कुम्भलगढ़ : भारत की सबसे लम्बी दीवार

कुम्भलगढ़ भारत की सबसे लम्बी दीवार

गजेन्द्र त्रिपाठी@Yatrapartner

दीवारें तो आपने बहुत-सी देखी होंगी, खुद आपके घर की छत भी तो दीवारों और खंभों पर टिकी है। कोई दीवार 9 इंच (22.86 सेंटीमीटर) मोटी होती है तो कोई 15 इंच (38.1 सेंटीमीटर)। हालांकि कुछ पुराने महल-किलों में एक से दो मीटर मोटी दीवारों भी हैं। इन्हें देखकर लोग प्रशंसा किए बिना नहीं रहते। लेकिन, यदि हम आपको यह बताएं कि भारत में एक ऐसी दीवार भी है जिसपर कई स्थानों पर एक साथ 8 घोड़े दौड़ सकते हैं तो शायद आप जल्दी विश्वास न करें। चलिये हम आपको ले चलते हैं राजस्थान के राजसमन्द जिले में अरावली की पहाड़ियों पर बने कुम्भलगढ़ किले पर जिसकी सुरक्षा के लिए यह शानदार और मजबूत दीवार बनाई गई थी। इस किले और दीवार को बनाने में 15 साल का समय लगा था। (Kumbhalgarh: India’s longest wall)

कुम्भलगढ़ दुर्ग का निर्माण महाराणा कुम्भा ने 1459 ईस्वी में करवाया था। हालांकि उन्होंने इसका नाम रखा- अजयगढ़ लेकिन यह मशहूर हुआ उन्हीं के नाम पर कुम्भलगढ़ दुर्ग के रूप में। समुद्र की सतह से 1,914 मीटर की ऊंचाई पर स्थित अजयगढ़ दुर्ग को अजेय बनाने के लिए 36 किलोमीटर लम्बी दीवार का निर्माण करवाया गया। इसकी चौड़ाई अलग-अलग स्थानों पर 15 से 25 फीट तक है। दुर्ग को अभेद्य सुरक्षा देने वाली इस दीवार से 13 पहाड़ियां घिरी हुई हैं। इस दीवार पर खड़े होकर अरावली पर्वत श्रृंखला पर 10 किलोमीटर दूर तक नजर रखी जा सकती है।

कुम्भलगढ़ (Kumbhalgarh) यानी अजयगढ़ की यह दीवार उसके नाम के अनुरूप ही अजेय रही। मुगल बादशाह अकबर ने मेवाड़ साम्राज्य को अभेद्य सुरक्षा देने वाली इस दीवार को 13 बार भेदने का प्रयास किया। इतिहास में सिर्फ एक बार इस किले को हार का सामना करना पड़ा था जब मुगलों की सारी सेना ने मिलकर इस पर हमला किया और पीने के पानी की कमी की वजह से राजपूत सेना को आत्मसमर्पण करना पड़ा। अंग्रेज भी इस किले को नहीं भेद सके। इसकी दीवारों पर तोप के गोलों के निशान इसके अभेद्य होने की गवाई देते हैं।

कुम्भलगढ़ दुर्ग

कुम्भलगढ़ मेवाड़ साम्राज्य की किलेबंदी का हिस्सा था। यह चित्तौड़गढ़ के बाद राजस्थान का दूसरा सबसे बड़ा किला है। यहीं महाराणा प्रताप का जन्म हुआ था। इस किले का संरक्षण भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) करता है। यह यूनेस्को की विरासत स्थल सूची में भी शामिल है। यह दुर्ग राजसमन्द जिले में उदयपुर से करीब 60 किलोमीटर दूर स्थित है। इसका निर्माण कार्य पूरा होने पर महाराणा कुम्भा ने सिक्के ढलवाये थे जिन पर दुर्ग और उसका नाम अंकित था।

