हुमायूं का मकबरा

हुमायूं का मकबरा : भारत में मुगल वास्तुकला की पहली बड़ी इमारत

यात्रा पार्टनर नेटवर्क

प्रेम के प्रतीक के रूप में ताजमहल को पूरी दुनिया जानती है जिसे मुगल बादशाह शाहजहां ने अपनी बेगम मुमताज महल की याद में बनवाया था। लेकिन, इसी मुगल सल्तनत की एक बेगम ने भी अपने मरहूम पति की याद में दिल्ली में एक भव्य मकबरा बनवाया था। यमुना नदी के किनारे हजरत निजामुद्दीन दरगाह से कुछ ही दूर बनी इस लाल इमारत को हुमायूं का मकबरा (Humayun’s Tomb) कहते हैं। इसको भारत में मुगल वास्तुकला की पहली बड़ी इमारत होने का दर्जा प्राप्त है। यूनेस्को ने वर्ष 1993 में इसे विश्व धरोहरों की सूची में शामिल किया। (Humayun’s Tomb: The first major building of Mughal architecture in India)

इतिहासकारों ने ताजमहल को प्रेम के प्रतीक के रूप में बहुत ऊंचा दर्जा दिया पर मुगल सल्तनत के दूसरे बादशाह हुमायूं के मकबरे को लेकर वे प्रायः उदासीन ही रहे। यही कारण है कि बेगम हमीदा बानो के आदेश पर बनवायी गयी इस इमारत को वह प्रसिद्धी नसीब नहीं हो पायी जो यमुना के किनारे ही आगरा में बने ताजमहल को मिली। मजेदार बात यह है कि हुमायूं के मकबरे (Humayun’s Tomb) को बनवाने में इस्तेमाल चारबाग शैली में ही करीब 70 साल बाद ताजमहल का निर्माण शुरू हुआ।

हुमायूं का मकबरा (Humayun’s Tomb) दिल्ली के दीनापनाह अर्थात् पुराने किले के निकट निज़ामुद्दीन पूर्व क्षेत्र में मथुरा मार्ग के निकट स्थित है। इसके परिसर का कुल क्षेत्रफल 27.04 हेक्टेयर है। इसके निर्माण पर उस समय 15 लाख रुपये खर्च हुए थे। गुलाम वंश के समय में यह क्षेत्र किलोकरी किले में आता था। तब यह नसीरुद्दीन (1268-1287) के पुत्र तत्कालीन सुल्तान केकूबाद की राजधानी हुआ करता था।

बेगम हमीदा बानो बेगम के आदेश पर 1562 में इस मकबरे का निर्माण शुरू हुआ। इस भवन के वास्तुकार सैयद मुबारक इब्न मिराक घियाथुद्दीन एवं उनके पिता मिराक घुइयाथुद्दीन थे जिन्हें अफगानिस्तान के हेरात शहर से विशेष रूप से बुलवाया गया था। मुख्य इमारत लगभग आठ वर्षों में बनकर तैयार हुई और भारतीय उपमहाद्वीप में चारबाग शैली की पहली इमारत मानी जाती है। इसके निर्माण में लाल बलुआ पत्थरों का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया गया है। बाद के वर्षों में बेगम हमीदा बानो और शाहजहां के बड़े बेटे दारा शिकोह, मुगल सम्राट जहांदर शाह, फर्रुख्शियार, रफी उल-दर्जत, रफी उद-दौलत, आलमगीर द्वितीय आदि की कब्रें भी इसी परिसर में बनवायी जाती रहीं। मकबरा परिसर में मुगल वंश के 150 से अधिक सदस्यों की कब्रें हैं। इस कारण इसे “मुगलों का शयनागार” भी कहा जाता है।

माना जाता है कि यमुना नदी के किनारे मकबरे के लिए इस स्थान का चुनाव इसकी हजरत निजामुद्दीन दरगाह से निकटता के कारण किया गया था। हजरत निज़ामुद्दीन दिल्ली के प्रसिद्ध सूफ़ी संत थे जिन्हें दिल्ली के शासकों द्वारा काफ़ी मान दिया जाता था। उनका तत्कालीन आवास भी मकबरे के स्थान से उत्तर-पूर्व दिशा में चिल्ला-निज़ामुद्दीन औलिया में था। 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान बहादुर शाह ज़फ़र ने अपने तीन शहजादों समेत यहीं शरण ली थी। कैप्टन हॉडसन ने उनको यहीं से गिरफ्तार किया था और फिर उन्हें रंगून भेजा दिया गया जहां वतन से दूर जेल की एक कोठरी में अंतिम मुगल बादशाह ने आखिरी सांस ली।

