@yatrapartnernetwark:तेलंगाना का दूसरा सबसे सबसे बड़ा शहर आदिलाबाद (Adilabad) प्रकृति प्रेमियों के लिए एक शानदार गन्तव्य स्थल है। यह एक ऐतिहासिक शहर भी है जहां कई राजवंशों ने शताब्दियों तक राज किया। यह मध्य और दक्षिण भारत की सीमा पर गोदावरी और पेनगंगा नदियों के बीच 600 मीटर ऊंचे वनाच्छादित पठार पर स्थित है। यहां पर उत्तर भारत के शासकों ने भी शासन किया और दक्षिण के राजवंशों ने भी। यहां पर मराठी संस्कृति का प्रभाव भी देखा जा सकता है जो तेलुगू संस्कृति के साथ घुलमिल गयी है। बीजापुर के शासक अली आदिल शाह के नाम पर इसका नाम आदिलाबाद पड़ा
आदिलाबाद में देखने-घूमने योग्य स्थान (Places to visit in Adilabad)
आदिलाबाद किला :
इस ऐतिहासिक किले का निर्माण काकतीय वंश के शासनकाल में हुआ था। 14 वीं शताब्दी में बहमनी सल्तनत ने इस पर कब्जा कर लिया। इसके बाद इस पर कुतुबशाही वंश और हैदराबाद राज्य के आसफ जाही वंश का कब्जा रहा। तीन तरफ से खाई से घिरा यह किला आदिलाबाद (Adilabad) शहर के पास एक पहाड़ी पर है। इसके कई प्रवेश द्वार हैं। मुख्य प्रवेश द्वार को जटिल नक्काशी और मूर्तियों से सजाया गया है। किले के परिसर में कई संरचनाएं और स्मारक हैं जिनमें एक मस्जिद, एक मन्दिर और एक मकबरा शामिल है। मस्जिद मुख्य प्रवेश द्वार के पास स्थित है और अपनी जटिल नक्काशी और वास्तुकला के लिए जानी जाती है। भगवान हनुमान को समर्पित मन्दिर किले के पूर्वी हिस्से में है। माना जाता है कि यहां का मकबरा एक प्रसिद्ध सूफी सन्त का अन्तिम विश्राम स्थल था।
कुन्तला जलप्रपात :
घने जंगलों के बीच स्थित यह प्रपात तेलंगाना का सबसे ऊंचा और सुन्दर जलप्रपात है। कदम नदी के 45 मीटर ऊंची पहाड़ी से छलांग लगाने से इसकी रचना हुई है। इसे कुण्टाला जलप्रपात भी कहते हैं। सर्दी का मौसम यहां आने के लिए सबसे उपयुक्त है क्योंकि इस दौरान नदी अपने पूरे ऊफान पर होती है। प्रपात के समीप भगवान शिव की प्रतिमा स्थापित है जिन्हें सोमेश्वर स्वामी कहा जाता है। इस प्रपात के साथ एक पौराणिक किंवदन्ती भी जुड़ी है। माना जाता है कि महाराजा दुष्यन्त की पत्नी शकुन्तला इस प्रपात पर स्नान करने के लिए आया करती थीं और यह वही स्थान है जहां दोनों के बीच प्रेम हुआ था। इसीलिए इस प्रपात का नाम शुकन्तला के नाम से प्रभावित है। यह आदिलाबाद (Adilabad) से करीब और नेरेडकोंडा गांव से 12 किलोमीटर दूर है।
पोचेरा जलप्रपात :
घने जंगलों के बीच स्थित इस प्रपात में गोदावरी की जलधारा 20 मीटर नीचे छलांग लगाती है। हालांकि यह ज्यादा ऊंचा नहीं है पर इस स्थान की सुन्दरता पर्यटकों को विस्मित कर देती है।
कव्वल वन्यजीव अभयारण्य :
