प्रकृति ने इस द्वीप समूह को दोनों हाथों से सुंदरता का उपहार दिया है पर उर्वरा जमीन और पेयजल स्रोतों से वंचित रखा है। इस कारण खेती तो नहीं ही हो पाती, औद्योगिक विकास की भी कोई संभावना नहीं है। इसके चलते स्थानीय प्रशासन पर्यटन को ही उद्योग के रूप में विकसित कर रहा है।
यात्रा पार्टनर न्यूज नेटवर्क : लक्षद्वीप, भारत की मुख्य भूमि से करीब 400 किलोमीटर दूर अरब सागर में 36 द्वीपों का समूह जिसकी उत्पत्ति लाखों साल पहले हुए ज्वालामुखी विस्फोट से हुई थी। अद्भुत प्राकृतिक सुंदरता के धनी इस स्थान के कुछ द्वीपों पर आज भी कोई इंसान नहीं रहता है। भारत के इस सबसे छोटे केंद्रशासित क्षेत्र के केवल 10 द्वीपों पर मनुष्य स्थायी रूप से निवास करते हैं, बाकी सभी निर्जन हैं। देसी पर्यटकों को छह द्वीपों पर जाने की अनुमति है जबकि विदेशी पर्यटक केवल दो द्वीपों- बंगारम और अगत्ती पर ही जा सकते हैं। यहां का अनछुआ सौंदर्य प्रकृति प्रेमियों को शिद्दत से लुभाता है।
लक्षद्वीप भारत का एकमात्र “मूंगा द्वीप” समूह है। इन द्वीपों की श्रृंखला मूंगा एटोल है। एटोल मूंगे द्वारा बनाई गई ऐसी रचना है जो समंदर की सतह पर पानी और हवा मिलने पर बनती है। केवल इन्हीं परिस्थितियों में मूंगा जीवित रह सकता है।
लक्षद्वीप का प्राकृतिक सौंदर्य, शांत और प्रदूषणमुक्त वातावरण, चारों ओर समंदर और उसकी पारदर्शी सतह पर्यटकों को सम्मोहित कर लेती है। समुद्री जल में तैरती मछलियां इन द्वीपों की सुंदरता को और बढ़ा देती हैं। लगभग सभी द्वीपों पर नारियल, पाम, पपीता और केले के वृक्षों की भरमार है।
लक्षद्वीप में पीने के पानी का कोई स्रोत नहीं है। इस कारण बारिश के पानी को ही इकट्ठा करके इस्तेमाल किया जाता है। कुछ द्वीपों में कुएं और तलाब बनाए गए हैं जिनमें वर्षा का पानी संचित किया जाता है। यहां धरती की सतह पर ज्वालामुखी की राख की बहुतायत की वजह से अनाज और सब्जियों की खेती नहीं हो सकती। इस कारण अनाज, सब्जियां, मसाले व अन्य खाद्य सामग्री केरल के कोच्चि से मंगाई जाती है।
प्रकृति ने इस द्वीप समूह को दोनों हाथों से सुंदरता का उपहार दिया है पर उर्वरा जमीन और पेयजल स्रोतों से वंचित रखा है।इस कारण खेती तो नहीं ही हो पाती, औद्योगिक विकास की भी कोई संभावना नहीं है। इसके चलते स्थानीय प्रशासन पर्यटन को ही उद्योग के रूप में विकसित कर रहा है। साहसिक खेलों के शौकीनों के लिए स्कूबा डाइविंग और स्नोर्कलिंग की सुविधाएं बढ़ाई जा रही हैं। अच्छे होटल, यात्री निवास और हट्स बनाए गए हैं। इस कारण देश का यह सबसे छोटा केंद्रशासित क्षेत्र सबसे लोकप्रिय पर्यटन स्थलों में जगह बना रहा है।
पर्यटन विकास के साथ ही यहां हस्तशिल्प को भी प्रोत्साहन दिया जा रहा है। इसके लिए नारियल के रेशे से बनने वाले उत्पादों को प्रोत्साहित किया जा रहा है। यहां सरकारी क्षेत्र के अधीन नारियल के रेशों की सात फैक्ट्रियां, सात रेशा उत्पादन एवं प्रदर्शन केंद्र और चार रेशा बंटने वाली इकाइयां हैं। इन इकाइयों में नारियल के रेशों से रस्सी, कॉरीडोर मैट, चटाइयां और दरियां बनाई जाती हैं। लोग घरों में भी इन्हें बनाते हैं।
मुख्य द्वीप
यूं तो लक्षद्वीप में छोटे-छोटे 36 द्वीप हैं पर इनमें से आठ महत्वपूर्ण हैं। ये हैं- कवरत्ती, बंगारम, कलपेनी, मिनिकॉय, कदमत, अगत्ती, अनद्रोथ और बित्रा। पर्यटकों को अनद्रोथ जाने की अनुमति नहीं है। कवरत्ती यहां की राजधानी है।
लक्षद्वीप नाम संस्कृत के लक्ष: यानी लाख और द्वीप शब्दों को जोड़कर बना है। यहां हिंदी, अंग्रेजी और मलयालम भाषाएं प्रचलन में हैं। माहल केवल मिनिकॉय में बोली जाती है।
ऐसे पहुंचें लक्षद्वीप
वायुमार्गः द्वीप समूह का एकमात्र एयरपोर्ट है अगत्ती जोनियमित उड़ानों से कोच्चि अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से जुड़ा हुआ है। कोच्चि एयरपोर्ट देश के लगभग सभी प्रमुख शहरों से जुड़ा है। हेलिकॉप्टर से भी लक्षद्वीप पहुंचा जा सकता है।
जलमार्गः लक्षद्वीप पानी का जहाज से भी पहुंचा जा सकता है। कोच्चि से यहां के लिए यात्री जहाज संचालित होते हैं जो 18 से 20 घंटे में यहां पहुंचा देते हैं। मानसून के दौरान जहाज सेवाएं बंद रहती हैं।
हेलीकाप्टर एंबुलेंस सेवाः एक द्वीप को दूसरे द्वीप और मुख्य भूमि से जोड़ने के लिए हेलीकाप्टर एंबुलेंस सेवा भी उपलब्ध है।