मोढेरा सूर्य मन्दिर : सोलंकी राजवंश की विरासत

मोढेरा सूर्य मन्दिर

गजेन्द्र त्रिपाठी

हमदाबाद से मेहसाणा जिले के मोढेरा गांव तक का करीब ढाई घण्टे का सफर लम्बा होने के बावजूद थकाऊ बिल्कुल भी नहीं था। इसका कारण अपने शानदार गन्त्वय तक पहुंचने का उत्साह तो था ही, गुजरात की बेहतरीन सड़कों को भी इसका श्रेय दिया जाना चाहिए। मोढेरा में ही पुष्पावती नदी के किनारे स्थित है भारत का दूसरा सबसे चर्चित सूर्य मन्दिर जिसे दुनिया मोढेरा सूर्य मन्दिर (Modhera Sun Temple) के नाम से जानती है। (Modhera Sun Temple: The legacy of the Solanki dynasty)

यह सूर्य मन्दिर भारतीय स्थापत्य एवं शिल्पकला का बेजोड़ उदाहरण है। मन्दिर की संरचना कुछ इस तरह की है कि विषुव के समय सूर्य की किरणें मन्दिर के गर्भगृह में प्रतिष्ठित सूर्य प्रतिमा पर पड़ती हैं जबकि ग्रीष्म संक्रान्ति के दिन दोपहर के समय बिना किसी छाया के सूर्य सीधे मन्दिर के ऊपर चमकता है। दरअसल, 21 मार्च और 23 सितम्बर को सूर्य की सीधी किरणें भूमध्य रेखा पर पड़ती हैं। इसलिए सम्पूर्ण पृथ्वी समान दिन और रात का अनुभव करती है। भारतीय पंचांगों में इसे ही विषुव कहा गया है।

अपने वास्तुशिल्प के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध इस मन्दिर का निर्माण गुर्जर प्रतिहार सोलंकी वंश के राजा भीमदेव प्रथम ने 1026-27 में कराया था। राजा भीमदेव सूर्यवंशी थे इसलिए वे सूर्य को कुलदेवता के रूप में पूजते थे। सूर्यदेव में अपनी गहन आस्था के चलते उन्होंने इस भव्य मन्दिर का निर्माण करवाया। वर्ष 2014 में इस मन्दिर को विश्व धरोहरों की सूची में सम्मिलित किया गया। अब यह भारतीय पुरात्व विभाग द्वारा संरक्षित है। यहां पूजा करना निषिद्ध है।

इतिहास (History of Modhera Sun Temple)

इस सूर्य मन्दिर परिसर का निर्माण एक ही समय में नहीं हुआ। मुख्य मन्दिर राजा भीमदेव प्रथम के शासनकाल में बनाया गया था। इससे पहले 1024-25 के दौरा महमूद गजनवी ने भीमदेव के राज्य पर आक्रमण किया था। लगभग 20 हजार सैनिकों की एक टुकड़ी ने उसे मोढेरा में रोकने का असफल प्रयास किया। इतिहासकार एके मजूमदार के अनुसार इस सूर्य मन्दिर का निर्माण इस युद्ध की स्मृति में किया गया हो सकता है। बाद में चालुक्यों ने भी इस मन्दिर का पुनर्निर्माण कराया। इसके बाद अलाउद्दीन खिलजी ने हमला कर मन्दिर को काफी नुकसान पहुंचाया।

परिसर की पश्चिमी दीवार पर देवनागरी लिपि में उल्टा लिखा हुआ एक शिलालेख है।  इसके अलावा कोई अन्य तिथि नहीं मिली है। यह उल्टा शिलालेख मन्दिर के विध्वन्स और पुनर्निर्माण का सबूत देता है। शिलालेख की स्थिति के कारण इसे निर्माण की तारीख के पुख्ता प्रमाण के तौर पर नहीं माना जा सकता। शैलीगत आधार पर पता चलता है कि इसके कोने के मन्दिरों के साथ कुण्ड 11वीं शताब्दी की शुरुआत में बनाया गया था। साथ ही शिलालेख को निर्माण के बजाय गजनी द्वारा विनाश किए जाने की तारीख माना जाता है। इसके तुरन्त बाद भीमदेव प्रथम सत्ता में लौट आये थे। इसलिए मन्दिर का मुख्य भाग, सभामण्डपम और कुण्ड 1026 ईस्वी के तुरन्त बाद बनाये गये थे। 12वीं शताब्दी की तीसरी तिमाही में मुख्य द्वार और मन्दिर के बरामदे बनाये गये। राजा कर्ण के शासनकाल में कक्ष के द्वार का निर्माण हुआ जबकि नृत्य कक्ष को बहुत बाद में जोड़ा गया। इस स्थान को बाद में स्थानीय तौर पर “सीता नी चौरी” और “रामकुण्ड” के नाम से जाना जाने लगा।

