@yatrapartner:पहाड़ों से घिरी घाटी में नीलम-सा दमकता पानी, भूरे पहाड़ों के बीच हर तरफ पसरे सन्नाटे को तोड़ती पक्षियों की चहचहाहट और आसमान में आवारागर्दी करते धुनी रुई जैसै सफेद बादल। ऐसा दिलकश नजारा कि आपको पहली नजर में ही इस जगह से इश्क हो जाये। यह त्सो मोरीरी है, भारत में अत्यधिक ऊंचाई पर स्थित झीलों में सबसे बड़ी झील जिसे माउण्टेन लेक भी कहा जाता है। यहां का प्रायः खुला रहने वाला आसमान इसे रात में स्टार गेजिंग (एस्ट्रो टूरिज्म) के लिए एक आदर्श स्थान बनाता है। यहां जाने के लिए भारतीयों को भी परमिट लेना पड़ता है।
केन्द्रशासित प्रदेश लद्दाख में चांगथांग (चांगधांग) पठार पर रूपशु में समुद्र तल से करीब 4,522 मीटर की ऊंचाई पर स्थित त्सो मोरीरी झील पूरी तरह प्राकृतिक है। इसकी अधिकतम लम्बाई 19 किलोमीटर, अधिकतम चौड़ाई करीब तीन किलोमीटर और अधिकतम गहराई 105 मीटर है। इसका सतही क्षेत्रफल बारह हजार हेक्टेयर मापा गया है। निकास न होने के कारण इसका पानी खारा है। इसके जलागम का मुख्य स्रोत पहाड़ों की पिघलने वाली बर्फ है। कुछ लोग इसे अवशिष्ट झील भी मानते हैं और इसके खारे जल को पुरा कालीन टीथीज सागर का अवशेष बतलाते हैं। जैव-भूगोलिक विशेषताओं के कारण इस झील को वेटलैंड रिजर्व घोषित किया गया है। लद्दाखी इस झील को बहुत ही पवित्र मानते हैं।
यह पूरा झील क्षेत्र चांगथांग वन्यजीव अभयारण्य के अंदर स्थित है। यहां वनस्पति बहुत कम है। क्षेत्र में कैराना, एस्ट्रैगलस, पोटामोगेटोन, केरेक्स, प्रिमुला, पेडिक्युलर आदि प्रजातियों की वनस्पतियां मिलती हैं। यहां आपब्लैक-नेक्ड क्रेन्स, ब्राउन-हेडेड गल्स, ग्रेट क्रेस्टेड ग्रीबे, फेरुगिनस पोचार्ड, ब्लैक-नेक्डग्रीबे,पोडिसेप्स निग्रीकोलिस, तिब्बती गजेल, प्रोकैप्रा पिक्टिकौडाटा, ग्रेट क्रिस्टेड ग्रीब, भूरे सिर वाली मुर्गाबी समेत देस-विदेश के 35 प्रजातियों के पक्षियों को देख सकते हैं। झील व आसपास के इलाकों में ब्लैक-नेक्ड क्रेन्स, बार हेडेड गीज, गोवा एंटीलोप, तिब्बती गधा, तिब्बती भेड़, स्नो लेपर्ड, लाल लोमड़ी, हिमालयी खरगोश, तिब्बती याक आदि भी देखने को मिलते हैं।
इन बातों का रखना होगा ध्यान
अत्यधिक ऊंचाई पर स्थित होने के कारण इस झील व इसके आसपास के क्षेत्र में ऑक्सीजन की मात्रा काफी कम है। इसलिए यहां जाने वाले पर्यटकों को सांस लेने में थोड़ी-बहुत तकलीफ हो सकती है। सावधानी न बरतने पर एल्टीट्यूड सिकनेस का शिकार भी हो सकते हैं। इसलिए अपने साथ उल्टी, घबराहट, बुखार, जुकाम, सिरदर्द जैसी परेशानियों के लिए जरूरी दवाइयां लेकर जरूर जायें ।यह भारत के सबसे सर्द इलाकों में से एक है, इसलिए अपने ट्रैवल बैग में ऊनी कपड़े रखना न भूलें।
लेह से त्सो मोरीरी झील के लिए निकलने से पहले पर्यटकों को कुछ और बातों का भी ख्याल रखना होगा। जहां तक हमारा अनुभव है यहां अपने अथवा बुक किये गये वाहन से जाना ही उचित रहेगा क्योंकि इस मार्ग पर कभी-कभी 50-60 किलोमीटर तक कोई भी दिखायी नहीं देता। रास्ते में दो-चार जगह ही खाने-पीने की छोटी-छोटी दुकानें हैं। इसलिए बेहतर होगा कि आप अपने साथ खाने-पीने का सामान रख लें।
