आर.पी. सिंह
हिमाचल प्रदेश मानो मुझे हर वक्त पुकारता रहता है। शिमला, कुल्लू, मनाली, धर्मशाला, मैक्लोडगंज, लाहौल-स्पीति आदि कई बार जा चुका हूं पर चम्बा जाने का सुअवसर कभी नहीं मिला। अबकी बार सप्ताहान्त की दो छुट्टियों के साथ ही दो दिन का अवकाश स्वीकृत कराया और उड़ चला कांगड़ा की ओर। कांगड़ा के गग्गल एयरपोर्ट से टैक्सी कर करीब साढ़े चार घण्टे में पहुंच गये खज्जियार। (Khajjiar: Mini Switzerland of Himachal Pradesh)
खज्जियार (Khajjiar) के अद्वितीय सौन्दर्य से प्रभावित होकर स्विट्जरलैण्ड के तत्कालीन राजदूत विली ब्लेजर ने 7 जुलाई 1992 को इसे “मिनी स्विट्जरलैण्ड” की संज्ञा दी थी। उन्होंने यहां पर एक साइन बोर्ड भी लगाया था जिसमें खज्जियार और स्विट्जरलैण्ड की राजधानी बर्न के बीच की दूरी लिखी हुई है। तश्तरी के आकार के सुरम्य पठार पर स्थित यह पर्यटन स्थल दुनिया भर के उन 160 स्थानों में से एक है जिन्हें “मिनी स्विट्ज़रलैण्ड” नामित किया गया है।
यहां प्राकृतिक सुन्दरता ने बांहें फैलाकर हमारा स्वागत किया। घने जंगल के बीच से गुजरती सर्पाकार सड़कें, देवदार और चीड़ के हरेभरे वृक्ष, घास के मैदान, हिमाचली शैली के सुन्दर भवन और शिवालिक के उस पार से झांकती हिमालय की बर्फ से ढकी चोटियां, सबकुछ मन मोहने वाला था। समुद्र तल से 1,920 मीटर की ऊंचाई पर स्थित इस हिल स्टेशन में आप पैराग्लाइडिंग, घुड़सवारी और ट्रैकिंग कर अपनी यात्रा को यादगार बना सकते हैं।
चम्बा जिले का यह कस्बा जिला मुख्यालय से करीब 23 किलोमीटर पड़ता है। यदि आपके पास समय हो तो खज्जियार के साथ ही चम्बा शहर की सैर को भी अपने कार्यक्रम में शामिल करें जो हिमाचल का एक प्रमुख हिल स्टेशन है। चम्बा से डलहौजी मात्र 58 किमी पड़ता है। छठी शताब्दी में पूरी चम्बा घाटी पर राजपूतों का शासन हुआ करता था जिसकी राजधानी खज्जियार (Khajjiar) थी। बाद के समय में यहां मुगलों, सिखों और अंग्रेजों का भी शासन रहा।
आप खज्जियार (Khajjiar) किसी भी मौसम में जायें, हर महीने में एक अलग और शानदार अनुभव होगा। गर्मियों में यहां का मौसम बिलकुल साफ होता है जबकि बारिश के मौसम में यहां की हरियाली और आसमान में मंडराते बादल मुदित कर देंगे। अगर आप सर्दी के मौसम में जाते हैं तो बर्फ की सफेद चादर से ढका खज्जियार आपका स्वागत करेगा।
प्रमुख दर्शनीय स्थल
खज्जियार झील :
घास के मैदानों के बीच में स्थित यह झील देवदार और चीड़ के विशाल दरख्तों से भी घिरी हुई है। भोर में देवदार और चीड़ के पेड़ो से छन कर आती हुई सूर्य की किरणें अद्वितीय वातावरण का एहसास कराती हैं। यहां घुड़सवारी, जॉर्बिंग, पैराग्लाइडिंग और ट्रैकिंग की भी सुविधा है। वॉलीबुड की गदर एक प्रेम कथा, वजूद, लुटेरे, हिमालय पुत्र आदि फिल्मों के कई दृश्य यहां फिल्माये गये हैं।
कैलाश व्यू पॉइन्ट :
तिब्बत में स्थित कैलास पर्वत को भगवान शिव का निवास स्थान माना जाता है। खज्जियार के इस पॉइन्ट से इस हिमाच्छादित दिव्य धाम के भव्य दर्शन होते हैं।
कलातोप खज्जियार वन्यजीव अभयारण्य :