वास्तुकला (Architecture of Modhera Sun Temple)

स्थापत्य की दृष्टि से मोढेरा सूर्य मन्दिर को गुजरात में सोलंकी शैली में बने मंदिरों में सर्वोच्च स्थान दिया गया है। जगति (ऊंचे प्लेटफार्म) पर एक ही अक्ष पर बने इस मन्दिर के मुख्यतः तीन भाग है। पहले यानी मुख्य भाग में प्रदक्षिणा-पथ युक्त गर्भगृह और एक मण्डप है। दूसरे भाग में एक सभामण्डप है जिसके सामने एक अलंकृत तोरण है। मण्डपों के बाहरी भाग और स्तम्भों पर अत्यन्त सूक्ष्म नक्काशी की गयी है। गर्भगृह में अन्दर की लम्बाई 51 फुट 9 इंच और चौड़ाई 25 फुट 8 इंच है।

सभामण्डप में कुल 52 स्तम्भ हैं जो वर्ष के 52 सप्ताहों को दर्शाते हैं। इन स्तम्भों पर देवी-देवताओं के चित्रों के अलावा रामायण और महाभारत के प्रसंगों को भी उकेरा गया है। नीचे की ओर देखने पर ये स्तम्भ अष्टकोणाकार जबकि ऊपर की ओर देखने पर गोल नजर आते हैं। तीसरे भाग में पत्थरों से निर्मित एक कुण्ड है जिसमें बड़े, मध्यम और लघु आकार के कई मन्दिर हैं। 

सभामण्डप एक अलग संरचना के रूप में गूढमण्डप से थोड़ा दूर है। ये दोनों एक पक्के मंच पर बने हैं। इनकी छतें काफी हद तक ढह गयी थीं और अब कुछ निचले हिस्से ही बचे हैं। दोनों छतें 15 फुट 9 इन्च व्यास की हैं लेकिन अलग-अलग तरीके से बनायी गयी हैं। मंच या प्लिंथ उल्टे कमल के आकार का है।

मण्डप के स्तम्भ अष्टकोणीय योजना के अनुरूप बनाये गये हैं जो अलंकृत तोरणों को आधार प्रदान करते हैं। मण्डप की बाहरी दीवारों पर चारों ओर आले बने हुए हैं जिनमें 12 आदित्यों, दिक्पालों, देवियों और अप्सराओं की मूर्तियां प्रतिस्थापित हैं। सभामण्डप में चारों मुख्य दिशाओं से प्रवेश के लिए अर्धवृत्तीय अलंकृत तोरण हैं। सभामण्डप के सामने एक बड़ा तोरण द्वार है जिसके ठीक सामने आयताकार सूर्य कुण्ड है। स्थानीय लोग इसे राम कुण्ड कहते हैं। कुण्ड के जल-स्तर तक पहुंचने के लिए इसके अन्दर चारों ओर जगति और सीढ़ियां बनायी गयी हैं। यहां पर 108 देवी-देवताओं के मन्दिर जबकि चारों कोणों पर मुख्य मन्दिर हैं। इन सीढ़ियों का एक हिस्सा सभामण्डप की ओर जाता है जहां पर ऊपर की 12 सीढ़ियों पर 12 स्तम्भ बने हुए हैं जिन्होंने सूर्य मन्दिर को घेरा हुआ है। इन स्तम्भों पर बनी आकृतियां सूर्य के 12 रूपों को दर्शाती हैं। अर्थात 12 महीनों के अनुसार सूर्य के 12 रूप।

पुराणों में भी है उल्‍लेख 

मोढेरा मन्दिर का उल्लेख पुराणों में भी है। स्कन्द पुराण और ब्रह्म पुराण के अनुसार मोढेरा के आसपास का पूरा क्षेत्र धर्मरन्य के नाम से जाना जाता था। पुराणों में यह भी बताया गया है कि भगवान श्रीराम ने रावण के संहार के बाद अपने गुरु वशिष्ठ को एक ऐसा स्थान बताने को कहा जहां जाकर वह आत्मशुद्धि कर सकें और ब्रह्म हत्या के पाप से भी मुक्‍ति पा सकें। तब गुरु वशिष्ठ ने श्रीराम को यहीं आने की सलाह दी थी। 

