संजीव जिन्दल
पांच अप्रैल 2023 की हल्की गर्म दोपहर में मैंने अपने छोटे भाई धीरज से पूछा, “तुम्हें तीन-चार दिन के लिए बिजनेस टूर पर कहीं बाहर तो नहीं जाना है?” जवाब में नहीं सुनते ही मैंने तुरन्त अपने मुंशी अभिषेक द्विवेदी को फोन किया, “देखो जरा, दिल्ली से कसोल की किसी बस में सात तारीख की कोई सीट मिल रही है?” दिल्ली के मजनू का टीला से रात को नौ बजे कसोल जाने वाली सात अप्रैल की बस में अभिषेक ने मेरी सीट बुक करा दी। कसोल जाकर कहां रुकना है, कहां-कहां जाना है, मैंने यह सारा कार्यक्रम अनप्लानड रखा, वहां तक पहुंचने के लिए बस की बुकिंग ही करवाई। (Kheerganga : A supernatural-wonderful journey)
तय किया कि छह अप्रैल की रात को दिल्ली निकल जाऊंगा और सात तारीख का पूरा दिन मिलेगा जिससे दिल्ली में अपने कारोबार से सम्बन्धित कुछ काम कर लूंगा। मैं कहीं भी यात्रा पर जाता हूं तो बहुत ही कम सामान लेकर चलता हूं, इसलिए बैग को पैक करने में बमुश्किल 10 मिनट ही लगते हैं। अब मैंने सोचा कि दिल्ली तो सुबह ही पहुंच जाऊंगा और सुबह का समय मेरे पास खाली होगा तो क्या किया जाये क्योंकि जिस फैक्ट्री में जाना है वह 11:00 बजे खुलती है। ऐतिहासिक इमारतों में मॉडल फोटोग्राफी मेरा पैशन है। इस पर सोचा कि चलो एक-दो एजेंसियों को फोन करके देखते हैं। यदि सुबह-सुबह के लिए कोई मॉडल मिल जाये तो लोधी गार्डन में फोटोग्राफी कर लेंगे। प्रयास सफल हुआ और सिमरन सुबह सात बजे लोधी गार्डन आने के लिए तैयार हो गई।
आजकल बरेली से दिल्ली के लिए काफी शेयर टैक्सी चलती हैं। मैंने बरेली से रात साढ़े नौ बजे केवल 650 रुपये में दिल्ली के लिए आर्टिगा पकड़ ली जिसने मुझे रात डेढ़ बजे सराय काले खां छोड़ दिया। वहां से थ्री व्हीलर पकड़ कर मैं पहुंच गया गुरुद्वारा श्री बंगला साहिब। 200 रुपये की पर्ची कटा कर मुझे एक हॉल में एक बेड मिल गया। साढ़े पांच बजे तक आराम से सोया। ठीक सात बजे मैं लोधी गार्डन में था। करीब सवा सात बजे सिमरन डेशिंग ड्रेस में पहुंची और फिर शुरू हुआ फोटोग्राफी सत्र। 10:30 बजे तक हम दोनों फोटोग्राफी करते रहे, फिर बाहर आकर जूस पिया और अपनी-अपनी राह पकड़ी।
मेट्रो पकड़ कर मैं 12:30 बजे द्वारका स्थित फैक्ट्री पहुंचा। वहीं लंच किया और 2023-24 की व्यापारिक रणनीति बनाई। फिर द्वारका से मेट्रो पकड़ कर साढ़े छह बजे मजनू का टीला पहुंच गया और पंकज गंगवार के साथ दिल्ली की अपनी सबसे पसन्दीदा जगह तिब्बती मार्केट में घूमा। वहीं कैफे में कुछ खाया-पिया। बस एक घंटा लेट थी इसलिए 10 बजे कसोल की यात्रा शुरू हुई।
