सार संसार एक मुनस्यार

समुद्र तल से 2300 मीटर की ऊंचाई पर स्थित मुनस्यारी को उत्तराखंड का “मिनी कश्मीर”  भी कहा जाता है। तिब्बत और नेपाल सीमा के करीब बसा यह पर्वतीय कस्बा साहसिक पर्यटन के शौकीनों के लिए किसी स्वर्ग से कम नहीं है।

गजेन्द्र त्रिपाठी : करीब 17 साल पहले हल्द्वानी नया-नया पहुंचा था। इसी दौरान अपने वरिष्ठ संपादकीय सहकर्मी दीवान बोरा से पूछ बैठा, “दाज्यू, कुमाऊं में सबसे सुंदर जगह कौन सी है?” मुझ जैसे नैनीताल, अल्मोड़ा, कौसानी और रानीखेत को ही कुमाऊं मानने वाले प्रवासी के लिए उनका जवाब अप्रत्याशित था, “सार संसार एक मुनस्यार।” इस पर मेरे माथे पर बल पड़ गए और जुबान से निकला, “मतलब?” बोराजी मेरा दाहिना कंधा थपथपाते हुए मुस्कराए, “भुला, मतलब ये कि सारे संसार की खूबसूरती एक तरफ और मुनस्यारी (Munsiyari) की सुंदरता एक तरफ।” 

जी हां, मुनस्यारी यानी “बर्फ वाली जगह”। उच्च हिमालयी क्षेत्र की विशाल तलहटी और सामने बर्फ से दमकता हिमालय की शान पंचाचूली (बर्फ से ढकी हिमालय की पांच श्रृंखलाबद्ध चोटियां)। उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले का ऐसा स्थान जिसका अधितर भाग साल में सात से आठ महीने बर्फ की मोटी चादर से ढका रहता है। इसे दुनिया “हिमनगरी” के नाम से भी जानती है। 

समुद्र तल से 2300 मीटर की ऊंचाई पर स्थित मुनस्यारी को उत्तराखंड का “मिनी कश्मीर”  भी कहा जाता है। तिब्बत और नेपाल सीमा के करीब बसा यह छोटा सा पर्वतीय शहर साहसिक पर्यटन के शौकीनों के लिए किसी स्वर्ग से कम नहीं है। गोरी गंगा नदी जोहार घाटी के मुख पर बसे मुनस्यारी से होकर बहती है। गोरी गंगा घाटी हिमालय वनस्पतियों के लिए प्रसिद्ध है जहां पक्षियों की कई प्रजातियां पायी जाती हैं। 

मुनस्यारी (Munsiyari) उत्तराखंड के दूरस्थ जिले पिथौरागढ़ में दिल्ली से लगभग 620 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां का सबसे बड़ा आकर्षण है इसके ठीक सामने स्थित पंचाचूली पर्वत श्रृंखला जो दरअसल पांच अलग-अलग हिमालयी चोटियां का समूह है। पहाड़ों के आसपास बादल मंडराते रहते हैं तो कभी कोहरा पूरे परिदृश्य को अपने आंचल में छिपा लेता है। ऐसे में पंचाचूली के दर्शन के लिए इंतजार करना पड़ सकता है। और अगर मौसम खुल जाए और पांचचूली अपने विराट स्वरूप में आपको दर्शन दे तो मान लीजिए कि आप सचमुच सौभाग्यशाली हैं और प्रकृति आप पर नेमत बरसा रही है। पर याद रखें कि मुनस्यारी का मतलब सिर्फ मुनस्यारी ही नहीं है। प्रकृति ने इसे तसल्ली के साथ गढ़ा है और वरदान देकर संवारा है। 

मुनस्यारी के इकोसिस्टम में नौ विभिन्न प्रकार के हैबिटाट (पर्यावास) इसको एक अनूठी जगह बनाते हैं जहां इतने सारे प्राकृतिक पर्यावरण एक ही जगह पर एक साथ मौजूद हैं। यहां के वनों में मुख्य रूप से बांज, बुरांश, देवदार, भोजपत्र, हॉर्स चेस्टनेट और जूनीपट के पेड़ हैं। कस्तूरी मृग, काकड़, घुरल, यैलो थ्रोटेड मार्टेन आदि दुर्लभ वन्यप्राणी यहां निर्भय होकर विचरण करते हैं। पक्षियों के लिए भी मुनस्यारी स्वर्ग से कम नहीं है। पक्षी विशेषज्ञों के अनुसार यहां पांच तरह के फेजेंट, पांच तरह के लाफिंग थ्रशेज, पांच तरह के रैप्टर्स (बाज), पांच किस्म के वार्बलर्स, पांच तरह के रोजफिंच, पांच तरह के थ्रशेज, और कई तरह के मोनाल, बुलबुल, टिट्स, फिंच, मैगपाई आदि देखने को मिलते हैं।  