कब जायें मोढेरा

अप्रैल से लेकर जुलाई के बीच यहां भीषण गर्मी पड़ती है और तापमान 40 डिग्री से ऊपर पहुंच जाता है। मानसून के दौरान यहां का मौसम बहुत सुहाना होता है। यदि आपको बारिश पसन्द है तो अगस्त और सितम्बर में यहां का कार्यक्रम बना सकते हैं। हालांकि इस दौरान पर्याप्त सावधानी बरतनी पड़ती है क्योंकि मन्दिर के रास्तों और सीढ़ियों पर फिसलन हो जाती है। साथ ही जंगल से घिरा होने के कारण मच्छरों समेत तरह-तरह के कीट-पतंगों का प्रकोप बढ़ जाता है। यहां घूमने के लिए सबसे अच्छा समय अक्टूबर से लेकर मार्च तक का माना जाता है। इस दौरान यहां का मौसम सम रहता है और आराम से किसी भी समय मन्दिर व आसपास घूम सकते हैं।

सुबह के समय मन्दिर अत्यन्त भव्य दिखायी देता है। इसलिए आप सुबह सात बजे तक यहां पहुंच जायें तो अच्छा रहेगा। मन्दिर को घूमने में सामान्यतया दो घण्टे लगते हैं लेकिन यदि आप इसको तसल्ली के साथ बारीकी और शांति से देखना चाहते हैं तो पूरा दिन देना पड़ेगा। यह मन्दिर सुबह सात से सायं सात बजे तक दर्शकों के लिए खुला रहता है। इसमें प्रवेश के लिए शुल्क देना पड़ता है। आप इस टिकट को मौके पर खरीदने के अलावा ऑनलाइन भी खरीद सकते हैं। ऑनलाइन टिकट कुछ सस्ता पड़ता है। मन्दिर में प्रवेश करने के लिए टिकट के साथ ही कोई पहचान-पत्र भी दिखाना पड़ता है। अन्दर किसी भी तरह के खाने पीने के सामान को ले जाने की मनाही है।

आसपास के दर्शनीय स्थल

मोढेरा सूर्य मन्दिर के आसपास कुछ-कुछ दूरी पर कई दर्शनीय स्थल हैं जो आपको भारत के इतिहास, सनातन संस्कृति और विविधता से अवगत कराते हैं। इनमें रानी की वाव (बावड़ी), सहस्त्र लिङ्ग तालाब, बहुचरा माता मन्दिर (बेचराजी), चासरा पार्श्वनाथ जैन मन्दिर (पाटण) और सिद्धपुर शामिल हैं।

ऐसे पहुंचें

वायु मार्ग : निकटतम हवाईअड्डा अहमदाबाद का सरदार बल्लभ भाई पटेल अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट करीब 95 किलोमीटर दूर है।

रेल मार्ग : निकटतम रेलवे स्टेशन बेचरीजी यहां से करीब 15 किमी दूर है। यहां गिनीचुनी ट्रेनों का ही ठहराव है। अच्छा होगा कि आप मेहसाणा जंक्शन के लिए ट्रेन पकड़ें।अहमदाबाद, दादर और बान्द्रा (मुम्बई), बीकानेर, बरेली, आगरा कैण्ट, सराय रोहिल्ला (दिल्ली), बंगलुरु आदि से यहां के लिए ट्रेन मिलती हैं।

सड़क मार्ग : यह सूर्य मन्दिर अहमदाबाद से करीब 99, गांधीनगर से लगभग 83 और मेहसाणा से 25.6 किलोमीटर दूर है। इन सभी स्थानों से यहां के लिए बस और टैक्सी मिलती हैं।

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भारत के सूर्य मन्दिर

1. कोणार्क सूर्य मन्दिर, पुरी, ओडिशा
2. मोढेरा सूर्य मन्दिर, मेहसाणा, गुजरात
3. उलार्क (उलार) सूर्य मन्दिर, पटना, बिहार
4. कटारमल सूर्य मन्दिर, अल्मोड़ा, उत्तराखण्ड
5. दक्षिणार्क सूर्य मन्दिर, गया, बिहार
6. सूर्य पहर मन्दिर, गोवालपारा, असोम
7. सूर्य मन्दिर, जम्मू
8. रनकपुर सूर्य मन्दिर, राजस्थान
9. देव (देवार्क) सूर्य मन्दिर, औरंगाबाद, बिहार
10. सूर्य मन्दिर, कन्दाहा, सहरसा, बिहार
11. बेलार्क (बेलाउर) सूर्य मन्दिर, भोजपुर, बिहार
12. सूर्य मन्दिर, हंडिया, नवादा, बिहार
13. सूर्य मन्दिर, गया, बिहार
14. सूर्य मन्दिर, झालावाड़, राजस्थान
15. सूर्य मंदिर, रहली, सागर, मध्य प्रदेश
16. सूर्य मन्दिर, महोबा, उत्तर प्रदेश
17. सूर्य मन्दिर, रांची, झारखण्ड
18. सूर्य मन्दिर, प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश
19. मार्तण्ड मन्दिर, कश्मीर
20. औंगारी सूर्य मन्दिर, नालन्दा, बिहार

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