आठ अप्रैल को सवेरा होते ही बस के बड़े-से शीशे से हिमाचल प्रदेश के खूबसूरत नजारे दिखने शुरू हो गये और मैंने चलती बस में से ही फोटो खींचकर सोशल मीडिय़ा पर डालने शुरू कर दिए। फोटो खींचते-खींचते ही 10:30 बजे कसोल पहुंच गया। बस से उतरते ही सामने बर्फ से ढका हिमालय देखकर मन प्रसन्न हो गया और थकान उड़न-छू। मैंने होटल की खोज शुरू की। मून डांस कैफे के पीछे ही 700 रुपये में होटल मिल गया। होटल का मालिक और दो-तीन लोग बाहर लॉन में ही बैठे थे। उनके साथ बातचीत करते हुए तय किया कि आज कहां-कहां घूमा जाये और उनसे अगले दिन खीरगंगा (Kheerganga) की बुकिंग करवाने के लिए कहा। नहा-धोकर मैं 12:00 बजे चलाल गांव की ट्रैकिंग के लिए निकल पड़ा। पार्वती नदी के साथ-साथ आगे बढ़ता यह ट्रैक सच में अलौकिक है। आप कितनी भी फोटोग्राफी कर लें, मन नहीं भरेगा। दो बजे चलाल से लौटा और कसोल
चौराहे से बस पकड़ कर गुरुद्वारा मणिकर्ण साहिब (Manikarna Sahib) पहुंच गया। गरम पानी के स्रोत में स्नान करने के बाद लंगर छका और थोड़ी देर लंगर में सेवा की। यहां का माहौल और वातावरण फोटोग्राफी के लिए बहुत ही सुन्दर था। खूब मजा आया। खीरगंगा की ट्रैकिंग करके लौटे कई बच्चों से मुलाकात हुई। सभी ने कहा कि बहुत मुश्किल ट्रैक है। अब मेरा दिल धक-धक करने लगा कि मैं ट्रैकिंग कर भी पाऊंगा या नहीं।
मणिकर्ण से मैं सायं पांच बजे पिकअप में पीछे खड़ा होकर वापस कसोल आ गया। चार किलोमीटर का यह रास्ता तय करने में कितना मजा आया, मैं इसका शब्दों में वर्णन नहीं कर सकता। फिर पार्वती नदी (Parvati River) के किनारे-किनारे अंधेरा होने तक घूमता और फोटोग्राफी करता रहा। प्रियंका चोपड़ा हो, दिशा पटानी हो या कोई और हीरोइन, कोई भी इतने पोज नहीं दे सकती जितने पार्वती नदी देती है। बस शर्त एक ही है कि इसके किनारे-किनारे पैदल-पैदल चलते जाओ, फिर चाहे मोबाइल फोन उल्टा करके या सीधा करके जैसे भी क्लिक करो शानदार फोटो ही आएगा।
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रात को साढ़े नौ बजे होटल पहुंचा तो उसके मालिक ने बताया कि खीरगंगा के लिए सुबह की बुकिंग हो गयी है। इतना सुनते ही मेरा दिल एक बार फिर तेजी से धड़कने लगा। सोचने लगा कि मैं इस कठिन ट्रैक को नाप भी पाऊंगा या नहीं। इसी उधेड़बुन में कब नींद आ गयी, मुझे नहीं पता। ट्रैकिंग शुरू करने से पहले अच्छी नींद बहुत जरूरी है। सुबह साढ़े पांच बजे उठा, बैग पैक करके रिसेप्शन पर रखा और बरसैणी गांव के लिए सात बजे की बस पकड़ ली।
