झांसी का किला : एक-एक ईंट देती है रानी लक्ष्मीबाई की वीरता की गवाही

  बूढ़े भारत में आई फिर से नयी जवानी थी,…

                          …खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

Yatra Partner: यदि आज आप 1857 की क्रांति के समय की वीर क्रांतिकारी रानी लक्ष्मीबाई पर बनी कोई फिल्म देखेंगे तो उसमें एक सीन होगा कि – झांसी की रानी, लक्ष्मीबाई, अपने महल के सातवें माले पर खड़ी हैं वो ठंडी पड़ चुकी आंखों के साथ अपनी जलती हुई झांसी को देख रही हैं। सड़कों के आवारा कुत्ते लाशों को चीरकर खाते हुए पागल हो चुके हैं। एक साथ हज़ारों लोगों की चीखें आसमान को भेदती हुई चली जाती हैं। हर तरफ आग, खून, लूटपाट और मौत के घाट उतार दिए गए झांसी के नागरिक हैं। सिनेमा हॉल के बड़े परदे पर ऐसा दृश्य देखकर किसी की भी रूह कांप सकती है, लेकिन ऐसा वास्तव में हुआ था।

1857 की इस क्रांति के इस चरण को झांसी के किले में रानी लक्ष्मीबाई के साथ ही अपनी आंखों से देखने वाले मराठी लेखक विष्णु भट्ट गोडसे ने अपनी किताब में ये सब लिखा है। लगभग 12 दिन तक चली इस लड़ाई में वो झांसी के किले में रहकर इस रोयें खड़ करने वाली घटना के साक्षी बने। अपने समय की ये इकलौती किताब है जो किसी भारतीय ने लिखी है। बाकी सब ब्यौरे अंग्रेज़ों की तरफ से लिखी गई किताबों और पत्रों में ही मिलते हैं। तो चलिए आज हम आपको झांसी में बने रानी लक्ष्मीबाई के किले पर ले चलतें हैं।

झाँसी में बंगरा नामक पहाड़ी पर 1613 इस्वी में यह दुर्ग ओरछा के बुन्देल राजा बीरसिंह जुदेव ने बनवाया था। 25 वर्षों तक बुंदेलों ने यहाँ राज्य किया उसके बाद इस दुर्ग पर क्रमश मुगलों, मराठों और अंग्रजों का अधिकार रहा। मराठा शासक नारुशंकर ने 1729-30 में इस दुर्ग में कई परिवर्तन किये जिससे यह परिवर्धित क्षेत्र शंकरगढ़ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में इसे अत्यधिक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त हुआ। झांसी में रानी लक्ष्मी बाई के किले को देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। कभी अंग्रेजों ने इस किले पर कब्जा करने के लिए कई दिन तक 60-60 सेर वजनी तोपों के गोले 8 दिन तक बरसाए थे। लेकिन किले की दीवार न हिला सके। पिछले 400 सालों से यह किला आज भी पूरी शान से खड़ा है। यह मराठा शासकों का शासन रहा, लेकिन आज भी यह रानी लक्ष्मीबाई किला के नाम से ही जाना जाता है। वर्ल्ड हेरिटेज साइट में यूपी की 5 बिल्डिंग्स को शामिल किया गया है। इसमें रानी लक्ष्मीबाई का किला भी शामिल है।

1938 में यह किला केन्द्रीय संरक्षण में लिया गया। यह दुर्ग 15 एकड़ में फैला हुआ है। इसमें 22 बुर्ज और दो तरफ़ रक्षा खाई हैं। नगर की दीवार में 10 द्वार थे। इसके अलावा 4 खिड़कियाँ थीं। दुर्ग के भीतर बारादरी, पंचमहल, शंकरगढ़, रानी के नियमित पूजा स्थल शिवमंदिर और गणेश मंदिर जो मराठा स्थापत्य कला के सुन्दर उदाहरण हैं।

किले के सबसे ऊँचे स्थान पर ध्वज स्थल है जहाँ आज तिरंगा लहरा रहा है। किले से शहर का भव्य नज़ारा दिखाई देता है। यह किला भारतीय पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है और देखने के लिए पर्यटकों को टिकट लेना होता है। वर्ष पर्यन्त देखने जा सकते हैं।

झाँसी के किले की संरचना

पहाड़ी क्षेत्र में खड़े झाँसी के किले से पता चलता है कि किले का निर्माण की उत्तर भारतीय शैली और दक्षिण भारतीय शैली से कैसे भिन्न है। इस किले की ग्रेनाइट दीवारें 16 से 20 फीट मोटी हैं और दक्षिण की तरफ शहर की दीवारों से मिलती हैं। किले का दक्षिण भाग लगभग लंबवत है। किले में प्रवेश करने के लिए 10 द्वार है। इनमे से उन्नाव गेट, ओरछा गेट,  बड़गांव गेट, लक्ष्मी गेट, खंडेराव गेट, दतिया दरवाजा,  सागर गेट, सैनिक गेट और चांद गेट हैं। इस किले में उल्लेखनीय और दर्शनीय जगह शिव मंदिर, प्रवेश द्वार पर गणेश मंदिर और 1857 के विद्रोह में इस्तेमाल की जाने वाली कड़क बीजली तोप है। किले के पास में ही रानी महल है जिसे 19वीं शताब्दी में निर्मित किया गया था और वर्तमान में यहा एक पुरातात्विक संग्रहालय है। यह किला 15 एकड़ के एरिया में फैला हुआ है।