प्रमुख  टूरिस्ट स्पॉट

बिरथी जलप्रपात : यहां तक पहुंचने के लिए मुख्य शहर से 35 किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता है। अपनी सुंदरता और अद्भुत दृश्यों के चलते यह जलप्रपात कुमाऊं के चुनिंदा पिकनिक स्प़ॉट के रूप में जाना जाता है। यह स्थान लंबी पैदल यात्रा और ट्रैकिंग के लिए भी जाना जाता है क्योंकि बस से कुछ किलोमीटर का सफर तय करने के बाद यहां तक पहुंचने के लिए ट्रैकिंग का सहारा लेना पड़ता है। 

कालामुनी टॉप : मुनस्यारी शहर से 14 किलोमीटर दूर स्थित यह स्थान समुद्र तल से 9600 फीट की ऊंचाई पर है। अद्भुत प्राकृतिक दृश्यों से भरा यह स्थान अपने धार्मिक महत्व के लिए भी जाना जाता है। यहां मां काली का एक प्राचीन मंदिर है जहां श्रद्धालु अपनी मनौती पूरी होने पर घंटी चढ़ाते हैं। पंचाचूली पर्वत श्रृंखला का विहंगम दृश्य इस स्थान को खास बनाता है।

महेश्वरी कुंड : मुनस्यारी से कुछ दूर स्थित महेश्वरी कुंड एक प्राचीन झील है जिसके साथ पौराणिक मान्यताएं भी जुड़ी हुई हैं। माना जाता है कि जब प्रतिशोध लेने के लिए मुनस्यारी के ग्रामीणों ने इस झील को सुखा दिया था तो यक्ष ने उनसे बदला लेने का फैसला किया जिसके बाद यह पूरा क्षेत्र सूखे की चपेट में आ गया। इस पर यहां के गांवों को बचाने के लिए लोगों ने यक्ष से माफी मांगी। मांफी मांगने की इस परंपरा का यहां आज भी पालन किया जाता है। महेश्वरी कुंड से भी पंचाचूली पर्वत श्रृंखला का दीदार किया जा सकता है। 

मैडकोट (मदकोट) : मुनस्यारी से पांच किलोमीटर दूर स्थित मैडकोट अपने गर्म पानी के प्राकृतिक कुंड के लिए जाना जाता है। माना जाता है कि इस कुंड का पानी त्वचा रोगों के अलावा बदन दर्द और गठिया जैसी बीमारियों को भी ठीक करने में सक्षम है। 

थमरी कुंड : थमरी कुंड एक बारहमासी झील है जो कुमाऊं में सबसे ताजे पानी की झील मानी जाती है। यहां तक पहुंचने के लिए सघन वृक्षों से घिरा एक सुंदर ट्रैकिंग रूट है।

इस पैदल मार्ग का सफर करीब आठ घंटे का है। मंजिल पर पहुंचने पर आपको एल्पाइन के वृक्षों से घिरी मनोरम झील के दर्शन होंगे। यदि किस्मत ने जोर मारा तो कस्तूरी मृग के दर्शन भी हो सकते हैं जो यहां पानी पीने आते हैं।

खलिया टॉप : खलिया टॉप मुनस्यारी आने वाले पर्यटकों के लिए सबसे बड़ा आकर्षण का केंद्र है। इसके एल्पाइन नेचर की शुरुआत भुजानी से हो जाती है। यहां पर पहुंचकर लगता है मानो हम वाकई बादलों से भी ऊपर ऊंचे पहाड़ों पर पहुंच गए हैं। दरअसल, खलिया टॉप एक बहुत बड़ा बुग्याल है। बुग्याल उच्च हिमलायी क्षेत्रों में स्थित बुग्गी घास के एक बड़े विस्तार में फैले मैदान को कहते हैं जो कहीं समतल होते हैं और कहीं असमतल।

खलिया टॉप की अधिकतम ऊंचाई करीब 13000 फुट है। यहां से हिमालय की बर्फ से ढकी पंचाचूली, नंदा देवी,  नंदा कोट, नामिक आदि चोटियों का नयनाभिराम नजारा देखने को मिलता है। यहां कई तरह के साहसिक खेलों- स्कीइंग, डाउन हिल माउंटेन ट्रैल बाइकिंग (साइक्लिंग), पैराग्लाइडिंग आदि का भी आयोजन होता रहता है।  

जो लोग खलिया टॉप तक नहीं जा सकते, उनके लिए बुग्याल का अनुभव लेने को एक छोटा बुग्याल मुनस्यारी में भी आईटीबीपी प्वाइंट के पास है।

