केला :  ऋषि के श्राप से उपजा पूजा का प्रसाद

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रेनू जे. त्रिपाठी

खेतों में काम कर रहे हों या खेल के मैदान में दमखम और कौशल का प्रदर्शन, भूख और थकान लगने पर सबसे ज्यादा आसानी से खाया और तुरंत स्फूर्ति देने वाला फल है केला। लम्बी यात्रा पर निकल रहे हों तो भी केला ही एकमात्र ऐसा फल है जिसे बिना किसी झंझट के खाया जा सकता है। न हाथ धोने की मजबूरी और न ही चाकू-छुरी जरूरी। एक हाथ से पकड़ दूसरे हाथ से छीलने के बाद उदरस्थ कर तृप्ति की डकार लीजिये। सदियों से ऐसा होता आया है। अपने इन्हीं गुणों के चलते यह दुनिया का दूसरा सबसे पसंदीदा फल है। पहला नम्बर है टमाटर का जो सब्जी की “फर्जी” पहचान के साथ दुनियाभर की रसोइयों में राज कर रहा है। 

ज्यादातर लोग मानते हैं कि केला पेड़ पर होता है। देखने में ऐसा लगता भी है। लेकिन, यह सच नहीं है। केला मूसा जाति की घास पर लगने वाला फल है। केले का पेड़ दरअसल पत्तों का एक समूह होता है। अन्य वृक्षों की तरह इसमें तना नहीं होता, सिर्फ फल देने के लिए ही जड़ से एक ही डंठल निकलता है। फल आने के बाद पेड़ का उद्देश्य खत्म हो जाता है इसलिए इसको काट दिया जाता है। फिर उसकी जड़ से एक नया अंकुर निकलता है पेड़ बनने के लिए।

केला एक नगदी फसल मानी जाती है। दुनिया के कुल उत्पादन में 25 प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ भारत सबसे बड़ा केलाउत्पादक देश है। आंध्र प्रदेश, केरल, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र का देश के केला उत्पादन में 70 फीसदी से अधिक योगदान है।

भारतीय उपमहाद्वीप को केले का मूल स्थान माना जाता है जहां की उष्ण तथा आर्द्र जलवायु इसके लिए उत्तम है। हालांकि कुछ लोग दक्षिण अमेरिका महाद्वीप के ईक्वाडोर तो कुछ लोग एशिया में मलेशिया को इसका उत्पत्ति स्थल मानते हैं। दक्षिण अमेरिका के ईक्वाडोर, पैराग्वे, त्रिनिडाड एंड टोबैगो, बारबाडोस, जमैका आदि देशों में केला मुख्य भोजन में शामिल है। अफ्रीका, आस्ट्रेलिया और उत्तरी अमेरिका के कुछ क्षेत्रों में भी केले का बागवानी की जाती है। एशिया महाद्वीप के भारत, चीन और इण्डनेशिया दुनिया के सहसे बड़े केला उत्पादक हैं।

बहुउपयोगी है केला

केले का 86 प्रतिशत से अधिक उपयोग खाने के लिए होता है। पका केला अत्यंत पौष्टिक और ऊर्जा देने वाला होता है। इससे पाउडर, मुरब्‍बा, टॉफी, जेली आदि भी बनाये जाते हैं। इसके फूल, कच्‍चे फल और तने के भीतरी भाग को सब्जी बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। सूखे पत्तों का इस्तेमाल आच्‍छादन के लिए करते हैं। केले के तने और कंद के टुकडे करके जानवरों को खिलाये जाते हैं। दक्षिण भारत में केले के पत्ते पर भोजन करने की परम्परा है। धार्मिक कार्य के समय पूजा स्थल को केले के पत्तों से सजाया जाता है। केले के पके फल पूजा के समय देवों को अर्पित किये जाते हैं। इसके वृक्षों को तराश कर विवाह के लिए मण्डप भी बनाया जाता है।

केले की उत्पत्ति की पौराणिक कथा हिन्दू धर्मग्रन्थों में केले के वृक्ष को अत्यंत पवित्र बताया गया है जिस पर भगवान विष्णु और देवगुरु बृहस्पति का वास होता है। पौराणिक कथा है कि ऋषि दुर्वासा ने एक बार क्रोधित होकर अपनी पत्नी कंदली को भस्म होने का श्राप दे दिया। क्रोध शांत होने पर दुर्वासा ऋषि को अत्यंत पश्चाताप हुआ और उन्होंने कंदली की राख को पेड़ में बदल दिया और वरदान दिया कि अब से यह हर पूजा और अनुष्ठान का हिस्सा बनेगा। इस तरह केले के पेड़ का जन्म हुआ और कदलीफल यानी केले का फल हर पूजा का प्रसाद बन गया।

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