पूर्वोत्तर भारत के हरितिमा की चादर में लिपटे सघन वन क्षेत्र वाले राज्य नागालैंड की राजधानी है कोहिमा। नागालैंड शेष भारत के लोगों के लिए आज भी रहस्यलोक की तरह है तो कोहिमा के बारे में भी वे ज्यादा नहीं जानते। यहां के वनों में एक फूल पाया जाता है- केवही। इसी के नाम पर कभी इस स्थान का नाम पड़ गया केवहिमा जिसे कुछ लोग केवहिरा भी कहते थे। जब अंग्रेजों का यहां शासन हुआ तो वे इन दोनों ही नामों का सही से उच्चारण नहीं कर पाते थे। ऐसे में उन्होंने इसे कोहिमा कर दिया जो आज भी प्रचलित है।
कोहिमा पूर्वोत्तर भारत के सबसे सुंदर स्थानों में से एक है। बहुत पहले यहां अंगामी जनजाति रहती थी। समय के साथ अन्य जनजातियों के लोग भी यहां आने लगे। अब तो पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों की कई जनजातियों के लोग यहां रहते हैं। आज कोहिमा एक जानजातीय विविधता वाले शहर के रूप में विकसित हो चुका है।
कोहिमा सदियों तक दुनिया के अन्य भागों से अलग-थलग रहा है। 1840 में अंगेज यहां पहुंचे तो उन्हें स्थानीय लोगों के कड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ा। चार दशकों के लंबे संघर्ष के बाद यहां ब्रिटिश प्रशासकों का कब्जा हो गया। अंग्रोजों ने कोहिमा को नागा पहाड़ी जिले का प्रशासनिक मुख्यालय बनाया जो उस समय ओसोम (असम) का हिस्सा हुआ करता था। एक दिसंबर को इसे भारत के 16वें राज्य नागालैंड की राजधानी बनाया गया।
कोहिमा की सबसे बड़ी खूबी है इसकी नैसर्गिक प्राकृतिक सुंदरता। यहां प्रकृति के बेहद लुभावने नजारे देखने को मिलते हैं। ऊंची चोटियां, घुमड़ते बादल और बहकती हवा इस जगह को पर्यटकों के लिए खास बना देती है।
यहां आने वाले शाकाहारी पर्यटकों को भोजन संबंधी कुछ दिक्कत हो सकती है। कोहिमा समेत पूरे नगालैंड के लोग पारंपरिक रूप से मांसाहारी हैं। युगो-युगों से जंगली जानवरों का शिकार करना उनका शौक और भोजन के लिए मांस जुटाने की मजबूरी दोनों रहा है। कोहिमा के लोगों को उनके प्यार और आतिथ्य के लिए जाना जाता है। यहां आकर पर्यटकों को स्थानीय व्यंजनों को चखना नहीं भूलना चाहिए।
नागालैंड को उसकी समृद्ध और जीवंत संस्कृति के लिए जाना जाता है और पर्यटक कोहिमा में इस संस्कृति की झलक स्पष्ट रूप से देख सकते हैं। नागालैंड में हर जनजाति की स्वयं की औपचारिक पोशाक होती है जो विभिन्न रंगों के कपड़ों, मृत बकरियों के बालों, चिडि़यों के पंखों और हाथी के दांतों आदि से बनी होती है।
पर्यटकों के लिए इनर लाइन परमिट
कोहिमा संरक्षित क्षेत्र अधिनियम के अंतर्गत आता है। विदेशी पर्ययटकों को कोहिमा के संरक्षित क्षेत्र का भ्रमण करने के लिए विदेशी पंजीकरण अधिकारी के कार्यालय में पंजीकरण कराना कराना होता है। घरेलू पर्यटकों को इनर लाइन परमिट लेना पड़ता है जिसे उप आवासीय आयुक्त, नगालैड हाउस नई दिल्ली, कोलकाता, गुवाहाटी और शिलांग में सहायक आवासीय आयुक्त कार्यालय तथा दीमापुर, कोहिमा और मोकोकचुंग के उप आयुक्त कार्यालय से प्राप्त किया जा सकता है।
दर्शनीय स्थान