क्या कहते हैं टूरिस्ट

कुछ टूरिस्ट ने बताया कि ये किला आज भी रानी की बहादुरी को जिंदा बनाए हुए है। इसकी एक-एक ईंट रानी के साहस की साक्षी रही है। यहां से शहर का खूबसूरत नजारा दिखता है। ये किला झांसीवासियों के साथ-साथ दूसरों को भी उर्जा दे रहा है। 

किले में ये चीजें हैं आकर्षण का केंद्र

किले में रानी झांसी गार्डन, शिव मंदिर, गुलाम गौस खान, मोतीबाई और खुदा बख्‍श की मजार टूरिस्टों के लिए आकर्षण का केंद्र रही हैं। साथ ही रानी का पंचशील महल और कड़क बिजली तोप को भी किले का मुख्य आकर्षण माना जाता है। गुलाम गौस खान कड़क बिजली तोप चलाया करते थे। यहां फांसी गृह भी है। रानी की शादी से पहले यहां गुनहगारों को फांसी दी जाती थी, लेकिन लक्ष्मीबाई के आग्रह करने पर इसे रोक दिया गया।  

झाँसी के किले में लाइट एंड साउंड शो 

स्थान झाँसी का किला
फीस रु 50 / – (भारतीय), रु 300 / – (विदेशी)
समय शाम 7.45 बजे। हिंदी (ग्रीष्म ऋतु में) (अप्रैल से ऑक्टेबर)
समय रात 8.45 बजे। अंग्रेज़ी
समय शाम 6.30 बजे। हिंदी (सर्दियों में) (नवंबर से मार्च)
समय शाम 7.30 बजे। अंग्रेजी (नवंबर से मार्च)

झाँसी में कहाँ-कहाँ घूम सकते है

हर्बल गार्डन

झाँसी का हर्बल गार्डन बहुत ही सुन्दर जगह है इस स्थान पर 20000 प्रजातियों के अलग-अलग पेड़-पौधे लगे हुए है। जो यहा आने वाले सभी उम्र के पर्यटकों के लिए सुखद अनुभव का एहसास कराते है। सेल्फी लेने के लिए यह स्थान युवाओं के दरमयान बहुत ही लोकप्रिय है। यदि आप कभी झाँसी जाएं तो हर्बल गार्डन की सैर करना बिल्कुल न भूले। टाइगर प्रॉल के रूप में लोकप्रिय यह स्थान अपने आप को फिर से जीवंत करने के लिए एक सुखद अनुभव है।

रानी महल

रानी महल भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के झाँसी शहर में एक शाही महल है। इस महल का निर्माण नेवलकर परिवार के रघुनाथ दिवतीय द्वारा किया गया था। इसी महल को बाद में रानी लक्ष्मीबाई के लिए एक निवास स्थान बनाया गया। वास्तुकला की दृष्टि से यह महल एक सपाट छत वाली दो मंजिला इमारत है। जिसमें एक कुआँ और एक फव्वारा है। महल में छह हाल, समानांतर गलियारा और कई छोटे-छोटे कमरे हैं।

रानी लक्ष्मी बाई पार्क 

रानी लक्ष्मी बाई पार्क यहा के स्थानीय निवासियों के साथ-साथ यहा आने वाले पर्यटकों की भी पसंदीदा जगह बन चुकी है। शाम होने के साथ ही यह पार्क रंग-बिरंगी रौशनियों से जगमगा जाता है। इससे इस स्थान पर परम सौंदर्य की अनुभूति होती है। रानी लक्ष्मी बाई पार्क में अपने प्रियजनों और परिवार के साथ जाने के लिए एक आदर्श स्थान है।

महाराज गंगाधर राव की छतरी 

यह छतरी झाँसी के महाराजा गंगाधर राव को समर्पित है। गंगाधर राव झाँसी के राजा होने के साथ-साथ लक्ष्मी बाई के पति भी थे। इस छतरी का निर्माण उनकी पत्नी लक्ष्मी बाई के द्वारा ही करवाया गया था। महाराज गंगाधर राव की छतरी झाँसी के महत्वपूर्ण स्मारकों में से एक है और यह छतरी झाँसी आने वाले पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बनी हुई है।

महालक्ष्मी मंदिर

महालक्ष्मी मंदिर

झाँसी का महालक्ष्मी मंदिर यहां का एक प्राचीन मंदिर है जो धन की देवी महालक्ष्मी को समर्पित है। महालक्ष्मी मंदिर झाँसी के अन्य पर्यटक स्थलों में से एक महत्वपूर्ण स्थल है। झाँसी का यह पवित्र मंदिर पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता हैं। यदि आप झाँसी घूमने जाते है तो यहाँ के महालक्ष्मी मंदिर  में जाकर देवी माँ के दर्शन करना भूले।

