Yatra Partner: मित्रों! आइये ज्योतिर्लिंगों की इस पवित्र यात्रा में हम आज आपको ले चलतें हैं समस्त लोकों के स्वामी, महादेव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से महाराष्ट्र में विराजमान एक ज्योतिर्लिंग के दर्शन कराने। यह ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र में सहाद्रि पर्वत की गोद में स्थित हैं। जी हाँ ! मित्रों हम बात कर रहें है श्री भीमाशंकर महादेव ज्योतिर्लिंग की। श्री भीमाशंकर महादेव ज्योतिर्लिंग की तो महिमा ही अनूठी है। तो चलिए चलते हैं महाराष्ट्र के श्री भीमाशंकर महादेव ज्योतिर्लिंग और जानतें हैं इन के महात्म्य के बारे में-
भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के पुणे से लगभग110 कि.मी.दूर भीमा नदी के तट पर सहाद्रि नामक पर्वत पर है। यहीं से भीमा नदी भी निकलती है। यह दक्षिण पश्चिम दिशा में बहती हुई रायचूर जिले में कृष्णा नदी से मिलती है। भीमाशंकर अवतार में भोलेनाथ ने बड़ी-बड़ी लीलाएं की हैं एवं लोकहित की कामना से साक्षात भगवान शंकर ज्योतिर्लिंग के रूप में अवतीर्ण हुए थे। उनका यह स्वरूप सभी प्राणियों के लिए कल्याण और सुख का आश्रय है।
भीमाशंकर महादेव काशीपुर में भगवान शिव का प्रसिद्ध मंदिर और तीर्थ स्थान है। यहां का शिवलिंग काफी मोटा है जिसके कारण इन्हें मोटेश्वर महादेव भी कहा जाता है। पुराणों में भी इसका वर्णन मिलता है।
पौराणिक कथा
भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग का वर्णन शिवपुराण में मिलता है। शिवपुराण में कहा गया है कि पुराने समय में कुंभकर्ण का पुत्र भीम नाम का एक राक्षस था। उसका जन्म ठीक उसके पिता की मृ्त्यु के बाद हुआ था। अपनी पिता की मृ्त्यु भगवान राम के हाथों होने की घटना की उसे जानकारी नहीं थी। बाद में अपनी माता से इस घटना की जानकारी हुई तो वह श्री भगवान राम का वध करने के लिए आतुर हो गया। अपने उद्देश्य को पूरा करने के लिए उसने अनेक वर्षों तक कठोर तपस्या की जिससे प्रसन्न होकर उसे ब्रह्मा जी ने विजयी होने का वरदान दिया। वरदान पाने के बाद राक्षस निरंकुश हो गया। उससे मनुष्यों के साथ साथ देवी-देवता भी भयभीत रहने लगे।
धीरे-धीरे सभी जगह उसके आंतक की चर्चा होने लगी। युद्ध में उसने देवताओं को भी परास्त करना प्रारंभ कर दिया। उसने सभी तरह के पूजा पाठ बंद करवा दिए। अत्यंत परेशान होने के बाद सभी देव भगवान शिव की शरण में गए। भगवान शिव ने सभी को आश्वासन दिलाया कि वे इस का उपाय निकालेंगे। भगवान शिव ने राक्षस तानाशाह भीम से युद्ध करने की ठानी। लड़ाई में भगवान शिव ने दुष्ट राक्षस को राख कर दिया और इस तरह अत्याचार की कहानी का अंत हुआ। भगवान शिव से सभी देवों ने आग्रह किया कि वे इसी स्थान पर शिवलिंग रूप में विराजित हो़। उनकी इस प्रार्थना को भगवान शिव ने स्वीकार किया और वे भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग के रूप में आज भी यहां विराजित हैं।
भीमाशंकर मंदिर की संरचना
भीमाशंकर मंदिर नागर शैली की वास्तुकला से बनी एक प्राचीन और नई संरचनाओं का समिश्रण है। इस मंदिर से प्राचीन विश्वकर्मा वास्तुशिल्पियों की कौशल श्रेष्ठता का पता चलता है। इस सुंदर मंदिर का शिखर नाना फड़नवीस द्वारा 18वीं सदी में बनाया गया था। कहा जाता है कि महान मराठा शासक शिवाजी ने इस मंदिर की पूजा के लिए कई तरह की सुविधाएं प्रदान की।
नाना फड़नवीस द्वारा निर्मित हेमादपंथि की संरचना में बनाया गया एक बड़ा घंटा भीमाशंकर की एक विशेषता है। भीमाशंकर लाल वन क्षेत्र और वन्यजीव अभयारण्य द्वारा संरक्षित है जहां पक्षियों, जानवरों, फूलों, पौधों की भरमार है। यह जगह श्रद्धालुओं के साथ-साथ ट्रैकर्स प्रेमियों के लिए भी उपयोगी है। यह मंदिर पुणे में बहुत ही प्रसिद्ध है। यहां दुनिया भर से लोग इस मंदिर को देखने और पूजा करने के लिए आते हैं। भीमाशंकर मंदिर के पास कमलजा मंदिर है। कमलजा पार्वती जी का अवतार हैं। इस मंदिर में भी श्रद्धालुओं की भीड़ लगती है।
भीमाशंकर मंदिर जाने का समय
यहां आने वाले श्रद्धालु कम से कम तीन दिन जरूर रुकते हैं। यहां श्रद्धालुओं के लिए रुकने के लिए हर तरह की व्यवस्था की गई है। भीमाशंकर से कुछ ही दूरी पर शिनोली और घोड़गांव है जहां आपको हर तरह की सुविधा मिलेगी। यदि आपको भीमाशंकर मंदिर की यात्रा करनी है तो अगस्त और फरवरी महीने की बीच जाएं। वैसे आप ग्रीष्म ऋतु को छोड़कर किसी भी समय यहां आ-जा सकते हैं। जिन्हें ट्रैकिंग पसंद है उन्हें मानसून के दौरान बचने की सलाह दी जाती है।
कैसे पहुंचे भीमाशंकर :
आप यहां सड़क और रेल मार्ग के जरिए भीमाशंकर आसानी से पहुंच सकते हैं। आप शिवाजीनगर, पुणे से राज्य परिवहन की बसें प्राप्त कर सकते हैं। पुणे से वहाँ पहुँचने में लगभग 4-5 घंटे लगते हैं। महाशिवरात्रि या प्रत्येक माह में आने वाली शिवरात्रि को यहां पहुंचने के लिए विशेष बसों का प्रबन्ध भी किया जाता है।