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सौन्दर्य की प्रशंसा करना जितना सहज है, कुरूप को स्वीकार कर पाना उतना ही दुष्कर। लेकिन, मानव मात्र से प्रेम का संदेश देने वाला सनातन धर्म सभी प्राणियों, चाहे वे किसी भी रूप और अवस्था में हों, का सम्मान करने का संदेश देता है। सनातन के इसी भाव का प्रतीक है कर्नाटक के हम्पी में तुंगभद्रा नदी के किनारे शान से खड़ा विरूपाक्ष मन्दिर (Virupaksha Temple)। सातवीं सदी में बनाया गया यह मन्दिर भगवान शिव के विभिन्न रूपों में से एक विरूपाक्ष (विरूप+अक्ष) यानि कुरूप आंखों वाले को समर्पित है। इस मन्दिर को “प्रसन्न विरूपाक्ष मन्दिर” (Prasanna Virupaksha Temple) के नाम से भी जाना जाता है। द्रविण स्थापत्य कला के इस भव्य प्रतीक को यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल सूची में शामिल किया है। (Virupaksha Temple: Abode of Shiva with ugly eyes)
मन्दिर की दीवारों पर मौजूद शिलालेख इसकी समृद्ध विरासत का प्रमाण देते हैं। मन्दिर में मुख्य देवता यानि भगवान शिव के साथ-साथ भुवनेश्वरी और पम्पा समेत कई अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियां भी हैं। ये मूर्तियां पौराणिक कहानियों पर आधारित हैं।
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विरुपाक्ष मन्दिर (Virupaksha Temple) को विक्रमादित्य द्वितीय की पत्नी रानी लोकमाह देवी ने बनवाया था। इसको बनाने में ईंट और चूने का भी इस्तेमाल किया गया है। तुंगभद्रा के दक्षिणी किनारे पर हेमकूट पहाड़ी की तलहटी पर बने इस मंदिर का इतिहास विजयनगर साम्राज्य से भी जुड़ा है। 1509 ईस्वी में कृष्णदेव राय ने अपने राज्याभिषेक के समय यहां गोपुरम् (गोपुड़ा) का निर्माण कराया था। यह गोपुरम् 50 मीटर ऊंचा है। विरूपाक्ष मन्दिर के प्रवेश द्वार का गोपुरम् हेमकूट पहाड़ियों व आसपास की अन्य पहाड़ियों पर रखी विशाल चट्टानों से घिरा है। इन चट्टानों का संतुलन हैरान कर देने वाला है।
मुख्य मन्दिर को पास कई छोटे-छोटे मन्दिर हैं जो किसी न किसी देवी देवता को समर्पित हैं और अलग-अलग समय पर बनाये गये हैं। मन्दिर के रसोईघर का निर्माण भी बाद में कराया गया था। यहां अर्ध सिंह और अर्ध मनुष्य की देह धारण किए भगवान नृसिंह की 6.7 मीटर ऊंची मूर्ति है। किंवदन्ति है कि भगवान विष्णु ने इस जगह को अपने रहने के लिए कुछ अधिक ही बड़ा समझा और क्षीरसागर वापस लौट गये।
माना जाता है कि हम्पी ही रामायण काल का किष्किन्धा है। विरूपाक्ष मन्दिर (Virupaksha Temple) में स्थापित शिवलिंग की कहानी लंकाधिपति रावण से जुड़ी हुई है। यह शिवलिंग दक्षिण की ओर झुका हुआ है। पौराणिक कथाओं के अनुसार रावण जब शिवजी के दिये हुए शिवलिंग को लेकर लंका जा रहा था तो उसे लघुशंका लगने पर यहां पर रुकना पड़ा। निवृत्त होने के लिए उसने शिवलिंग को एक वृद्ध आदमी (भगवान विष्णु) को पकड़ने के लिए दे दिया। उस बूढ़े आदमी ने शिवलिंग को जमीन पर रख दिया। इस पर यह शिवलिंग यहीं पर स्थिर हो गया और रावण लाख कोशिशों के बाद भी इसे हिला नहीं सका। मन्दिर की दीवारों पर इस प्रसंग के चित्र बने हुए हैं जिनमें रावण शिव से पुनः शिवलिंग को उठाने की प्रार्थना कर रहा है और भगवान शिव इन्कार कर देते हैं।
ऐसे पहुंचें विरूपाक्ष मन्दिर (How to reach Virupaksha Temple)
सड़क मार्ग : हम्पी सड़क मार्ग से कर्नाटक की राजधानी बेंगलूर से करीब 350 किलोमीटर पड़ता है। राज्य के प्रमुख शहरों से यहां के लिए केएसआरटीसी (कर्नाटक राज्य सड़क परिवहन निगम) और निजी ट्रैवल एजेंसियों के बसें मिल जाती हैं।
रेल मार्ग : हम्पी का निकटतम रेलवे स्टेशन होसपेट है जो यहां से करीब 13 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
वायुमार्ग : बेल्लारी हवाई अड्डा हम्पी का सबसे नजदीकी घरेलू हवाई अड्डा है जो लगभग 60 किमी पड़ता है।