893 वर्ग किलोमीटर में फैला यह वन्यजीव अभयारण्य अपनी अद्भुत जैव विविधता के लिए जाना जाता है। यहां आप विभिन्न प्रजातियों के पेड़-पौधों के साथ-साथ जीव-जन्तुओं को भी देख सकते हैं। वर्ष 1964 में स्थापित यह अभयारण्य तेलंगाना के चुनिंदा आरक्षित जंगलों में से एक है। यहां आप बाघ, तेंदुआ, भारतीय गौर (बाइसन), बार्किंग डियर, नीलगाय, भालू, मगरमच्छ, कोबरा, अजगर आदि के अलावा स्थानीय और विभिन्न प्रजातियों के प्रवासी पक्षियों को भी देख सकते हैं। इस अभयारण्य को 2012 में टाइगर रिजर्व भी बना दिया गया। यह निर्मल नगर से 70 किलोमीटर दूर है। इसके अन्तर्ग आने वाले डोगपा माय और अलीनगर गांवों में वॉच टावरों का निर्माण किया गया है जहां से सूर्योदय और सूर्यास्त के विहंगम दृश्य दिखाई देते हैं।
प्राणाहिता वन्यजीव अभयारण्य :
136 वर्ग किमी के क्षेत्र में फैला और 1980 में स्थापित यह अभयारण्य आदिलाबाद के सबसे लोकप्रिय पर्यटक स्थलों में से एक है। यह वन्यक्षेत्र तेलंगाना में सबसे पुराने संरक्षित क्षेत्रों में भी शामिल है। आप यहां तेंदुआ, बाघ, भालू, लकड़बग्गा आदि के अलावा कई प्रजातियों के पक्षियों को भी देख सकते हैं।
शिवाराम वन्यजीव अभयारण्य :
यह वन्यजीव अभयारण्य तेलंगाना के चुनिंदा लोकप्रिय पर्यटन स्थलों में से एक है। 36.29 वर्ग किलोमीटर में विस्तृत इस अभयारण्य की स्थापना 1987 में हुई थी। गोदावरी के तट पर स्थित यह अभयारण्य काफी छोटा होने के बावजूद अपनी जैव विविधता के चलते प्रकृति प्रेमियों का मनपसन्द ठिकाना बना हुआ है। यहां बाघ, तेंदुआ, जंगली सूअर, भालू, अजगर आदि देखने को मिलते हैं।
महात्मा गांधी पार्क : आदिलाबाद शहर के बीचों-बीच स्थित महात्मा गांधी उद्यान की सुन्दरता और शान्त वातावरण लोगों को अपनी ओर खींचते हैं। इस हरेभरे पार्क को तरह-तरह के पेड़-पौधों, लताओं और फुलवारियों से सजाया गया है। इस पार्क के अन्दर बच्चों के खेलने-कूदने के लिए क्रीडा स्थल भी बनाया गया है। सायंकाल होते ही इसकी सुन्दरता देखने लायक होती है जिसका आनन्द लेने के लिए स्थानीय लोगों के अलावा पर्यटक भी उमड़ा पड़ते हैं।
निर्मल आर्ट :
निजामाबाद से 50 किलोमीटर दूर स्थित निर्मल नगर आदिलाबाद जिले का एक प्रमुख नगर है। यह लकड़ी के खिलौना उद्योग और पेन्टिंग्स के लिए प्रसिद्ध है। खूबसूरती से तराशे गये खिलौने इस शहर के नाम से ही प्रसिद्ध हैं। शिल्पकार स्थानीय स्तर पर मिलने वाली मुलायम लकड़ी से सब्जियों, फलों, जानवरों, गुडि़यों आदि के खिलौने बनाते हैं। इनको देखकर लगता है मानो शिल्पकार ने इनमें प्राण फूंक दिए हों। निर्मल पेंटिंग्स विश्व भर में अपने रंगों और विविधता के लिए जानी जाती हैं। निर्मल नगर में फ्रांसिसी इंजीनियर द्वारा बनाया गया एक किला भी है जो उसने निजाम की सेवा के दौरान बनाया था।
जयनाथ मन्दिर : यह मन्दिर आदिलाबाद से 21 किलोमीटर दूर स्थित है। यहां मिले शिलालेखों से पता चलता है कि इसका निर्माण पल्लव प्रमुख ने करवाया था। मन्दिर में वास्तुशिल्प की जैन शैली के सभी लक्षण मौजूद हैं। इसीलिए इस मन्दिर का नाम जयनाथ पड़ा। कार्तिक शुक्ल अष्टमी से बहुला सप्तमी (अक्टूबर-नवम्बर) तक यहां लक्ष्मी नारायण स्वामी ब्रह्मोत्सव मनाया जाता है।
