़ रिजर्व फॉरेस्ट में एक पत्थर पर अपने चाकू की धार तेज कर रहा था तो उसने देखा कि उसमें से कुछ तरल बहने लगा है। उसी रात उसे स्वप्न में भगवान शिव के दर्शन हुए। ग्रामीणों को इसकी जानकारी होने पर उन्होंने भगवान शिव की पूजा कर इस मन्दिर की स्थापना की।
रंगपहाड़ रिजर्व फॉरेस्ट :
यह संरक्षित वन अपनी जैव विविधता, विशेषकर औषधीय गुण वाले पेड़-पौधों के लिए जाना जाता है। मात्र 49.4 एकड़ पर फैले इस वन को देखने बड़ी संख्या में पर्यटक पहुंचते हैं। यहां सुबह आठ से लेकर शाम आठ बजे तक जा सकते हैं। यहां प्रवेश निशुल्क है।
ट्रिपल फॉल्स :
दीमापुर के पास सेथिमा गांव में तीन जलप्रपातों को एक साथ देखना एक अलग ही अनुभव है। 280 फीट की ऊंचाई से एक साथ गिरती तीन जलधाराओं की गूंज दूर तक सुनायी देती है। इसे देखने के लिए देश-दुनिया से पर्यटक यहां पहुंचते हैं। इसी को देखते हुए इसके आसपास के क्षेत्रों को काफी अच्छी तरह से विकसित किया गया है। यहां पर आप ट्रैकिंग भी कर सकते हैं।ट्रिपल फॉल्स क्षेत्र में सुबह पांच बजे से सायंकाल छह बजे तक ही जा सकते हैं। यहां प्रवेश निशुल्क है।
ग्रीन पार्क :
राज्य बागवानी नर्सरी के अन्दर स्थित यह पार्क जैसाकि नाम से ही स्पष्ट है, हरियाली से भरा हुआ है। यहां रेस्तरां, आराम करने के लिए शेड, नौका विहार आदि सुविधाएं हैं। यह शुक्रवार, शनिवार, रविवार और राष्ट्रीय अवकाशों पर खुला रहता है। यहां प्रवेश करने के लिए मामूली प्रवेश शुल्क चुकाना होता है। स्थानीय लोग यहां निजी कार्यक्रम और पार्टियां भी आयोजित करते हैं।
कछारी खण्डहर : इसे दीमासा कचारी खण्डहर भी कहा जाता है। यहां मशरूम की तरह गुम्बदकार स्तम्भों की एक श्रृंखला है। सबसे प्रसिद्ध कछारी खण्डहर के बीच केवल एक पत्थर का खम्भा खड़ा है। इसके अलावा यहां मन्दिरों, टंकियों और तटबन्धों के कई खण्डहर हैं। पत्थर से बनायी गयी विभिन्न आकृतियों के अवशेष भी आसपास मिलते हैं। इस जगह को अच्छी तरह से संरक्षित किया गया है। तेरहवीं शताब्दी के दौरान अहोम आक्रमण से पहले शासन करने वाले दीमासा कचारी राजाओं द्वारा द्वारा इनका निर्माण कराया गया था।
नागालैंड साइंस सेण्टर : यहां विज्ञान की विभिन्न अवधारणाओं को दिलचस्प तरीके से पेश किया जाता है ताकि लोगों को और जानने-सीखने के लिए प्रेरित किया जा सके। नागा आर्केड के पीछे स्थित इस विज्ञान केन्द्र में तीन गैलरियां हैं- अवर सेंस, चिल्ड्रन कॉर्नर और फन साइंस। यहां एक तारा मण्डल है जिसमें एक इन्फ्लैटेबल गुम्बद है जहां से रात में आकाश की गहराई का अवलोकन कर सकते हैं। यहां एक विज्ञान पार्क भी है। विज्ञान केन्द्र में प्रवेश के लिए मामूली शुल्क है।