वास्तुशास्त्र के नियमानुसार बने इस दुर्ग में प्राचीर, प्रवेश द्वार, जलाशय, बाहर जाने के लिए संकटकालीन द्वार, महल, मन्दिर, यज्ञ वेदी, स्तम्भ, छत्रियां आवासीय इमारतें आदि बने हैं। दुर्ग में ऊंचे स्थानों पर महल, मन्दिर और आवासीय इमारतें बनायी गईं और समतल भूमि का उपयोग खेतीबाड़ी के लिए किया गया। ढलान वाले भागों का इस्तेमाल जलाशयों के लिए किया गया ताकि बरसाती पानी को संरक्षित किया जा सके। यह गढ़ सात विशाल द्वारों और सुद्रढ़ प्राचीरों से सुरक्षित है। कुम्भलगढ़ के अंदर एक और किला है जिसे कटारगढ़ के नाम से जाना जाता है। दुर्ग के अंदर 360 से ज्यादा मन्दिर हैं जिनमें से 300 प्राचीन जैन मन्दिर और बाकी हिन्दू मन्दिर हैं। 19 वीं शताब्दी में महाराणा फतेह सिंह ने इस किले में कुछ बदलाव किये।

कुम्भलगढ़ (Kumbhalgarh) का किला चित्तौड़गढ़ और जयपुर के किलों की तरह आलीशान या खूबसूरत नहीं है। इसका अधिकतर हिस्सा वीरान और खंडहर जैसा है पर इसकी महान दीवार पर्यटकों को इसकी तरफ खींच लाती है।

बादल महल

यह दोमंजिला महल कुम्भलगढ़ दुर्ग में सबसे ऊंचे स्थान पर बना है। महल के पूरे भवन को दो अलग-अलग हिस्सों में विभाजित किया गया है जिन्हें मर्दाना महल और जनाना महल कहा जाता है। इसके ज्यादातर कमरे चटख रगों से रंगे गए हैं जिनकी दीवारों पर जगह-जगह भित्ती चित्र बने हुए हैं। इस महल को “पैलेस ऑफ़ क्लाउड्स” भी कहा जाता है।

नीलकंठ महादेव मंदिर

यूं तो कुम्भलगढ़ दुर्ग और आसपास सैकड़ों मन्दिर हैं पर इनमें सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है नीलकंठ महादेव मन्दिर। परम्परागत राजस्थानी शैली में बना यह मन्दिर हालांकि बहुत बड़ा नहीं है पर अपने स्थाप्त्य के कारण बेजोड़ है। अंधेरे में कुछ कोणों से देखने पर यह सफेद रंग का नजर आता है। भगवान शिव को समर्पित इस मन्दिर के गर्भगृह में 6 फुट ऊंचा शिवलिंग है।

राजसमन्द झील

यह एक मानवनिर्मित यानी कृत्रिम झील है। इसका निर्माण महाराणा राज सिंह ने 1662 ईस्वी में गोमती, केलवा और ताली नदियों पर बांध बनवा कर कराया था। 196 वर्ग मील (510 किमी) में फैली इस विशाल झील को राजप्रशस्ति भी कहा जाता है। इसकी अधिकतम गहराई 55 फिट है। झील के किनारे की सीढ़ियों को हर तरफ से गिनने पर योग नौ ही होता है। इस कारण इसे नौचौकी भी कहा जाता है। यहां काले संगमरमर की 25 पट्टिकाओं पर मेवाड़ का पूरा इतिहास संस्कृत में अंकित है।

मोती मगरी

मोती मगरी कुम्भलगढ़ दुर्ग के पास के प्रमुख पर्यटन स्थलों में शामिल है। यह फतेह सागर झील के पास एक पहाड़ी पर स्थित है जिसका निर्माण महाराणा प्रताप और उनके प्रिय घोड़े चेतक की स्मृति में करवाया गया है। यहां से अरावली पहाड़ियों का अद्भुत प्राकृतिक सौन्दर्य मंत्रमुग्ध कर देता है।

बागोर की हवेली

पिछोला झील के पास स्थित बागोर की हवेली कुम्भलगढ़ दुर्ग के पास स्थित सबसे खास पर्यटन स्थलों में से एक है। 100 से अधिक कमरों वाली इस विशाल हवेली का निर्माण 18 वीं शताब्दी में मेवाड़ के शाही दरबार में मुख्यमंत्री अमीर चंद बड़वा द्वारा कराया गया था। वर्ष 1878 में यह हवेली बागोर के महाराणा शक्ति सिंह का निवास स्थान बन गई जिसकी वजह से इसका नाम बागोर की हवेली पड़ा। इस हवेली को संग्रहालय में परिवर्तित कर दिया गया है। इसमें राजपूतों द्वारा इस्तेमाल किये जाने वाले कई तरह के सामान जैसे आभूषण, बक्से, हाथ के पंखे, तांबे के बर्तन, फर्नीचर आदि को देखा जा सकता है।

