श्रीकाशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग : भगवान विष्णु ने यहीं तपस्या करके किया था महादेव को प्रसन्न

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Yatra Partner: मित्रों! आइये ज्योतिर्लिंगों की पवित्र यात्रा में हम आज आपको ले चलते हैं दुनिया का सबसे पुराने शहर और भारत की सांस्कृतिक राजधानी यानि वाराणसी में विराजमान ज्योतिर्लिंग के दर्शन कराने। जी हाँ! बात कर रहें है श्रीकाशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग की। चलते हैं वाराणसी के श्रीकाशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग और जानते हैं इनके महात्म्य के बारे में-

श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर कई हजारों वर्षों से वाराणसी में स्थित है। माना जाता है कि एक बार इस मंदिर के दर्शन करने और पवित्र गंगा में स्‍नान कर लेने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस मंदिर में दर्शन करने के लिए आदि शंकराचार्य, सन्त एकनाथ, रामकृष्ण परमहंस, स्‍वामी विवेकानंद, महर्षि दयानंद, गोस्‍वामी तुलसीदास सभी का आगमन हुआ हैं। यहीं पर सन्त एकनाथ जी ने वारकरी सम्प्रदाय का महान ग्रन्थ श्रीएकनाथी भागवत लिखकर पूरा किया और काशी नरेश तथा विद्वतजन द्वारा उस ग्रन्थ कि शोभायात्रा खूब धूम-धाम से निकाली गयी। महाशिवरात्रि की मध्य रात्रि में प्रमुख मंदिरों से भव्य शोभायात्रा ढोल नगाड़े इत्यादि के साथ बाबा विश्वनाथ जी के मंदिर तक जाती है।

जानें क्या है शिवलिंग

प्राचीन हिन्दू विचारधारा के अनुसार इस अनन्त ब्रह्माण्ड की वास्तविकता के सिद्धान्त में तीन मूलभूत अवस्थाएँ उत्पत्ति, अस्तित्व एवं विनाश हैं जो एक चक्र के भांति कार्य करते हैं। जिनके नाम है :- ब्रह्मा (सृजनकर्ता), विष्णु (पालनकर्ता) एवं शिव (संहारकर्ता) इन तीन देवतओं को त्रिदेव भी कहा जाता हैं । सृष्टि रूपी चक्र के अंतिम भाग में स्थित होने से शिव से नए चक्र का प्रारम्भ होता है जिस कारण इन्हें सर्वोच्च देव अर्थात् महादेव के रूप में भी जाना जाता है। शिव का प्रतीकात्मक रूप ‘लिंग’ ब्रह्माण्ड के तीनों अवस्थाओं की एकता को प्रदर्शित करता है।

लिंग तीन भागो में बंटा होता हैं। पहला भाग नीचे तीन परतों वाला एक चौकोरआधार होता है जो तीन पौराणिक लोंको को दर्शाता है। यह ब्रह्मा के उत्पत्ति का प्रतीक है। दूसरा भाग आठ दिशाओं के बीच में एक अष्टकोणीय गोलरूप में है, जो विष्णु के स्थान के अस्तित्व या दृढ़ता का प्रतीक है और तीसरा भाग एक बेलनाकार रूप में है जिसका ऊपरी भाग गोलाकार है जो शिव का स्थान है और यह सृष्टी के समापन का प्रतीक हैं। यह प्रतीक अखंडता की सर्व्वोच्च स्थिति को दर्शाता है। शिवलिंग का सम्पूर्ण रूप स्वयं ब्रह्माण्डीय मण्डल का प्रतीक है।

सदाशिव के रूप में शिव को लिंग रूप में दर्शाया गया है जो “सम्पूर्ण ज्ञान” को सूचित करता है। विध्वंसक रूद्र के रूप में उनकी पत्नी काली है। भयंकर विनाशक के रूप में उनकी पत्नी दुर्गा है। हिमालय में रहने वाले एक प्रसन्न देवता के रूप में उनकी पत्नी पार्वती हैं। जो कुछ भी चलायमान है उसके आधार की शांति का केंद्र बिंदु शिव है, इसलिए इन्हें इश्वर कहा जाता है। शिव को ब्रहमाण्ड कानर्तक ,ताण्डव नर्तककारी के रूप में भी चित्रित किया गया है, जो विश्व की लय को ब्रहमाण्ड में बनाए रखता है।