हॉंगकॉंग बाजार : शॉपहोलिक्स के लिए यह इस शहर में घूमने की सबसे अच्छी जगहों में से एक है। यहां विदेशी सामान के कई दुकानों हैं जिनमें परिधान-आभूषणों से लेकर गैजेट्स तक सबकुछ मिलता है। हालांकि इसका नाम हॉंगकांग बाजार पर यहां बिकने वाला ज्यादातर विदेशी सामान थाईलैण्ड और म्यांमार से आता है जो काफी कम दाम में मिलता है।
जैन मन्दिर :
वर्ष 1947 में निर्मित इस मन्दिर की वास्तुकला देखते ही बनती है। यहां कांच के कुछ जटिल काम हैं। जिन जैन परिवारों द्वारा इसका निर्माण कराया गया था, वे 1944 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापानी आक्रमण के कारण कोहिमा से आकर दीमापुर में बस गये थे। इस मन्दिर को स्थानीय लोग बहुत शुभ मानते हैं।
इनर लाइन परमिट
नागालैण्ड संरक्षित क्षेत्र अधिनियम के अन्तर्गत आता है। दीमापुर इस राज्य का एकमात्र शहर है जो इस अधिनियम के दायरे से बाहर है। इसलिए दीमापुर (Dimapur) जाने के लिए पर्यटकों को इनर लाइन परमिट लेना अनिवार्य नहीं होता। हालांकि यह छूट केवल शहर में घूमने के लिए ही है। शहर की सीमा से बाहर जाने के लिए यह परमिट लेना आवश्यक है। इसको बनवाने की प्रक्रिया बहुत साधारण है। डिप्टी कमिश्नर के किसी भी कार्यालय में अपने प्रमाण-पत्र दिखाकर इसको बनवाया जा सकता है। प्रतिबधित इलाकों में जाने के लिए परमिट निम्न कार्यालयों से बनवा सकते हैं- डिप्टी रेजिडेण्ट कमिश्नर, नागालैण्ड हाउस, नयी दिल्ली• डिप्टी रेजिडेण्ट कमिश्नर, नागालैण्ड हाउस, कोलकाता• असिस्टेंट रेजिडेण्ट कमिश्नर, गुवाहाटी एवं शिलॉन्ग तथा डिप्टी कमिश्नर ऑफ दीमापुर, कोहिमा और मोकोकचुंग।
कब जायें दीमापुर (When to go to Dimapur)
दीमापुर समेत पूरे नागालैण्ड की यात्रा के लिए सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च तक का माना जाता है। गर्मी के मौसम में यहां कभी-कभार बारिश होती है जो इसके सौन्दर्य को और बढ़ा देती है। ग्रीष्मकाल में यहां का तापमान 25 से 35 डिग्री सेल्सियस के बीच रहता है। मानसून सीजन में यहां भारी वर्षा होती है और कई बार बाढ़ जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
ऐसे पहुंचें दीमापुर (How to reach Dimapur)
वायु मार्ग : शहर से करीब सात किलोमीटर दूर स्थित दीमापुर एयरपोर्ट के लिए दिल्ली, पटना, दरभंगा, गुवाहाटी आदि से उड़ानें हैं।
रेल मार्ग : दीमापुर (Dimapur) पूर्वोत्तर भारत के उन स्थानों में है जहां सबसे पहले रेल लाइन पहुंची। दिल्ली, मुरादाबाद, बरेली, लखनऊ, गुवाहाटी, डिब्रूगढ़, कानपुर आदि से यहां के लिए ट्रेन मिल जाती हैं।
सड़क मार्ग : दीमापुर पूर्वोत्तर भारत के सबसे अच्छी सड़क कनेक्टीविटी वाले शहरों में शामिल है। राष्ट्रीय राजमार्ग 29, राष्ट्रीय राजमार्ग 129 और राष्ट्रीय राजमार्ग 129ए यहां से गुजरते हैं। कोहिमा, गुवाहाटी, डिब्रूगढ़, जोरहाट आदि से यहां के लिए बस और टैक्सी मिल जाती हैं।