बेटुली धार : बेटुली धार का ढलान स्नो स्कीइंग के शौकीनों के लिए किसी स्वर्ग से कम नहीं है। यहां समय-समय पर स्कीइंग के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित होते रहते हैं। खलिया टॉप और बेटुली धार के अलावा मेसर कुंड और थामरी कुंड भी यहां के प्रमुख ट्रैकिंग मार्ग हैं। 

जनजातीय संग्रहालय : यह संग्रहालय स्थानीय निवासी शेर सिंह पांगती के निजी प्रयासों से अस्तित्व में आया है। यहां प्राचीन स्थानीय वस्तुओं का संग्रह है। इनमें यहां के स्थानीय मूल निवासियों जिन्हें “शौका” भी कहा जाता है, से जुड़ी वेशभूषा, खान-पान के साजो-सामान, धातुओं और लकड़ी के बर्तनों, आभूषणों और रोजमर्रा के जीवन से जुड़ी अन्य वस्तुओं को प्रदर्शित किया गया है।

हिमनगरीका मौसम

यहां का मौसम पूरे साल बढ़िया रहता है और चारों ऋतुओं का आनंद लिया जा सकता है। लेकिन, पर्यटन के लिहाज से अप्रैल से मई और सितंबर से नवंबर तक का समय सर्वाधिक उपयुक्त है। वसंत ऋतु में यहां की छटा देखने लायक होती है। जून और जुलाई में यहां काफी बारिश होती है जिससे कभी-कभी रास्‍ते बंद हो जाते हैं। मुनस्यारी के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में साल में सात से आठ महीने हिमपात होता रहता है जबकि नवंबर से फरवरी तक भारी बर्फबारी होती है। यहां के एक बड़े क्षेत्र में लगभग पूरे साल बर्फ का चादर बिछी रहती है। इसी के चलते इसे “हिमनगरी” भी कहा जाता है।

मुनस्यारी का इतिहास

वर्ष 1960 में अल्मोड़ा से अलग होकर पिथौरागढ़ जिला बनने के बाद मुनस्यारी की भी तस्वीर बदलने लगी थी पर इसके बावजूद सन् 1962 तक यह भारत-चीन व्यापार का एक पड़ाव भर था। जोहार के दर्रों से भारतीय व्यापारी तिब्बत की ज्ञानिमा मंडी पहुंचते थे। 1962 में हुए युद्ध के बाद भारत-तिब्बत व्यापार बंद हो गया। इस कारण जोहार बुरी तरह प्रभावित हुआ। इसी दौरान मुनस्यारी कस्बा बनना शुरू हुआ। तब मुनस्यारी से निकटमत पक्की सड़क 132 किलोमीटर दूर पिथौरागढ़ और लगभग 150 किलोमीटर दूर गरुड़ तक थी। प्राथमिक शिक्षा के बाद आगे की पढाई के लिए अल्मोड़ा या पिथौरागढ़ जाना पड़ता था। धीरे-धीरे विकास शुरू हुआ और डामर रोड मुनस्यारी तक पहुंची तो इसके अद्भुत प्राकृतिक सौंदर्य की जानकारी बाकी दुनिया को मिलनी शुरू हुई। अब तो मुनस्यारी से आगे तक भी पक्की सड़क है।

ऐसे पहुंचें हिमनगरी

रेल और सड़क मार्ग : मुनस्यारी दिल्ली से लगभग 620 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इसके निकटतम रेलवे स्टेशन टनकपुर, हल्द्वानी और काठगोदाम हैं। काठगोदाम रेलवे स्टेशन से मुनस्यारी की दूरी करीब 295 किलोमीटर है। काठगोदाम से करीब पांच किमी पहले हल्द्वानी रेलवे स्टेशन है। ये दोनों स्टेशन रेल मार्ग से कोलकाता, लखनऊ, कानपुर, गोरखपुर, बरेली, जम्मू, दिल्ली, देहरादून आदि से जुड़े हैं। यहां से मुनस्यारी की यात्रा बस अथवा टैक्सी से की जा सकती है। इस खूबसूरत लेकिन दुर्गम पहाड़ी मार्ग पर कुमाऊं के कई पर्यटन स्थल स्थित हैं। उत्तराखंड परिवहन निगम मुनस्यारी के लिए दिल्ली, देहरादून, हल्द्वानी, टनकपुर और पिथौरागढ़ से बसों का संचालन करता है।

हवाई मार्ग : पिथौरागढ़ के पास स्थित नैनी सैनी हवाई पट्टी के लिए गाजियाबाद के हिंडन से गुरुवार को छोड़ प्रतिदिन छोटा यात्री विमान उड़ान भरता है। पंतनगर एयरपोर्ट मुनस्यारी से करीब 325 किमी दूर है। मुनस्यारी से करीब 400 किमी दूर स्थित बरेली एयरपोर्ट से दिल्ली, मुंबई, बेंगलूर आदि के लिए विमान सेवा उपलब्ध है।

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