खीरगंगा (Kheerganga) के लिए ट्रैकिंग बरसैणी (Barsaini) से शुरू होती है। करीब सवा आठ बजे मैं बरसैणी के उस कैफे पर पहुंच गया जहां मेरा पर्सनल गाइड दिल कुमार मेरा इन्तजार कर रहा था। गाइड और उसके साथियों ने मुझे ऊपर से नीचे तक देखा और मैंने महसूस किया कि वे भी मुझे देखकर यही सोच रहे हैं कि यह मोटा और बुड्ढा आदमी खीरगंगा जैसे कठिन ट्रैक पर कदम बढ़ा भी पायेगा या नहीं। मेरे चेहरे की रंगत भी उड़ी हुई थी क्योंकि धार्मिक स्थानों के ट्रैक की तरह यहां कोई घोड़ा या बग्घी नहीं मिलनी थी, सब कुछ अपने ऊपर ही था।
ब्रेड-आमलेट का नाश्ता करने के बाद सवा नौ बजे दिल कुमार के साथ खीरगंगा के लिए ट्रैकिंग शुरू कर दी। कल्गा डैम तक एक किलोमीटर का रास्ता समतल था, फिर एकदम खड़ी चढ़ाई शुरू हो गयी। हार्ट बीट इतनी तेज हो गयी कि “आरम्भ है प्रचण्ड है” गाने की तरह मुझे साफ-साफ सुनाई दे रही थी। शुरुआत के ये 15-20 मिनट ही मुश्किल भरे होते हैं जब आपकी हार्ट बीट को सेट होना होता है। जैसे ही हार्ट बीट सेट हुई, मैं धीरे-धीरे मस्ती में चलने लगा। दिल कुमार मेरी चाल देखकर हैरान रह गया। 13 किलोमीटर के ट्रैक पर मुझे 27 या 28 साल से ऊपर का कोई भी इन्सान नहीं मिला, मैं ही अकेला बुड्ढा था। किशोरों और युवाओं के साथ खूब मस्ती और बातचीत करते तथा रास्ते के मनोरम दृश्यों की फोटोग्राफी करते हुए बिना कहीं रुके हम लोग दोपहर दो बजे खीरगंगा में अपने कैम्प रॉक व्यू पहुंच गये। रॉक व्यू कैफे का स्टाफ भी हैरान था कि मैंने लगभग साढ़े चार घण्टे में इतना मुश्किल ट्रैक कैसे नाप दिया। एक घण्टा आराम करने के बाद हम लोग ऊपर गरम पानी के स्रोत पर नहाने के लिए चल दिए। चारों तरफ बर्फ से लदे पहाड़ और तेज चलती ठण्डी हवा के बीच कुदरती गरम पानी में नहाते ही सारी थकावट उतर गयी।
अंधेरा होने तक मैं खीरगंगा की पहाड़ियों पर फोटोग्राफी करता रहा। लौटकर कैम्प में पहुंचे तो और भी बच्चे आ चुके थे। फिर कैम्प फायर और गाना-बजाना शुरू हुआ। रात को 10 बजे डिनर करके मैं तो सो गया पर बच्चे बाहर मस्ती करते रहे। सुबह करीब साढ़े पांच बजे दिन निकलते ही मैं अपने टेण्ट से बाहर आ गया और कुदरत के खूबसूरत नजारों का आनन्द लेने लगा। बाहर और कोई नहीं था क्योंकि रातभर गाना-बजाना करने के बाद बच्चे अब गहरी नींद में थे। नाश्ता करके मैंने दिल कुमार के साथ सुबह सात बजे उतराई चालू कर दी। हम लोग जंगल के रास्ते से आये थे पर उतराई नाथान तोश गांव की तरफ से शुरू की। खीरगंगा ट्रैक की एक और खासियत है कि इसकी उतराई चढ़ाई से भी मुश्किल है। पूरे ट्रैक पर फैली हुई देवदार की जड़ें, बड़े-बड़े पत्थर और काफी ऊंचे स्टेप, मतलब कि आप एक सेकण्ड भी नजरें ऊपर उठा कर नहीं चल सकते और जरा-सी लापरवाही होते ही गिर सकते हैं और चोट लग सकती है। एक-एक कदम सोच-समझकर रखते हुए, जहां पर सम्भव था मनोरम दृश्यों का आनन्द लेते हुए और रास्ते में मिलने वाले ग्रामीणों से बातचीत करते हुए हम लोग 12:30 बजे बरसैणी पहुंच गये। नम आंखों से मैंने दिल कुमार से विदा ली और एक बजे की बस पकड़ कर ढाई बजे कसोल पहुंच गया।