निर्माण

वर्तमान मंदिर का निर्माण महारानी अहिल्या बाई होल्कर द्वारा सन् 1780 में करवाया गया था। बाद में महाराजा रणजीत सिंह द्वारा सन् 1853 में 1000 k.g. शुद्ध सोने द्वारा बनवाया गया था।

धारणा

कहा जाता है कि प्रलयकाल में भी इसका लोप नहीं होता। उस समय भगवान शंकर इसे अपने त्रिशूल पर धारण कर लेते हैं और सृष्टि काल आने पर इसे नीचे उतार देते हैं। यही नहीं, आदि सृष्टि स्थली भी यही भूमि बतलायी जाती है। इसी स्थान पर भगवान विष्णु ने सृष्टि उत्पन्न करने की कामना से तपस्या करके महादेव को प्रसन्न किया था और फिर उनके शयन करने पर उनके नाभि-कमल से ब्रह्मा उत्पन्न हुए, जिन्होने सारे संसार की रचना की। अगस्त्य मुनि ने भी विश्वेश्वर की बड़ी आराधना की थी और इन्हीं की अर्चना से श्री वशिष्ठ जी तीनों लोकों में पुजित हुए तथा राजर्षि विश्वामित्र ब्रह्मर्षि कहलाये।

महिमा

सर्वतीर्थमयी एवं सर्वसंतापहारिणी मोक्षदायिनी काशी की महिमा ऐसी है कि यहां प्राणत्याग करने से ही मुक्ति मिल जाती है। भगवान भोलानाथ मरते हुए प्राणी के कान में तारक-मंत्र का उपदेश करते हैं, जिससे वह आवगमन से छुट जाता है, चाहे मृत-प्राणी कोई भी क्यों न हो। मतस्यपुराण का मत है कि जप, ध्यान और ज्ञान से रहित एवं दुखों परिपीड़ित जनों के लिये काशीपुरी ही एकमात्र गति है। विश्वेश्वर के आनंद-कानन में पांच मुख्य तीर्थ हैं:-

  • दशाश्वेमघ
  • लोलार्ककुण्ड
  • बिन्दुमाधव
  • केशव
  • मणिकर्णिका

और इनहीं से युक्त यह अविमुक्त क्षेत्र कहा जाता है।

कैसे पहुंचे काशी विश्वनाथ:

सड़क मार्ग द्वाराः काशी विश्‍वनाथ मंदिर पहुंचने के लिए आपको टैक्‍सी या ऑटोरिक्‍शा लेकर लहोरी टोला पहुंचना होगा। वहां पहुंचकर आपको काशी विश्‍वनाथ मंदिर का एंट्री गेट दिख जाएगा। अंदर जाकर आप एक पतली गली से गुजरेंगे जिसे विश्‍वनाथ गली कहते हैं। यहां आपको मिठाइयों और पूजा सामग्री की कई छोटी दुकानें मिल जाएंगी।

रेल मार्ग द्वाराः वाराणसी में कई रेलवे स्‍टेशन हैं। मंदिर से वाराणसी सिटी स्‍टेशन सिर्फ 2 किमी की दूरी पर है, वहीं वाराणसी जंक्‍शन की दूरी करीब 6 k.m. है। मुगल सराय रेलवे स्‍टेशन मंदिर से 17 k.m. की दूरी पर है। इसके अलावा मंडुआडीह स्‍टेशन 4 k.m. दूर है। लगभग ये सभी स्‍टेशन भारत के दूसरे शहरों से जुड़े हुए हैं। रेलवे स्‍टेशन के निकास द्वार से आपको साइकल रिक्‍शा और ऑटो रिक्‍शा आसानी से उपलब्‍ध हो जाएंगे।

हवाई मार्ग द्वाराः बाबतपुर स्थित लाल बहादुर शास्‍त्री एयरपोर्ट दिल्‍ली और मुंबई जैसे मेट्रो शहरों से कनेक्‍टेड है। दिल्‍ली एयरपोर्ट से इंटरकनेक्‍टेड फ्लाइट्स उपलब्‍ध हैं तो टूरिस्‍ट भारत के दूसरे शहरों या विदेशों से दिल्‍ली डोमेस्टिक एयरपोर्ट पहुंच सकते हैं और वहां से वाराणसी के लिए फ्लाइट ले सकते हैं। लाल बहादुर शास्‍त्री एयरपोर्ट से काशी विश्‍वनाथ मंदिर की दूरी 20 से 25 k.m. की है। टूरिस्‍ट टैक्‍सी या कैब लेकर एयरपोर्ट से मंदिर पहुंच सकते हैं।

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