किला घूमने का सही समय

यदि आप झाँसी का किला घूमने की योजना बना रहे है तो हम आपको बता दे कि यहा घूमने के लिए सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च तक माना जाता है। क्योंकि झाँसी शहर घूमने के लिए यह मौसम शीतल और अनुकूल होता है और आप पूरा झाँसी शहर बिना किसी परेशानी के घूम कर आनंद उठा सकते है। जबकि मार्च के बाद गर्मी का मौसम शुरू हो जाता है और इस मौसम में यहा गर्म हवाए और धूल की वजह से आपको असुविधा का सामना करना पड़ सकता है। जबकि बारिश के मौसम में झाँसी शहर में अधिक वर्षा देखने को मिलती है। जिसकी वजह से आप झाँसी शहर के प्रसिद्ध स्थानों का आनंद उठाने से वंचित रह सकते है। झाँसी के किले में आप रोजाना सुबह 7 बजे से शाम के 6 बजे तक घूमने जा सकते है।

झाँसी : किला की एंट्री फीस 

यदि आप झाँसी का किला घूमने का मन बना चुके है तो हम आपको बता दें कि यहाँ घूमने के लिए कुछ शुल्क अदा करनी होती है जिसकी जानकारी हम आपको देते है- भारतीय नागरिकों के लिए – 25 रूपये प्रति व्यक्ति
विदेशी नागरिको के लिए  – 300 रूपये प्रति व्यक्ति

झांसी में उपलब्ध होटल

यदि आप झाँसी का किला घूमने जा रहे है तो हम आपको बता दें कि झाँसी शहर में लो-बजट से लेकर हाई-बजट तक की होटल मौजूद है। तो आप अपनी सुविदा और बजट के अनुसार किसी भी होटल का चुनाव कर सकते है ओर झाँसी शहर में जब तक आपका मन करे रुक सकते है।

झाँसी का किला कैसे पहुँचे 

झाँसी का किला पहुँचने के लिए आप फ्लाइट, ट्रेन, बस और अपने व्यक्तिगत साधन में से किसी का भी चुनाव अपनी सुविदानुसार कर सकते है। झाँसी किला पहुँच कर आप इस पर्यटन स्थल की खूबसूरती और इस किले से जुड़े रोचक तथ्यों का आनंद उठा सकते है।

 झाँसी का किला फ्लाइट से कैसे पहुँचे

यदि आप हवाई मार्ग से झांसी पहुंचना चाहते है तो हम आपको बता दे कि ग्वालियर हवाई अड्डे के माध्यम से आप झाँसी पहुँच सकते है। यह हवाई अड्डा मुख्य शहर झाँसी से लगभग 100 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। पर्यटक ग्वालियर हवाई अड्डे से झांसी पहुँचने के लिए टैक्सी सेवा का लाभ उठा सकते है। अंतर्राष्ट्रीय यात्री दिल्ली हवाई अड्डे से कनेक्टिंग फ्लाइट की सुविदा ले सकते हैं। ग्वालियर हवाई अड्डा भारत के प्रमुख शहरों जैसे भोपाल, वाराणसी, आगरा, मुंबई और जयपुर आदि से नियमित उड़ानों के माध्यम से जुड़ा हुआ है।

झाँसी का किला ट्रेन से कैसे पहुँचे

ट्रेन के माध्यम से झाँसी पहुँचना काफी आरामदायक और आसान है। झांसी जंक्शन रेलवे स्टेशन भारत के प्रमुख शहरों के साथ लगातार ट्रेनों के माध्यम से जुड़ा हुआ है और दिल्ली-मुंबई रेलवे मार्ग पर स्थित है। आप रेलवे स्टेशन से यहाँ चलने वाले स्थानीय साधनों के माध्यम से किला तक पहुँच सकते है।

झाँसी का किला रोड से कैसे पहुँचे

यदि आपने झांसी की यात्रा के लिए सड़क मार्ग को चुना है तो बता दें कि झाँसी शहर सड़क मार्ग के माध्यम से पहुंचना बहुत ही आसान है। झाँसी का सफ़र तय करने और घूमने के लिए आप राज्य परिवहन की बस या टैक्सी की सुविधा ले सकते हैं। झाँसी से ग्वालियर की दूरी लगभग 102 किमी,  माधोगढ़ से 139 किमी और आगरा से 233 किमी है। आप झाँसी के इन तमाम बस स्टॉप- झांसी का किला टर्मिनल बस स्टॉप, बड़ा बाजार टर्मिनल बस स्टॉप, गंगा मार्केट मिनर्वा क्रॉसिंग बस स्टॉप और खंडेराव गेट बस स्टॉप पर उतर कर यहा के स्थानीय साधनों की मदद से किला पहुँच जाएंगे।

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