तमिलनाडु का श्री रंगनाथस्वामी मंदिर अर्थात 156 एकड़ में फैला ‘भू-लोक वैकुण्ठ’

तमिलनाडु का श्री रंगनाथस्वामी मंदिर

YatraPartner. सनातन धर्मावलम्बी म्त्योपरान्त वैकुण्ठ की कल्पना करते हैं। उस वैकुण्ठ को तो किसने देखा पता नहीं लेकिन भारत वर्ष के तमिलनाडु में एक ‘वैकुण्ठ’ अवश्य है, जिसे भूलोक वैकुण्ठ के नाम से जाना जाता है। यह वैकुण्ठ है तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली में स्थित श्री रंगनाथस्वामी मंदिर। कुछ लोग इसे ‘भू-लोक वैकुण्ठ’ कहते हैं, तो कुछ ‘पेरियाकोइल’, तो कुछ लोग इसे ‘तिरुवरंगम तिरुपति’ कहते हैं। लगभग 156 एकड़ के क्षेत्र में फैला यह मंदिर दुनिया का सबसे बड़ा मंदिर माना जाता है।

वैसे तो बंगाल की खाड़ी के तट पर बसा तमिलनाडु एक खूबसूरत पर्यटन प्रदेश है। यहां इतिहास की एक से बढ़कर एक अद्भुत धरोहर आपको देखने को मिल जायेंगी। फिर भी इस भूलोक वैकुण्ठ यानि श्री रंगनाथस्वामी मंदिर में आपको अपना पूरा दिन में व्यतीत करना चाहिए। तभी आप जान पायेंगे कि इसे क्यों कहा जाता है धरती का वैकुण्ठ। आप अनुभूत कर पायेंगे इस मंदिर की अद्भुत ऊर्जा, महसूस कर पायेंगे यहां का अध्यात्म। श्रीरंगम का यह मंदिर श्री रंगनाथ स्वामी (भगवान श्री विष्णु) को समर्पित है, जहां स्वयं भगवान् श्री हरि विष्णु शेषनाग शैय्या पर विराजे हुए हैं।

 यह  सम्पूर्ण मंदिर   द्रविण शैली में निर्मित है, जिसमें संतों द्वारा कई महिमाएं का वर्णन किया गया है जो दिव्‍यप्रबंध को उजागर करते हैं। यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित 108 मुख्य मंदिरों में भी शामिल है। मंदिर में पूजा करने की ठेंकलाई प्रथा का पालन किया जाता है । यह मंदिर, शक्ति और साधना का प्रतीक है। द्रविड़ शैली में बना ये मंदिर कई मायनों में ख़ास है आपको बताते चलें कि इसमें 21 गोपुरम 50 मूर्तियां और ग्रैनाइट से बने 1000 स्तम्भ हैं।

मंदिर का मुख्य प्रवेश द्वार जिसे राजागोपुरम कहा जाता है एक 72 मीटर ऊंची संरचना है। स्थानीय लोगों के बीच मान्यता है कि ये ईश्वर की तरफ जाने का रास्ता है। मंदिर की वेबसाइट के अनुसार, श्रीरंगम को दुनिया का सबसे बड़ा क्रियाशील हिन्दू मंदिर माना जा सकता है क्योंकि इसका क्षेत्रफल लगभग 6,31,000 वर्ग मी (लगभग 156 एकड़) है तथा जिसकी परिधि 4 किमी (लगभग 10,710 फीट) है। यह मंदिर 6 मील तक फैला हुआ है।

 3 नवम्बर, 2017 को इस मंदिर को बड़े पैमाने पर पुननिर्माण और बहाली के कार्य के बाद सांस्कृतिक विरासत संरक्षण हेतु ‘यूनेस्को एशिया प्रशांत पुरस्कार मेरिट, 2017’  प्रदान किया गया।

यह मंदिर बेहद राजसी ढंग से निर्मित है और इस मंदिर की वास्तुकला ऐसी है जो किसी भी व्यक्ति का मन मोह सकती है। यदि आप फोटोग्राफी के शौक़ीन हैं तो हमारा सुझाव है कि आपको यहां अवश्य जाना चाहिए। यहां आपको कई ऐसी फ्रेम मिल जाएंगे जो शायद ही आपको कहीं और मिलें।

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