देवस्थानसमं ह्येतत् मत्प्रसादाद् भविष्यति।
अन्नदानं तप: पूजा तथा प्राणविसर्जनम्।
ये कुर्वन्ति नरास्तेषां शिवलोकनिवासनम्।।
अर्थात्: ओंकारेश्वर एक अलौकिक तीर्थ स्थल है। जो व्यक्ति इस देवस्थान में पहुँचकर अन्नदान, तप, पूजा आदि करता है अथवा अपना प्राणोत्सर्ग यानि मृत्यु को प्राप्त होता है, उसे भगवान शिव के लोक में स्थान प्राप्त होता है।
Yatra Partner: मित्रों! आइये ज्योतिर्लिंगों की इस पवित्र यात्रा में हम आज आपको ले चलतें हैं समस्त लोकों के स्वामी, महादेव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से मध्यप्रदेश में विराजमान एक ज्योतिर्लिंग के दर्शन कराने। वैसे तो यहां महादेव के 2 ज्योतिर्लिंग है, पहले हैं श्रीमहाकालेश्वर महादेव जिनके बारे में हम आपको अपने पिछले लेख में बता चुके हैं। दूसरे ज्योतिर्लिंग हैं श्रीओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के साथ ही श्रीममलेश्वर ज्येतिर्लिंग, इन दोनों शिवलिंगों को एक ही ज्योतिर्लिंग के रुप में पूजा जाता है। तो चलिए चलतें हैं मध्यप्रदेश और जानतें हैं यहां के अद्भुत महात्मय के बाते में-
ओंकारेश्वर-ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश के प्रसिद्ध शहर इंदौर के समीप स्थित है। जहां पर यह ज्योतिर्लिंग स्थित है,वहां नर्मदा नदी बहती है और पहाड़ी के चारों ओर नदी बहने से यहां ॐ का आकार बनता है। यह ज्योतिर्लिंग औंकार अर्थात ॐ का आकार लिए हुए है, इस कारण इसे ओंकारेश्वर नाम से जाना जाता है।
इतिहास
मान्धाता नामक पर्वत पर भगवान ओंकारेश्वर-महादेव विराजमान हैं। इतिहास प्रसिद्ध भगवान के महान् भक्त अम्बरीष और मुचुकुन्द के पिता सूर्यवंशी राजा मान्धाता ने इस स्थान पर कठोर तपस्या करके भगवान शंकर को प्रसन्न किया था। वे एक महान् तपस्वी और विशाल महायज्ञों के कर्त्ता थे। उस महान् पुरुष मान्धाता के नाम पर ही इस पर्वत का नाम मान्धाता पर्वत हो गया। प्राचीन कथाओं के अनुसार ओंकारेश्वर को तीर्थ नगरी ओंकार-मान्धाता के नाम से भी प्राचीन समय में जाना जाता था। यहाँ के ज़्यादातर मन्दिरों का निर्माण पेशवा राजाओं द्वारा ही कराया गया था। ऐसा बताया जाता है कि भगवान ओंकारेश्वर का मन्दिर भी उन्हीं पेशवाओं द्वारा ही बनवाया गया है।
ओंकारेश्वर का वास्तुशिल्प
यह लिंग किसी मनुष्य के द्वारा गढ़ा, तराशा या बनाया हुआ नहीं है, बल्कि यह प्राकृतिक शिवलिंग है। इसके चारों ओर हमेशा जल भरा रहता है। प्राय: किसी मन्दिर में लिंग की स्थापना गर्भ गृह के मध्य में की जाती है और उसके ठीक ऊपर शिखर होता है, किन्तु यह शिवलिंग मन्दिर के गुम्बद के नीचे नहीं है। इसकी एक विशेषता यह भी है कि मन्दिर के ऊपरी शिखर पर भगवान महाकालेश्वर की मूर्ति लगी है।
नर्मदा के तट पर विराजित हैं ओंकारेश्वर
