संजीव जिन्दल
ट्रैकिंग और कैम्पिंग (Camping) यानी दिक्कतों और तूफानों से हंसते-हंसते लड़ने जाना। हर ट्रैकर को मालूम होता है कि कभी भी कैसी भी मुसीबत आ सकती है और वह घर से ही अपना मन बनाकर इन मुसीबतों और तूफानों से लड़ने जाता है। पहाड़ों पर ट्रैकिंग (Tracking) के दौरान यदि आप नीचे एक माचिस भी भूल गये तो बर्फ जैसा ठण्डा पानी पीना पड़ेगा और बिल्कुल बर्फ जैसा ही जमा हुआ खाना खाना पड़ेगा। ऐसी मुसीबतों और तूफानों को हंस-हंसकर और खेलते-मस्ती करते हुए झेलना ही ट्रैकिंग और कैम्पिंग है।
म्यूलिंग वैली का हमारा वह टूर भी कम मुसीबतों से भरा हुआ नहीं था पर हमें आपको मौजा ही मौजा दिखाना है ताकि जोश बना रहे। सबसे पहले तो पहाड़ी जंगली रास्तों पर चार घण्टे की 12 किलोमीटर पदयात्रा। कभी सख्त, कभी मस्त यात्रा। फिर 10,820 फिट की ऊंचाई पर म्यूलिंग वैली पहुंचना जहां माइनस में डुबकी लगा रहे तापमान ने हमारा स्वागत किया। हर पांच मिनट बाद बादलों के झुण्ड हमें घेर लेते थे। हम इतनी ऊंचाई पर थे कि हमारे और बादलों के बीच ज्यादा दूरी नही थी। बादल इतने ज्यादा थे कि लग रहा था आज तो ये फट ही जाएंगे और कल आपको श्रद्धांजलि लिखने का मौका मिल जाएगा और भगवान के चरणों में जगह दिलवाने वालों को भी काम मिल जाएगा। इसी बीच पवन देव हमारा साथ देते हैं और उनका एक तेज झोंका बादलों को पीछे धकेल देता है- चलो हटो, मेरे बच्चे आए हुए हैं। लेकिन, पवन देव भी इतनी तेजी से आते थे कि लगता था कि हमें बचाने के चक्कर में कहीं हमारा टेंट ही उड़ा कर न ले जाएं। अरे पवन देव भाई! कर लेने दो इन्द्र देव को थोड़ी अपनी मन मर्जी, कहीं हमारे टेंट उड़ गये तो सिर छुपाने की जगह भी नहीं मिलेगी।
मानो हमारी विनती सुन ली गयी, इन्द्र देव ओलों के साथ शुरू हो जाते हैं पर बारिश और ओले केवल 15 मिनट को ही पड़ते हैं और हमारे चारों तरफ ऊंची-ऊंची चोटियों पर हिमपात शुरू हो जाता है। सूर्य देव मस्ती के मूड में पवन देव और इन्द्र देव की लड़ाई देखते रहते हैं। जब-जब पवन देव इन्द्र देव को पीछे धकेलते हैं, सूर्यदेव प्रकट हो जाते हैं।…और यही पल होते हैं हमारी मस्ती के।
इतनी ऊंचाई पर बैठकर अपने आप को कोसना नहीं चाहिए कि ये कहां आ गये हम, बल्कि बीच-बीच में मिले ऐसे अद्भुत पलों का आनन्द उठानाहोता है।ऐसा ही किया मैंने और मेरी प्यारी-सी बिटिया शालिनी ने।
मेरे लिए पर्यटन के मायने
बड़ी-सी कार में बैठकर फाइव स्टार होटल पहुंच जाना मेरी नजर में पर्यटन नहीं है। मैं और बंगलुरु से आयी शालिनी निकले थे एक अलग ही मिशन पर। इस दौरान हमारे गाइड थे निखिल चौहान। अपने सामान को हम दो घोड़ों पर लाद कर ले गये 10,820 फिट की ऊंचाई पर स्थित म्यूलिन वैली में एक रात के लिए अपना अस्थायी घर बनाने को। यहां तक पहुंचने के लिए हमें 12 किलोमीटर पैदल चलना पड़ा। बिना रुके चार घण्टे की मस्त ट्रैकिंग! हमारे टेंट के चारों ओर था प्रकृति का अनोखा वैभव। बस एक दिशा में आबादी थी और वह भी 12 किलोमीटर दूर, बाकी दिशाओं के बारे में नहीं मालूम कि कितने किलोमीटर दूर तक कोई इंसान नहीं था। पूरा क्षेत्र सिर्फ और सिर्फ मेरा शालिनी और निखिल का।