मकबरे का बाहरी रूप

हुमाऊं के मकबरे (Humayun’s Tomb) की मुख्य इमारत 47 मीटर ऊंची और 300 फीट चौड़ी है। इसके विशाल गुम्बद पर पीतल का छह मीटर ऊंचा कलश स्थापित है जिसके ऊपर चन्द्रमा लगा हुआ है। गुम्बद दोहरी पर्त में बना है। बाहरी पर्त के बाहर श्वेत संगमरमर का आवरण है और अंदरूनी पर्त गुफा रूपी है।

इस विशाल इमारत में इसकी गरिमा के अनुरूप ही 16-16 मीटर ऊंचे दो प्रवेश द्वार बनवाये गये हैं जो पश्चिम और दक्षिण में हैं। इन द्वारों में दोनों ओर कक्ष हैं एवं ऊपरी तल पर छोटे प्रांगण हैं। मुख्य इमारत के ईवान पर बने सितारे के समान ही एक छह किनारों वाला सितारा मुख्य प्रवेशद्वार पर भी बना है।

मकबरे का निर्माण मूलरूप से पत्थरों को गारे-चूने से जोड़कर किया गया है और उसे लाल बलुआ पत्थरों से ढंका गया है। इसके ऊपर पच्चीकारी है। फर्श की सतह, झरोखों की जालियों, दरवाजों की चौखटों और छज्जों पर सफेद संगमरमर का इस्तेमाल किया गया है। मकबरा आठ मीटर ऊंचे मूल चबूतरे पर खड़ा है और 12 हजार वर्गमीटर की ऊपरी सतह को लाल जालीदार मुंडेर घेरे हुए है। इस वर्गाकार चबूतरे के कोनों को छांटकर अष्टकोणीय आभास दिया गया है।

मकबरे की आंतरिक बनावट

मकबरे में मुख्य केन्द्रीय कक्ष सहित नौ वर्गाकार कक्ष हैं। बीच में बने मुख्य कक्ष को घेरे हुए बाकी आठ दुमंजिले कक्ष बीच में खुलते हैं। मुख्य कक्ष गुम्बददार एवं दोगुनी ऊंचाई का एक-मंजिला है और इसमें गुम्बद के नीचे एकदम मध्य में आठ किनारे वाले एक जालीदार घेरे में बादशाह हुमायूं की कब्र है जो इस इमारत की मुख्य कब्र है। इसका प्रवेश दक्षिणी ओर एक ईवान से होता है। अन्य दिशाओं के ईवानों में श्वेत संगमरमर की जाली लगी हैं। हुमायूं की असली कब्र ठीक नीचे आंतरिक कक्ष में है जिसका रास्ता बाहर से जाता है।

मुख्य कक्ष में संगमरमर के जालीदार घेरे के ठीक ऊपर मेहराब बना है जो पश्चिम में मक्का की ओर है। यहां आमतौर पर प्रवेशद्वारों पर खुदे कुरआन के सूरा 24 के बजाय सूरा-अन-नूर की एक रेखा बनी है, जिसके द्वारा प्रकाश क़िबला (मक्का की दिशा) से अंदर प्रवेश करता है।

प्रधान कक्ष के चार कोणों पर चार अष्टकोणीय कमरे हैं जो मेहराबदार दीर्घा से जुड़े हैं। प्रधान कक्ष की भुजाओं के बीच-बीच में चार अन्य कक्ष हैं। ये आठ कमरे मुख्य कब्र की परिक्रमा बनाते हैं। इन सभी कमरों के साथ 8-8 कमरे और हैं।  

दिल्ली के कुछ और प्रमुख स्मारक

राष्ट्रीय युद्ध स्मारक, इंडिया गेट, कोरोनेशन दरबार पार्क, लोदी गार्डन, कुतुब मीनार, लाल किला, सफदरजंग का मकबरा, इसा खान का मकबरा, अलाई दरवाजा, राजघाट, शांतिवन, विजय घाट, त्रिमूर्ति भवन आदि।

ऐसे पहुंचें हुमायूं के मकबरे तक

यह मकबरा भारत की राजधानी नई दिल्ली में स्थित है। दिल्ली में देश का सबसे बड़ा हवाईअड्डा इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट तथा नई दिल्ली, दिल्ली जंक्शन, आनन्द विहार, हजरत निजामुद्दीन आदि बड़े रेलवे स्टेशन हैं। हजरत निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन इस मकबरे के सबसे निकट है। साथ ही दिल्ली बेहतरीन सड़कों के माध्यम से पूरे देश से जुड़ा है। एक बार आप दिल्ली पहुंचे गये तो लोकल ट्रांसपोर्ट की कोई समस्या नहीं है। दिल्ली परिवहन निगम की स्थानीय बस सेवा के साथ ही टैम्पो-टैक्सी और कैब आसानी से उपलब्ध हैं।