कुम्भलगढ़ वन्यजीव अभयारण्य

राजस्थान के राजसमन्द, पाली और उदयपुर जिलों में अरावली की पहाड़ियों पर फैले इस अभयारण्य की स्थापना वर्ष 1971 में की गई थी। 610.528 वर्ग किलोमीटर में फैले इस अभयारण्य में जीव-जन्तुओं का एक विशाल परिवार बसता है। यहां भेड़िया, जंगली बिल्ली, तेंदुआ, भालू, चौसिंघा (चार सिंघों वाला), नीलगाय, चिंकारा, खरगोश आदि जानवर स्वच्छंद विचरण करते हैं। यहां पर विभिन्न प्रकार के पक्षियों को भी देखा जा सकता है जिनमें मोर, बतख, कबूतर, तोता, बुलबुल, सफेद किंगफिशर समेत करीब 200 तरह के स्थानीय और प्रवासी पक्षी शामिल हैं। इस अभयारण्य के अंदर 22 गांव भी हैं।

कुम्भलगढ़ महोत्सव

राजस्थान अपने तीज-त्योहारों और उत्सवों के लिए प्रसिद्ध है। कुम्भलगढ़ किले में हर साल 1 से 3 दिसंबर तक तीन दिवसीय वार्षिक कुम्भलगढ़ महोत्सव मनाया जाता है। यहां राजस्थान के अलग-अलग पहलुओं को दिखाया जाता है। इसमें मुख्य रूप से कला और संस्कृति, लाइट और साउंड शो, प्रदर्शनियां आदि शामिल हैं। इस दौरान कुम्भलगढ़ किले को खूबसूरती से सजाया जाता है।

घूमने का सही समय

कुम्भलगढ़ घूमने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च के बीच में है। मई और जून में कई बार यहां का तापमान 32 से 45 डिग्री रहता है। इसलिए गर्मियों में यहां आने का कार्यक्रम न बनाना ही बेहतर है। भले ही राजसमन्द जिला राजस्थान में है पर मानसून काल में यहां बहुत ज्यादा बारिश होती है। इसलिए यहां आने का कार्यक्रम इसी के अनुरूप बनाएं।

अरावली की घुमावदार सड़को से गुजरते हुए कुम्भलगढ़ दुर्ग पहुंचते हैं। घने जंगलों के बीच से गुजरने वाला यह रास्ता अरैत पोल में खुलता है। इस मार्ग पर वाच टावर, हुल्ला पोल, हनुमान पोल, राम पोल, भैरव पोल, पघारा पोल, तोपखाना पोल और निम्बू पोल पड़ते हैं।

कुम्भलगढ़ दुर्ग के अन्दर जाने का समय

यह विशाल दुर्ग सप्ताह में सातों दिन पर्यटकों के लिए  खुआ रहता है। प्रातः 9 बजे से सायंकाल  6:00 बजे तक यहां घूमा जा सकता है। इस किले को घूमने में 5 से 6 घंटे लग सकते हैं। इसमें प्रवेश करने के लिए शुल्क चुकाना होता है।

ऐसे पहुंचें कुम्भलगढ़

वायु मार्ग : उदयपुर का महाराणा प्रताप एयरपोर्ट कुम्भलगढ़ दुर्ग का निकटतम हवाई अड्डा है जो यहां से करीब 84 किलोमीटर दूर है। नई दिल्ली, जयपुर और जोधपुर से उदयपुर के लिए नियमित विमान सेवाएं उपलब्ध हैं।

रेल मार्ग : कुम्भलगढ़ा में अपना कोई रेलवे स्टेशन नहीं है। निकटतम रेलवे स्टेशन फालना है जहां से कुम्भलगढ़ की दूरी 84 किलोमीटर है। फालना देश के लगभग सभी बड़े शहरों से रेल मार्ग से जुड़ा हुआ है।

सड़क मार्ग : राजसमन्द से कुंभलगढ़ की दूरी 48 किमी, नाथद्वार से 51 किमी, सदरी से 60 किमी, उदयपुर से 105 किमी, भीलवाड़ा से 157 किमी, जोधपुर से 207 किमी, अजमेर से 213 किमी और जयपुर से 345 किमी है। राजस्थान परिवहन निगम की बसों से और कैब-टैक्सी बुक करके यहां पहुंचा जा सकता है।

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