देवदार के वृक्षों से भरा यह अभयारण्य अपनी जैव विविधता के लिए जाना जाता है। यहां काला भालू, हिमालयन ब्लैक मार्टन, जंगली बिल्ली, हिरण, भौंकने वाले गोरल, तेंदुए, बकरी जैसा लगने वाले हिरन, सियार आदि को देख सकते हैं। इसके अलावा यहां कई तरह के पक्षी भी दिखते हैं जिनमें यूरेशियन ज्यू, चेस्टनट बिल्ड थ्रश, तीतर, हिमालयन मोनाल, ब्लैकबर्ड, ग्रे-हेडेड कैनरी आदि शामिल हैं। यह अभयारण्य रावी नदी के किनारे करीब 31 वर्ग किलोमीटर में फैला है।
पांच पाण्डव वृक्ष :
यह अनोखा वृक्ष खज्जियार आने वाले पर्यटकों के लिए आकर्षण का केन्द्र रहता है। इस वृक्ष में किसी एक तने की जगह जड़ से छह अलग-अलग शाखाएं निकल कर विकसित हुई हैं। स्थानीय लोगों की मान्यता है कि इस वृक्ष के ये छह तने पांच पाण्डवों और उनकी धर्मपत्नी द्रौपदी का प्रतीक हैं। यह वृक्ष खज्जियार के मैदान में स्थित रेस्ट हाउस के निकट है।
नाइन होल गोल्फ कोर्स : खज्जियार घूमने के लिए गये लोगों को यहां के नाइन होल गोल्फ कोर्स जरूर जाना चाहिए। घास के मैदान में बने इस गोल्फ कोर्स का परिदृश्य अत्यन्त सुन्दर है जो स्विट्जरलैण्ड में होने का एहसास करवाता है।
खज्जी नाग मन्दिर :
खज्जियार झील से थोड़ी ही दूर स्थित इस नाग मन्दिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में चम्बा के तत्कालीन शासक पृथ्वी सिंह ने करवाया था। मन्दिर के भीतरी भाग में पाण्डवों और कौरवों के भित्ती चित्र उकेरे गये हैं जबकि गर्भगृह का निर्माण करने के लिए लकड़ी का उपयोग किया गया है। इस लकड़ी पर बहुत ही महीन नक्काशी का काम है। मन्दिर के गर्भगृह में नाग देवता का विग्रह है। मन्दिर परिसर में सर्पों के अलावा भगवान शिव और हिडिम्बा की भी मूर्तियां हैं। मुस्लिम आक्रान्ताओं ने इस मन्दिर को काफी नुकसान पहुंचाया और अपने नियन्त्रण में लेने के बाद अपने हिसाब से कुछ फेरबदल भी किया। यही कारण है कि इसकी वास्तुकला में मुस्लिम शैली का भी कुछ प्रभाव देखने को मिलता है।
भगवान शिव की प्रतिमा :
खज्जियार से करीब एक किमी दूर भगवान शिव की एक 85 फीट ऊंची प्रतिमा स्थापित है जिस पर तांबे की पॉलिश की गयी है। यह हिमाचल प्रदेश की सबसे ऊंची प्रतिमा है। ताम्र मण्डित यह प्रतिमा जहां सूर्य की किरणें पड़ने पर अनोखी छटा बिखेरती है, वहीं सर्दियों में “बर्फ की चादर” से ढक जाती है। इस मन्दिर में हर साल जून-जुलाई में एक समारोह का आयोजन किया जाता है।
स्वर्ण देवी मन्दिर : खज्जी झील के पास स्थित स्वर्ण देवी मन्दिर मन्दिर खज्जियार का प्रमुख दर्शनीय स्थल है। इसको यह नाम इसके स्वर्ण मण्डित गुम्बद की वजह से मिला है।
चर्च ऑफ स्कॉटलैण्ड :
औपनिवेशिक काल मेंडलहौजी, खज्जियार और चम्बा अंग्रेजों के पसन्दीदा स्थानों में शामिल थे। उन्होंने इन स्थानों पर कई बंगलों, आम रिहायशी भवनों, प्रशासनिक इमारतों और गिरजाघरों का निर्माण करवाया था। इन सभी पर ब्रिटिश वास्तुकला का प्रभाव है। खज्जियार से 22 किलोमीटर दूर स्थित चर्च ऑफ स्कॉटलैण्ड का निर्माण भी औपनिवेशिक काल में तत्कालीन राजा शाम सिंह द्वारा करवाया गया था। वर्षों तक चला इसकानिर्माण कार्य 1905 में पूरा हुआ। ऐसा कहा जाता है कि इसका निर्माण स्कॉटिश भिक्षु डॉ
एम’क्लायमॉन्ट की देखरेख में किया गया था।