कोहिमा प्राणी उद्यानः कोहिमा प्रणीउद्यान (चिड़ियाघर) भारत के सबसे व्यवस्थित चिडि़याघरों में से एक होने के साथ ही नागालैंड आने वाले पर्यटकों के लिए सबसे बड़ा आकर्षण केंद्र है। यहां नागालैंड की दुर्लभ वनस्पतियों को संजो कर रखा गया है। जंगली जानवरों को यहां देखने का अपना अलग ही आनंद है। यहां का सबसे बड़ा आकर्षण दुर्लभ प्रजाति की ट्रगोपन चिडिया है जो नागालैंड का राज्य पक्षी भी है। ट्रगोपन चिडिया के अलावा यहां जंगली भैंसे की एक खास प्रजाति मिथुन भी देखने को मिलती है जो नागालैंड का राज्य पशु है। सुनहरा लंगूर और एशियाई काला भालू भी यहां देखे जा सकते हैं।
कोहिमा चर्चः कोहिमा में पर्यटक एशिया के सबसे बड़े चर्च को देख सकते हैं। करीब 25 हजार वर्गफुट में फैले इस चर्च में तीन हजार लोगों के बैठने की व्यवस्था है। चर्च में बेथलेहम जैतून की लकड़ी से बनी खूबसूरत नाद दर्शनीय है।
राज्य संग्रहालयः नागा आदिवासियों की संस्कृति से जुड़े विशेष दस्तावेज उपलब्ध नही हैं। हालांकि माना जाता है कि उनकी संस्कृति और इतिहास काफी रोचक है। नागालैंड सरकार ने बयावी पहाड़ी पर एक संग्राहलय का निर्माण कराया है। इस संग्राहलय में नागालैंड की संस्कृति और इतिहास से जुड़ी कई वस्तुओं को देखा जा सकता है। इनमें कीमती रत्न, हाथी दांत और मोतियों से बने हार, लकड़ी और भैंस के सींगों से बने वाद्ययंत्र प्रमुख हैं। यहां आर्ट गैलरी भी है। इसमें स्थानीय कलाकारों द्वारा बनाई गई खूबसूरत पेंटिंग्स को देखा और खरीदा जा सकता है।
नागा हेरिटेज कॉम्पलैक्सः नागालैंड सरकार द्वारा बनवाए गए इस कॉम्पलैक्स का उद्घाटन एक दिसम्बर 2003 को हुआ था। यहां पर प्रतिवर्ष हॉरनबिल उत्सव मनाया जाता है। यहां पर नागालैंड का छोटा प्रतिरूप भी देखा जा सकता है। इस कॉम्पलैक्स में द्वितीय विश्व युद्ध की घटनाओं से जुड़ा संग्रहालय, दुकानें, रेस्तरां और एम्फीथियेटर भी है।
कोहिमा गांवः कोहिमा गांव को एशिया का सबसे घनी आबादी वाला गांव माना जाता है। इसकी स्थापना व्हिनुओ नामक व्यक्ति ने की थी। कहा जाता है कि प्राचीन काल में यहां सात झीलें और सात द्वार थे लेकिन एक द्वार को छोड़कर ये सभी गायब हो चुके हैं। यह द्वार बहुत सुन्दर है और इसको भैंस के सींगो व विभिन्न आकार के पत्थरों से सजाया गया है।
दजुकोउ घाटी और जप्फु चोटीः कोहिमा के दक्षिण में 30 किलोमीटक जूर बहुत ही सुंदर दजुकोउ घाटी है। यहां विभिन्न रंगों और आकार के खूबसूरत फूलों को देख सकते हैं। इन फूलों में एकोनिटम और एन्फोबियस प्रमुख हैं। दजुकोउ घाटी पास ही सदाबहार जंगलों से आच्छादित जप्फु चोटी है। इन जंगलों में दुनिया के कुछ सबसे ऊंचे वृक्षों को देखा जा सकता है।
ऐसे पहुंचें कोहिमा
पूर्वोत्तर के सभी प्रमुख स्थानों गुवाहटी, इम्फाल, शिलांग, दीमापुर आदि से सड़क मार्ग से जुडा है। नेशनल हाईवे 39 इसे दीमापुर से जोड़ता है। यह मार्ग नेशनल हाईवे 37 से भी जुड़ा हुआ है जो कोहिमा को गुवाहटी से जोड़ता है। इसकी लंबाई 345 किमी है। यह मार्ग उत्तर पूर्व का प्रवेश द्वार कहलाता है।
कोहिमा में कोई भी रेलवे स्टेशन नहीं है। कोहिमा का सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन दीमापुर है जो यहां से 75 किमी दूर है। यह रेलवे स्टेशन गुवाहटी, कोलकाता, नई दिल्ली व देश के अन्य शहरों से भलीभांति जुड़ा हुआ है। इन सभी शहरों के लिए प्रतिदिन नियमित रूप से ट्रेन चलती हैं। पर्यटक दीमापुर से कोहिमा आने के लिए टैक्सी या बस ले सकते हैं। कोहिमा का निकटतम हवाई अड्डा दीमापुर में है।
छायाचित्रः गिरीश पांडेय और सोशल मीडिया