त्सो मोरीरी झील के आसपास के क्षेत्रों में कोई भी बैंक या एटीएम नहीं है। ऐसे में अपने पास अतिरिक्त करेंसी और रेजगारी अवश्य रख लें। कार या टैक्सी से जा रहे हैं तो एक-दो ड्रम में पेट्रोल भी रख लें क्योंकि झील क्षेत्र में एक भी पेट्रोल पम्प नहीं हैं। झील के आसपास होटल और होमस्टे की पर्याप्त सुविधा भी नहीं है। इसलिए यहां के लिए निकलने से पहले अपने लिए कमरा बुक करा लें अथवा कैम्पिंग का सामान लेकर चलें।
पूरे लद्दाख केन्द्रशासित प्रदेश में कड़ाके की ठंड पड़ती है और सर्दी के मौसम में लगभग सभी स्थानों पर पारा शून्य से नीचे चले जाता है। त्सो मोरीरी झील भी ज्यादातर समय बर्फ से ढकी रहती है। यहां जाने का सबसे अच्छा समय अप्रैल से सितम्बर तक का है।
परमिट लेना न भूलें
इस खूबसूरत झील को देखने के लिए हर साल हजारों देसी-विदेशी सैलानी आते हैं। लेकिन, यहां जाने के लिए परमिट लेना अनिवार्य है। वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के पास के स्थित इस सामरिक दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील क्षेत्र तक जाने के लिए विदेशियों के साथ ही भारतीयों को भी इनर लाइन परमिट लेना पड़ता है। यात्रा के दौरान परमिट की कम से कम पांच प्रतियां साथ रख लें क्योंकि हर चेक-पॉइंट पर परमिट की एक कॉपी जमा करनी होती है।
त्सो मोरीरी झील के आसपास के दर्शनीय स्थान (Places to visit around Tso Moriri Lake)
कोरजोक गोम्पा मठ :
कोरजोक गांव के नाम पर ही यहां के मठ को कोरजोक गोम्पा मठ कहा जाता है। द्रुकपा बौद्ध समुदाय से सम्बन्धित लगभग 3000 साल पुराने इस मठ की स्थापना कुंगा लोद्रो निंगपो ने की थी। कोरजोक पहले रूपशु घाटी का मुख्यालय हुआ करता था। कोरजोक विश्व की उच्चतम मानव बस्तियों में से एक है।
क्यागर त्सो : समुद्र तल से 4705 मीटर की ऊंचाई पर स्थित इस छोटी झील का पानी भी खारा है।
कुमडोक : लेह-त्सो मोरीरी मार्ग पर सुन्दर प्राकृतिक नजारों के बीच 4,309 मीटर की ऊंचाई पर स्थित इस छोटी सी बस्ती में रुकना भी अपनी तरह का एक अलग अनुभव है।
चुमथांग : लेह जिले में सिन्धु नदी के तट पर स्थित यह गांवभीलेह-त्सो मोरीरी मार्ग पर पड़ता है।
हेमिश राष्ट्रीय उद्यान : यह भारत में सबसे अधिक ऊंचाई पर स्थित राष्ट्रीय उद्यान है। यहां कई लुप्तप्राय स्तनधारी प्रजातियों के साथ ही हिम तेंदुए भी पाये जाते हैं।
ऐसे पहुंचें त्सो मोरीरी झील (How to reach Tso Moriri Lake)
वायु मार्ग :लेह का कुशोक बकुला रिनपोछे एयरपोर्ट इस झील का निकटतम एयरपोर्ट है।
रेल मार्ग : त्सो मोरीरी झील जाने के लिए कोई सीधी रेल कनेक्टिविटी नहीं हैं। इसका निकटतम रेलवे स्टेशन कटरा है जो लगभग 856 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। जम्मू रेलवे स्टेशन यहां से करीब 886 किमी पड़ता है। ऐसे में यहां जाने के लिए ट्रेन न पकड़ना ही अच्छा रहेगा।
सड़क मार्ग : त्सो मोरीरी झील के लिए सरकारी बस सेवा की नियमित बसें उपलब्ध हैं। इसके अला वाटैक्सी या जीप भी किराए पर ले सकते हैं अथवा निजी वाहन से यात्रा कर सकते हैं। लेह से त्सो मोरीरी झील की दूरी लगभग 220 और मनाली से करीब 405 किमी है। लेह-त्सो मोरीरी मार्ग पर कारू, उपशी, कुमडोक, केरे, चुमाथांग, माहे और सुमडो जैसे खूबसूरत स्थान पड़ते हैं।