अल्फ्रेड पार्क : यहां चंद्रशेखर आजाद ने निभाया था अपना प्रण

प्रयागराज में एक ऐसा पार्क भी है जिसका नाम स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है। ये है- चंद्रशेखर आजाद पार्क जो कभी अल्फ्रेड पार्क के नाम से जाना जाता था और उससे भी पहले कंपनी बाग के नाम से बरतानिया हुकूमत की शान हुआ करता था। 

यात्रा पार्टनर ब्यूरो : प्रयागराज के पास वह सबकुछ है जिस पर कोई भी शहर इतरा सकता है। त्रिवेणी और महाकुंभ इसकी पौराणिक पहचान हैं तो शिक्षा का महातीर्थ इलाहाबाद विश्वविद्यालय भी यहीं है। साहित्य में अवदान इतना अधिक कि कभी साहित्य और इलाहाबाद एक-दूसरे के पर्याय हुआ करते थे। स्वतंत्रता आंदोलन की अहिंसक धारा का केंद्रीय स्थल रहा आनंद भवन यहीं है तो इसी शहर में एक ऐसा पार्क भी है जिसका नाम स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है। ये है चंद्रशेखर आजाद पार्क जो कभी अल्फ्रेड पार्क के नाम से जाना जाता था और उससे भी पहले कंपनी बाग के नाम से बरतानिया हुकूमत की शान हुआ करता था। 

दरअसल, कंपनी बाग को अंग्रेजों के आरामगाह पार्क के रूप में संवारा गया था। सन् 1870 के आस-पास सर अल्फ्रेड इलाहाबाद आये थे। बाद में उनके नाम पर ही इसे अल्फ्रेड पार्क के नाम से सरकारी दस्तावेजों में दर्ज कर लिया गया। 

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन जब तेजी पकड़ रहा था, उसी दौरान इसमें दो धड़े नजर आने लगे। पहली धारा के प्रतिनिधि चेहरे मोहनदास कर्मचंद गांधी और जवाहरलाल नेहरू थे तो दूसरी धारा चंद्रशेखर आजाद और रामप्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में अपने तरीके से आजादी के लिए संघर्ष कर रही थी।चंद्रशेखर आजाद बचपन से ही भारत की स्वतंत्रता को लेकर गंभीर थे और प्रण ले चुके थे कि वे जीते जी अंग्रजों के हाथ नहीं आएंगे। सन् 1922 में गांधीजी द्वारा असहयोग आंदोलन को एकाएक बंद कर दिए जाने के कारण उनकी विचारधारा में बदलाव आया और वे क्रांतिकारी गतिविधियों से जुड़ कर हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के सक्रिय सदस्य बन गए। इस संस्था के माध्यम से उन्होंने राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में 9 अगस्त 1925 को काकोरी कांड को अंजाम दिया और फरार हो गए। सन् 1927 में रामप्रसाद बिस्मिल समेत चार प्रमुख साथियों की शहादत के बाद उन्होंने उत्तर भारत के सभी क्रांतिकारी दलों को मिलाकर हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन का गठन किया। इसी के ओजस्वी सदस्य भगत सिंह के साथ लाहौर में लाला लाजपत राय की मौत का बदला सांडर्स की हत्या करके लिया एवं दिल्ली में केंद्रीय असेंबली बम कांड को अंजाम दिया।

ऐतिहासिक दस्तावेज बताते हैं कि चंद्रशेखर आज़ाद ने मृत्युदंड की सजा से दंडित तीन प्रमुख क्रांतिकारियों भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की सजा कम कराने का काफी प्रयास किया। इसी क्रम में वह हरदोई जेल में बंद गणेश शंकर विद्यार्थी से मिले। विद्यार्थी जी से परामर्श कर वह इलाहाबाद गए और 27 फरवरी 1931 को जवाहरलाल नेहरू से उनके निवास आनंद भवन में भेंट की। आजाद ने नेहरू से आग्रह किया कि वे गांधी जी से कह कर लॉर्ड इरविन पर इन तीनों की फांसी की सजा को उम्रकैद में बदलवाने के लिए जोर डलवाएं। नेहरू ने जब यह अनुरोध ठुकरा दिया तो आजाद ने उनसे काफी देर तक बहस भी की। इससे नाराज होकर नेहरू ने आजाद से तुरंत वहां से चले जाने को कहा।

नेहरू द्वारा उनकी बात न मानने की वजह से आजाद काफी दुखी हुए। आनंद भवन से निकल कर वह साइकिल से अल्फ्रेड पार्क चले गए। अल्फ्रेड पार्क में वह सुखदेव राज से मंत्रणा कर ही रहे थे कि तभी सीआईडी का एसएसपी नॉट बाबर जीप से वहां आ धमका। उसके पीछे-पीछे बड़ी संख्या में कर्नलगंज थाने की पुलिस भी आ गई। दोनों ओर से गोलीबारी शुरू हो गई। गोलीबारी के बीच में ही आजाद ने सुखदेव राज को वहां से भगा दिया और अकेले ही पुलिस का सामना किया। ब्रिटिश पुलिस के 15  सिपाहियों को निशाना बनाने के बाद जब पिस्टल में सिर्फ एक गोली बची तो उन्होंने खुद को अंग्रेजों के सुपुर्द करने के बजाए स्वयं को गोली मार ली और वीरगति को प्राप्त हुए।

ब्रितानी हुकूमत की पुलिस के लिए यह बहुत बड़ी कामयाबी थी। क्रांतिकारियों के शिखर पुरुष की निर्जीव काया उनके सामने पड़ी थी। आजाद भले ही जिंदा नहीं थे पर हुकूमत पर उनका खौफ तारी था। धूर्त अंग्रेज जानते थे कि जीवित आजाद उनके लिए जितना खतरनाक थे, मरने के बाद उससे भी ज्यादा खतरनाक हो सकते हैं। लिहाजा पुलिस ने बिना किसी को इसकी सूचना दिए उनका अंतिम संस्कार कर दिया। जैसे ही आजाद के बलिदान की खबर जनता को लगी, पूरा इलाहाबाद मानो अलफ्रेड पार्क में उमड़ पड़ा। जिस वृक्ष के नीचे आजाद शहीद हुए थे लोग उसकी पूजा करने लगे। वृक्ष के तने के इर्दगिर्द झंडियां बांध दी गईं। वहां की मिट्टी को लोग शीशियों में भरकर ले जाने लगे। पूरे शहर में जब‍रदस्त तनाव हो गया। लोग सडकों पर आ गए। शाम होते-होते सरकारी प्रतिष्ठानों पर हमले होने लगे। आजाद कि स्मृति में इसी अल्फ्रेड पार्क को अब चंद्रशेखर आजाद पार्क कहा जाता है।

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