नागोबा मन्दिर : वनवासी समाज का यह पूज्यनीय स्थल आदिलाबाद से 32 किलोमीटरदूर केलसापुर नागोबा में स्थित है। इस मन्दिर में नाग की पाषाण प्रतिमा और शिवलिंग हैं। यहां नागपंचमी पर भव्य उत्सव का आयोजन होता है। पूस माह में निकाले जाने वाली केलसापुर जात्रा में समाज के सभी वर्गों के हजारों लोग शामिल होते हैं।
श्री ज्ञान सरस्वती मन्दिर :
मुधोल क्षेत्र के बासर गांव में गोदावरी के तट पर स्थित यह मन्दिर विद्या की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती को समर्पित है। बासर सरस्वती मन्दिर के नाम से प्रसिद्ध यह मन्दिर दक्षिण भारत में देवी सरस्वती को समर्पित एकमात्र मन्दिर है और भारत में देवी सरस्वती का सबसे पुराना मन्दिर माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, महाभारत के युद्ध के बाद महर्षि व्यास शान्ति की खोज में निकले। गोदावरी के किनारे-किनारे चलते हुए वह कुमारचला पहाड़ी पर पहुंचे और देवी सरस्वती की आराधना की। देवी ने प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन दिए। देवी के आदेश पर उन्होंने प्रतिदिन तीन जगह तीन मुट्ठी रेत रखी। रेत के ये तीन ढ़ेर तीन देवियों की मूर्तियों में बदल गये। ये देवियां हैं- सरस्वती, लक्ष्मी और काली। आज ये तीनों बसर की सर्वाधिक पूजनीय देवियां हैं। हालांकि तीनों देवियों की उपस्थिति के बावजूद यह मन्दिर मुख्य रूप से देवी सरस्वती को समर्पित है। देवी सरस्वती की चार फुट ऊंची प्रतिमा पद्मासन मुद्रा में है। मन्दिर में एक स्तम्भ भी है जिसमें से संगीत के सातों स्वर सुने जा सकते हैं।
इस क्षेत्र के लोग अक्षर पूजा के अवसर पर अपने बच्चों को यहां लाते हैं ताकि उनकी शिक्षा का आरम्भ ज्ञान की देवी के आशीर्वाद के साथ हो। वादायती शिला, अष्टतीर्थ आदि बसर के आसपास के अन्य प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं। महाशिवरात्रि, व्यास पूर्णिमा, वसन्त पंचमी, नवरात्र और दशहरा पर यहां बड़ी संक्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं और उत्सव जैसा माहौल रहता है।
ऐसे पहुंचें आदिलाबाद (How to reach Adilabad)
वायु मार्ग : निकटतम हवाई अड्डा हैदराबाद का राजीव गांधी इण्टरनेशनल एयरपोर्ट यहां से करीब 368 किलोमीटर दूर है। हैदराबाद के लिए देश के सभी बड़े शहरों से उड़ानें हैं।
रेल मार्ग : आदिलाबाद शहर का अपना रेलवे स्टेशन है। प्रयागराज, वाराणसी, हैदराबाद, औरंगाबाद, मुम्बई, ईरोड, हावड़ा आदि से आदिलाबाद के लिए ट्रेन सेवा है।
सड़क मार्ग : उत्तर में श्रीनगर से आरम्भ होकर दक्षिण में कन्याकुमारी तक जाने वाला राष्ट्रीय राजमार्ग 44 आदिलाबाज से गुज़रता है। आदिलाबाद शहर हैदराबाद से करीब 326, निजामाबाद से 151, नागपुर से 195 और पुणे से 764 किलोमीटर दूर है। तेलंगाना के सभी बड़े शहरों से यहां के लिए सरकारी और निजी बसें चलती है।