हिमाचल प्रदेश राज्य हस्तकला केन्द्र : यहां हिमाचल प्रदेश के हस्तनिर्मित उत्पादों के साथ ही तिब्बत की पारम्परिक वस्तुएं भी उचित मूल्य पर मिल जाती हैं। यहां आप कालीन, वॉल-हैंगिंग, स्मृति चिन्ह, ऊनी कपड़े, बर्तन, फर्नीचर, गहने, धातु के बर्तन आदि खरीद सकते हैं। सूखे मेवों के अलावा घर में सामान्यतया काम में आनी वाली कई अन्य वस्तुएं भी खरीदी जा सकती हैं।
तिब्बती हस्तशिल्प केन्द्र :
स्थानीय हस्तशिल्प उत्पादों के साथ ही तिब्बत के पारम्परिक उत्पाद-कलाकृतियों को खरीदने के लिए यह हस्तशिल्प केन्द्र भी उपयुक्त जगह है। यहां के कालीन और वॉल-हैंगिंग पर्यटकों द्वारा बेहद पसन्द किये जाते हैं। तिब्बती शॉल और स्मृति चिन्हों को खरीदने के लिए यह खज्जियार का सबसे अच्छा बाजार माना जाता है। यहां आप तिब्बती और चाइनीज़ फास्ट फूड का भी आनन्द ले सकते हैं।
धौलाधर रेन्ज ट्रैक :
अगर आपको ट्रैकिंग पसन्द है और समय भी है तो खज्जियार से डलहौजी के रास्ते होते हुए धौलाधर रेन्ज में ट्रैकिंग के लिए जा सकते हैं। हालांकि धौलाधर रेन्ज के बर्फ से ढके पहाड़ खज्जियार से भी दिखायी देते हैं लेकिन इन पहाड़ों पर ट्रैकिंग करने का मजा कुछ अलग ही होता है।
कब जायें
यहां के घास के मैदान, घने जंगल, सुखद जलवायू और दूर से झांकते हिमालय के हिम-शिखर पूरे साल सैलानियों का स्वागत करते हैं। दिसम्बर से फरवरी के बीच यहां अक्सर होने वाली बर्फबारी को देखना एक अलग ही अनुभव है। इस समय यहां भीड़-भाड़ कम होती है और आप बर्फ से ढके बुग्यालों यानी घास के मैदानों पर चहलकदमी और खेलने का मजा ले सकते हैं। मार्च से जून तक का मौसम यहां जाने के लिए आदर्श है और आप सभी एडवेंचर्स का पूरा मजा ले सकते हैं। हालांकि इस समय कई बार बहुत ज्यादा पर्यटकों के पहुंचने पर होटल मिलने में दिक्कत हो सकती है। बरसात के मौसम में पानी से धुले पहाड़ों और हरेभरे पेड़-पौधों का सौन्दर्य निखर उठता है, हालांकि भारी बारिश या भूस्खलन होने पर कुछ परेशानी हो सकती है।
एक बात ध्यान रहे, खज्जियार में बारहों महीने मौसम सर्द रहता है, यानी किसी भी मौसम में गर्मी का एहसास नहीं होगा। यहां का तापमान गर्मी के महीनों में भी छह से 20 डिग्री के बीच रहता है। इसलिए अपने साथ कुछ गर्म कपडे अवश्य ले जायें।
ऐसे पहुंचें
वायु मार्ग : धर्मशाला के पास स्थित गग्गल (कांगड़ा) एयरपोर्ट यहां से लगभग 110 किलोमीटर दूर है। गग्गल से बस या टैक्सी से चम्बा के रास्ते खज्जियार पहुंच सकते हैं। अमृतसर का श्री गुरु रामदास जी इण्टरनेशनल एयरपोर्ट खज्जियार से करीब 221 किलोमीटर जबकि पठानकोट एयरपोर्ट लगभग 101 किमी पड़ता है।
रेल मार्ग : नैरौगेज का नूरपुर रेलवे स्टेशन खज्जियार से करीब 71 किमी पड़ता है। निकटतम बड़ा रेलवे स्टेशन पठानकोट यहां से करीब 96 किलोमीटर दूर है। पठानकोट के लिए देश के कई प्रमुख शहरों से ट्रेन मिलती हैं जहां से आप बस या टैक्सी कर खज्जियार पहुंच सकते हैं।
सड़क मार्ग : डलहौजी और चम्बा से खज्जियार तक बहुत अच्छा सड़क मार्ग है। इन शहरों से आप हिमाचल प्रदेश रोड ट्रान्सपोर्ट सर्विस की बस, टैक्सी या निजी वाहन से यहां पहुंच सकते हैं।