मेंढक मन्दिर : लखीमपुर खीरी में रंग बदलते नर्मदेश्वर

मेंढक मन्दिर : लखीमपुर खीरी में रंग बदलते नर्मदेश्वर

प्रभाकर प्रभात

मेंढक मन्दिर! बहुत पहले दोस्तों की एक महफिल में बातों-बातों में इस नाम के एक पूजास्थल का जिक्र आया था। यह भी पता चला कि यह उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी जिले में है। उस समय मन में आया था कि जब भी अवसर मिला, यहां जाऊंगा अवश्य। लेकिन, घर-परिवार और बैंक की जिम्मेदारियों और आपाधापी के बीच यह इच्छा कहीं दबी रह गयी। बैंक से सेवानिवृत्त होने के काफी अरसे बाद एक दिन अपने साले पंकज गंगवार के साथ गपशप के दौरान इस मन्दिर की चर्चा हुई। मैंने यह भी बताया कि कैसे बरसों पुरानी यह इच्छा अब तक अधूरी है। इस पर स्वभाव से ही घुमक्कड़ और हर वक्त कुछ नया जानने को उत्सुक रहने वाले पंकज ने आनन-फानन में ओयल जाने का कार्यक्रम तय कर दिया। जी हां ओयल, उत्तर प्रदेश के लखमपुर खीरी जिले का एक छोटा-सा कस्बा जहां चाहमान वंश के राजा बख्श सिंह द्वारा बनवाया गया यह विशाल मन्दिर स्थित है।

आखिरकार एक दिन अरुणोदय काल में मैं और पंकज परिवार समेत ओयल के लिए निकल पड़े। बरेली से वाया गोला गोकर्णनाथ करीब 163 किलोमीटर का सफर तय कर पहले लखीमपुर और वहां से सीतापुर मार्ग पर 12 किमी दूर स्थित ओयल पहुंचे। कार से उतरे तो शीतल बयार ने कंपकंपी छुड़ा दी लेकिन अब तक काफी चढ़ चुके सूरज के ताप ने कुछ ही क्षणों में काफी राहत पहुंचायी। सामने था वास्तुकला का अद्भुत उदाहरण मेंढक मन्दिर जहां मण्डूक यानि मेंढक की पीठनुमा संरचना पर मस्तक उठाये खड़े विराट मन्दिर में विराजते हैं भगवान शिव। यहां का  शिवलिंग अत्यंत सुन्दर है। यह संगमरमर से बनी पीठिका पर विराजित है जिस पर सुन्दर नक्काशी है। नर्मदा नदी से लाया गया यह शिवलिंग नर्मदेश्वर के नाम से प्रसिद्ध है जिसका रंग बदलता रहता है।

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यहां नन्दी की मूर्ति खड़ी अवस्था में है जबकि अन्य शिव मन्दिरों में नन्दी की मूर्ति बैठी अवस्था में होती है। इस मन्दिर की एक ख़ास बात यहां का कुआं भी है। जमीन तल से ऊपर बने इस कुएं में जैसा पानी रहता है वैसा जल सामान्यतः जमीन तल पर ही मिलता है। मन्दिर की बाहरी दीवारों पर शव साधना की मूर्तियां उत्कीर्ण हैं जो इसके तंत्र विधा से जुड़े होने की पुष्टि करती हैं।

मन्दिर के दो प्रवेश द्वार हैं। प्रमुख द्वार पूर्व जबकि दूसरा दक्षिण दिशा की ओर खुलता है। मन्दिर के ऊपर लगा छत्र स्वर्ण से निर्मित है जिसमें नटराज की नृत्य करती मूर्ति चक्र के अंदर विद्यमान है। यह चक्र अब क्षतिग्रस्त अवस्था में है पर पहले सूर्य की दिशा के अनुसार घूर्णन करता था।

ओयल कभी शैव सम्प्रदाय का प्रमुख केन्द्र और यहां के शासक भगवान शिव के परम उपासक थे। कहते हैं कि इस मन्दिर की वास्तु परिकल्पना कपिला के एक महान तांत्रिक ने की थी। एक मान्यता यह भी है कि सूखे और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदा से बचाव के लिए इस मन्दिर का निर्माण कराया गया था। यह क्षेत्र 11वीं से 19वीं सदी तक चाहमान शासकों के आधीन रहा था। इसी मन्दिर का निर्माण करवाने वाले राजा बख्श सिंह इसी वंश के थे। इस मन्दिर का निर्माण काल 1870 बताया जाता है।  

इस मन्दिर में यूं तो सालभर श्रद्धालु आते रहते हैं पर दीपावली और महाशिवरात्रि पर बड़ी संख्या में भक्‍त पहुंचते हैं। तंत्रों (तांत्रिक विद्या) के अनुसार मेंढक समृद्धि, सौभाग्य और प्रजनन क्षमता का प्रतीक है। मेंढक को अच्छी किस्मत और प्रजनन का प्रतीक माना जाता है। संभवतः इसी कारण यहां आने वालों में नवविवाहित जोड़ों की संख्या सर्वाधिक होती है जो सौभाग्य और स्वस्थ सन्तान की कामना के साथ यहां आते हैं।

ऐसे पहुंचें मेंढक मन्दिर

वायु मार्ग : लखनऊ का चौधरी चरण सिंह इंटरनेशनल एयरपोर्ट लखीमपुर से करीब 149 किलोमीटर है। बरेली के सिविल एकन्केव से यहां पहुंचने के लिए करीब 168 किमी की दूरी तय करनी पड़ती है।

रेल मार्ग : ओयल का नजदीकी रेलवे स्टेशन लखीमपुरहै। लखीमपुर भारतीय रेलवे का बी क्लास स्टेशन है जहां से गिनी-चुनी ट्रेन ही गुजरती हैं। लखीमपुर जिला मुख्यालय से ओयल करीब 12 किमी सीतापुर मार्ग पर है।

सड़क मार्ग : लखीमपुर के लिए लखनऊ, सीतापुर, हरदोई, शाहजहांपुर, बरेली आदि से उत्तर प्रदेश सड़क परिवहन निगम की बसें चलती हैं। लखीमपुर पहुंचने के बाद टेम्पो, टैक्सी आदि कर ओयल पहुंच सकते हैं। लखनऊ से आते समय ओयल लखीमपुर से करीब 12 किमी पहले पड़ता है। ऐसे में श्रद्धालु/पर्यटक यहां पर उतर सकते हैं।

आसपास के दर्शनीय स्थल

दुधवा राष्ट्रीय उद्यान : संरक्षित वन क्षेत्र  दुधवा राष्ट्रीय उद्यान लखीमपुर खीरी जनपद में ही है। यह उत्तर प्रदेश का सबसे बड़ा एवं समृद्ध जैव विविधता वाला क्षेत्र है। यह राष्ट्रीय उद्यान बाघों और बारहसिंगा के लिए विश्व प्रसिद्ध है। यह लखीमपुर खीरी और बहराइच जिलों में फैले दुधवा टाइगर रिजर्व का ही एक हिस्सा है।

गोला गोकर्णनाथ : मेंढक मन्दिर से करीब 47 किलोमीटर दूर स्थित गोला गोकर्णनाथ को “छोटा काशी” भी कहा जाता है। यहां एक बड़े सरोवर के किनारे श्रीगोकर्णनाथ महादेव मन्दिर स्थित है। गाय के कान के आकार का शिवलिंग होने के कारण इसका नाम गोकर्णनाथ पड़ा।