ओंकारेश्वर धाम मध्य प्रदेश की मोक्ष दायिनी कही जाने वाली नर्मदा नदी के तट पर बसा हैं। नर्मदा नदी के दो धाराओं के बंटने से एक टापू का निर्माण हो गया है, इसे शिवपुरी भी कहा जाता है। नर्मदा की विभक्त धारा दक्षिण की ओर जाती है। दक्षिण की ओर बहने वाली धारा ही प्रधान मानी जाती है। नर्मदा के इस किनारे पर पक्के घाटों का निर्माण कराया गया है।
यहां विराजित ज्योतिर्लिंग के दर्शन हेतु नर्मदा पर बने पुल के माध्यम से उस पार जाना पड़ता हैं। नर्मदा नदी के बीच मन्धाता व शिवपुर नामक द्वीप पर ओंकारेश्वर पवित्र धाम बना हुआ हैं। बताया जाता हैं कि जब भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग यहां विराजमान हुआ था तब नर्मदा नदी यहां स्वतः ही प्रकट हुई थी। आस्था हैं कि भगवान शिव के पवित्र ज्योतिर्लिंग के दर्शन हेतु पहले नर्मदा में स्नान कर पवित्र डूबकी लगाना पड़ती हैं। जिससे भगवान शिव प्रसन्न होकर अपने भक्तों की कामना पूरी करते हैं।
धर्म के साथ कुप्रथा भी थी प्रचलित
इस मन्दिर में कभी एक भीषण परम्परा भी प्रचलित थी, जो अब समाप्त कर दी गई है। इस मान्धाता पर्वत पर एक खड़ी चढ़ाई वाली पहाड़ी है। इसके सम्बन्ध में एक प्रचलन था कि जो कोई मनुष्य इस पहाड़ी से कूदकर अपना प्राण नर्मदा में विसर्जित कर देता है, उसकी तत्काल मुक्ति हो जाती है। इस कुप्रथा के चलते बहुत सारे लोग सद्योमुक्ति (तत्काल मोक्ष) की कामना से उस पहाड़ी पर से नदी में कूदकर अपनी जान दे देते थे। इस प्रथा को ‘भृगुपतन’ नाम से जाना जाता था। सती प्रथा की तरह इस प्रचलन को भी अँग्रेजी सरकार ने प्रतिबन्धित कर दिया। यह प्राणनाशक अनुष्ठान सन् 1824 ई. में ही बन्द करा दिया।
दर्शन समय
क्रमांक | दर्शन समय | अनुमति | अवधि |
---|---|---|---|
प्रातः कालीन 1 | 05:00 AM – 06:00 AM | केवल स्थानीय निवासी | 1 घंटा |
प्रातः कालीन 2 | 06:00 AM – 08:00 AM | सभी दर्शनार्थी बुकिंग द्वारा | 2 घंटे |
प्रातः कालीन 3 | 08:00 AM – 10:00 AM | सभी दर्शनार्थी बुकिंग द्वारा | 2 घंटे |
प्रातः कालीन 4 | 10:00 AM – 12:00 PM | सभी दर्शनार्थी बुकिंग द्वारा | 2 घंटे |
मध्यान्ह आरती श्रृंगार | 12:00 PM – 01:00 PM | दर्शन बंद | 1 घंटा |
मध्यान्ह कालीन 1 | 01:00 PM – 03:00 PM | सभी दर्शनार्थी बुकिंग द्वारा | 2 घंटे |
मध्यान्ह कालीन 2 | 03:00 PM – 05:00 PM | सभी दर्शनार्थी बुकिंग द्वारा | 2 घंटे |
संध्या कालीन 1 | 05:00 PM – 07:00 PM | सभी दर्शनार्थी बुकिंग द्वारा | 2 घंटे |
संध्या कालीन 2 | 07:00 PM – 08:00 PM | सभी दर्शनार्थी बुकिंग द्वारा | 1 घंटा |
शयन श्रृंगार आरती | 08:00 PM – 09:00 PM | दर्शन बंद एवं पट बंद | — |
कैसे पहुंचे ओम्कारेश्वर
ओंकारेश्वर-तीर्थ नर्मदा नदी के किनारे विद्यमान है। उज्जैन से खण्डवा जाने वाले रेलमार्ग पर ‘मोरटक्का’ नामक रेलवे स्टेशन है, जहाँ से लगभग बारह किलोमीटर की दूरी पर ‘ओंकारेश्वर-तीर्थ’ है।