दोस्तों, ट्रैकिंग के दौरान आपको बहुत से नदी-नाले उन पर रखे गये या गिरे हुए पेड़ों पर से होकर पार करने पड़ेंगे। यदि आपको अपने आप पर पूरा विश्वास है और शारीरिक-मानसिक रूप से स्वस्थ हैं तो आप उस पेड़ पर चलकर भी नदी-नाले पार कर सकते हैं। अपने आप पर हल्का-सा भी शक होने पर आप न्यूजीलैंड के ट्रैकर नूह द्वारा ईजाद की गयी टेक्निक को अपना सकते हैं। आपसे पहले यदि दो-तीन ट्रैकर इस पेड़ पर चल कर नदी या नाले को पार कर चुके हैं तो अपने आप पर शर्मिन्दा होने की जरूरत नहीं है बल्कि स्वयं को चोट से बचाना है। मान लीजिए, पैर फिसलने पर इस तरह गिरते हैं कि एक पैर पेड़ के एक तरफ और दूसरा दूसरी तरफ तो बहुत तकलीफ होगी। इसलिए शर्माने या अपने को छोटा समझने की कोई जरूरत नहीं है। नूह की तकनीक अपनाएं और बिना चोटिल हुए नदी-नाले पार करें। इसके लिए आपको बस इतना करना है कि पेड़ पर दोनों पैर एक तरफ करके बैठ जायें, हाथों पर थोड़ा जोर डालें और शरीर को थोड़ा-थोड़ा ऊपर उठा कर आगे की ओर खिसकते जायें।
फिर कह रहा हूं, यदि कैम्पिंग (Tracking) और ट्रैकिंग (Tracking) का मजा लेना है तो आपको रोजाना साइकिलिंग, जिम में व्यायाम या हर सुबह पांच से छह किलोमीटर की सैर करनी होगी। हालात से डरने की जरूरत नहीं है, मौत तो घर में बैठे-बैठे भी आ जाती है।
डॉगी मेरा साथी
पहाड़ की पिछली कुछ यात्राओं के दौरान मेरे साथ एक अद्भुत घटना हो रही है। कुदरत मेरी सुरक्षा के लिए किसी ना किसी डॉगी यानी कुत्ते की ड्यूटी लगा देती है। म्यूलिंग यात्रा में भी ऐसा ही हुआ। मैंने और शालिनी ने पिन नदी पार करके जैसे ही 12 किलोमीटर की ट्रैकिंग शुरू की, हमारे सामने एकाएक एक डॉगी आ गया। शालिनी डर गयी। मैंने कहा, “शालिनी डरो मत, यह भोलू पूरी यात्रा में हमारे साथ चलेगा और रात को हमारे पास ही रहेगा लेकिन कल हमें यहां तक वापस पहुंचाने के बाद गायब हो जाएगा।“ मैंने ऐसा अपनी पिछली कुछ यात्राओं के अनुभव के आधार पर कहा और हुआ भी ऐसा ही।
यह डॉगी की हिमालयन ब्रीड है, बहुत ही प्यारी और समझदार। भोलू हमारे आगे-आगे चला। थोड़ा आगे जाकर वह रुक जाता था और पीछे मुड़कर देखता था कि हम लोग आ रहे हैं या नहीं। कई जगह हमारे गाइड निखल चौहान रास्ते को लेकर कन्फ्यूज हुए तो मैंने कहा कि जिधर को भोलू जा रहा है, उधर ही चलो। थोड़ा-सा आगे चल कर निखल कहते थे,“हां, यही रास्ता है।” म्यूलिंग वैली पहुंच कर भोलू ने हमारे साथ ही लंच, डिनर और अगले दिन ब्रेकफास्ट किया। एक मिनट के लिए भी वह हम लोगों से दूर नहीं हुआ। रात को जब भी कोई गाय या अन्य जानवर हमारे टेंट के आसपास आया, भोलू ने जोर-जोर से भौंकते हुए उसे खदेड़ दिया।
वापसी में वही हुआ, जिसकी आशंका थी। 12 किलोमीटर की ट्रैकिंग के दौरान भोलू हमारे साथ रहा पर पिन नदी के पुल पर पहुंचने के बाद पीछे मुड़कर देखा तो वह गायब था। भोलू के इस तरह चले जाने पर शालिनी बहुत भावुक हो गयी।