सीधा अपने होटल पहुंचा और रिसेप्शन पर कहा कि थकावट के कारण मेरी हवा खराब है, प्लीज दो घण्टे के लिए कमरा दे दो। दो घण्टे आराम और गरम पानी से स्नान करने के बाद मैं एक बार फिर पार्वती घाटी में पहुंच गया। थकावट के बावजूद इधर-उधर डोलने में बहुत मजा आ रहा था। मशहूर मामू कैफे में इजराइली डिनर करने के बाद मैंने रात साढ़े नौ बजे दिल्ली के लिए बस पकड़ ली। थकान के कारण बुरा हाल था। रास्ते में चाय-पानी के लिए बस कहां-कहां रुकी, मुझे नहीं मालूम। 11 अप्रैल को सुबह 10:30 बजे बस ने मुझे दिल्ली के कश्मीरी गेट पर उतार दिया। यहां से मेट्रो पकड़ी और कारोबार से सम्बन्धित काम के लिए बहादुरगढ़ की एक फैक्ट्री में पहुंच गया। वहीं पर फ्रेश होकर लंच किया। सायं पौने पांच बजे बहादुरगढ़ से मेट्रो पकड़ कर आनन्द विहार पहुंचा और छह बजे बरेली के लिए बस पकड़ ली। मिनी बाइपास से ऑटो पकड़ कर रात 11:45 बजे मैं सकुशल अपने घर पहुंच गया। एक अद्भुत, अलौकिक, अकल्पनीय यात्रा का सुखद अन्त!
बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ
जहां भी और जब भी मौका मिलता है “बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ” अभियान को चलाए रहता हूं, बड़ी-बड़ी रैलियां करके नहीं, मैन टू मैन डिस्कस करके। खीरगंगा ट्रैक की 13 किलोमीटर की चढ़ाई शुरू करने से पहले मैं बरसैणी बस अड्डे के पास एक कैफे में नाश्ता कर रहा था। उसी दौरान मेरे सामने से एक महिला और उसकी बेटी गुजरी। दोनों ने काफी ज्यादा सामान उठा रखा था। बिटिया ने तो पांच किलो का एलपीजी गैस सिलेण्डर भी उठाया हुआ था। इसके कुछ ही देर बाद मैंने अपने पर्सनल गाइड दिल कुमार के साथ चढ़ाई शुरू की। ठीक तीन किलोमीटर चलने के बाद खाने-पीने की पहली दुकान पड़ी। बरसैणी में दिखी वही बिटिया झाड़ू लगा रही थी जबकि उसकी मां मैगी के लिए सब्जी काट रही थी। बातचीत करने पर पता चला राधिका नवीं कक्षा में पढ़ती है। छुट्टियां चल रही हैं इसलिए मां का हाथ बंटाने के लिए उनके साथ यहां आ जाती है। राधिका से वायदा लिया कि वह पढ़ाई छोड़ेगी नहीं और उसकी मम्मी से वायदा लिया कि वह उसकी पढ़ाई जरूर करवाएंगी। फिर उनसे दो चॉकलेट खरीद कर हम आगे बढ़े गये।
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मैं स्वभाव से ऐसा ही हूं। जब भी और जहां भी मौका मिलता है, लोगों को अच्छे काम के लिए प्रेरित करने की कोशिश करता हूं। चाहता हूं कि वे सबके सब मेरी बात को फॉलो करें लेकिन मानव स्वभाव के कारण ऐसा हो पाना सम्भव नहीं है। 10 में से दो लोगों ने भी मेरी बात को फॉलो कर लिया तो यह एक बड़ी उपलब्धि है। खीरगंगा की यात्रा, “बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ” अभियान की भी यात्रा।
मिल गया सवाल का जवाब
मैं अक्सर सोचता था कि विदेशी पहाड़ों पर या कहीं और अकेले ही क्यों घूमते हैं। पहले ट्रायण्ड पर्वत (Triund mountain) और म्यूलिंग वैली (Muling valley) और अब कसोल (Kasol) व खीरगंगा अकेले जाकर मुझे इस सवाल का जवाब मिल गया। जब आप अकेले घूमते हैं तो आपकी दोस्त कुदरत होती है, वहां के लोग होते हैं, पशु होते हैं, पक्षी होते हैं, नदियां और पहाड़ होते हैं। और जब आप यार-दोस्तों के ग्रुप में या पत्नी-बच्चों के साथ में घूमते हैं तो आपका ज्यादातर ध्यान आपसी बातचीत और एक-दूसरे का ख्याल रखने में ही होता है।
मेरा सुझाव है कि जब भी आप कसोल और खीरगंगा जायें तो अकेले ही जायें। दिनभर पैदल-पैदल घूमते रहें और अपना मोबाइल फोन हर वक्त कैमरा मोड पर रखें, पता नहीं कब शानदार फोटो मिल जाये।
फोटोग्राफी का स्वर्ग
बढ़िया फोटोग्राफर बनने के लिए किसी डिग्री कोर्स या प्रशिक्षण की जरूरत नहीं है, बस आपको कसोल जाना है, जिधर को भी मन चाहे उधर ही अपना मोबाइल फोन करें और क्लिक कर दें, फोटो बढ़िया ही आएगा क्योंकि कसोल है ही ऐसा। पार्वती नदी के किनारे-किनारे बने हुए कैफे में जाकर भी आप बिना कुछ खाए-पिए ही फोटोग्राफी कर सकते हैं। मैंने देखा कि कसोल में फोटोग्राफी के लिए कोई मना नहीं करता है।
कसोल एक ऐसा स्वर्ग जहां जाकर मेरे जैसा सुतिया भी बढ़िया फोटोग्राफर बन जाता है।
“लोहे के चने चबाना” जैसा ट्रैक
आपके लिए बेहतरीन से बेहतरीन फोटो क्लिक करने और वीडियो बनाने के लिए क्या-क्या पापड़ बेलने पड़े, मुझे ही मालूम है। आपने अक्सर अखबारों में पढ़ा होगा कि खीरगंगा जाकर कुछ लोग गुम हो जाते हैं और उनका कुछ अता-पता नहीं चलता। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि कई लोग मलाणा क्रीम का नशा करके खीरगंगा ट्रैक की चढ़ाई करते हैं। यह ट्रैक कई जगह सच में बहुत ही खतरनाक है और नशा किए हुए लोग खाई में गिर जाते हैं। इसलिए आप जब कभी भी खीरगंगा ट्रैक पर जायें तो नशा बिल्कुल न करें, केवल और केवल एडवेंचर और प्रकृति का नशा करें।
जो लोग पैदल-पैदल नहीं चल सकते, वे मेरे द्वारा खींची गयी तस्वीरें देखकर कसोल और खीरगंगा ना जायें। कसोल का मजा लेना है तो मेरी तरह चार दिन में लगभग 90 हजार कदम पैदल चलना पड़ेगा। यहां कारें नहीं जातीं, घोड़े नहीं जाते, पालकी नहीं जाती, आपको अपने पैरो का ही इस्तेमाल करना होगा। हां, अगर किसी बढ़िया कैफे में बैठकर केवल मलाणा क्रीम के सुट्टे ही मारने हैं तो आप कसोल जा सकते हैं। कसोल कुदरत के दीवानों और सुट्टेबाजों दोनों के लिए स्वर्ग है।